समय - सीमा 267
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1051
मानव और उनके आविष्कार 814
भूगोल 260
जीव-जंतु 315
| Post Viewership from Post Date to 20- Oct-2023 (31st Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2201 | 360 | 0 | 2561 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
भारत में “मित्र" एक बहुप्रचलित शब्द है, जिसका उपयोग अपने किसी सखा या दोस्त को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, कि हिंदू धर्म में “मित्र" नामक एक देवता भी हैं। जिनका नाम और विशेषताएं दोनों ही कई समानताएं साझा करती हैं। मित्र, एक वैदिक हिंदू देवता हैं, जिन्हें आदित्यों (देवी अदिति की संतानों) में से एक माना जाता है। हालांकि, समय के साथ उनकी भूमिका में बड़े बदलाव देखे गए हैं। मितन्नी (Mitanni) शिलालेखों में “मित्र” देव का उल्लेख संधियों के संरक्षक के रूप में किया गया है। ऋग्वेद में, मित्र का उल्लेख मुख्य रूप से “मित्र-वरुण” के यौगिक के रूप में किया गया है, जो वरुण देव के साथ अपनी विशेषताओं को साझा करते हैं। वैदिक ग्रंथों और ब्राह्मणों द्वारा “मित्र” देव को सुबह के सूरज के साथ जोड़ा गया है, जबकि वरुण को शाम के साथ जोड़ा गया है। उत्तर-वैदिक ग्रंथों में, मित्र देव, मित्रता के संरक्षक देवता के रूप में दर्शाए जाते हैं।
संस्कृत में “मित्रम” शब्द का अर्थ संविदा या अनुबंध है। ऋग्वेद और मितन्नी संधि दोनों में मित्र की भूमिका इस अनुबंध की सुरक्षा के इर्द-गिर्द घूमती है। इसी प्रकार इंडो-ईरानी शब्द “मित्र” का अर्थ वह शक्ति है, जो दो वस्तुओं को आपस में बांधती है। अधिकांश भारतीय भाषाओं में, मित्र का अर्थ ‘दोस्त' होता है। मराठी या हिंदी भाषा में “मैत्रीन या मित्रा” जैसे शब्द इसके स्त्रीलिंग रूप भी हैं। मित्र शब्द का सबसे पहला उल्लेख 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व के “मितन्नी शिलालेख” में मिलता है।
ऋग्वेद में मुख्य आदित्य के रूप में मित्र-वरुण को इंद्र, अग्नि-सोम और नासत्य की अमूर्त अवधारणाओं के बाद, सबसे प्रमुख देवता माना गया है। आदित्य के रूप में, वे नैतिकता, विवेक एवं चेतना के प्रतीक माने जाते हैं।
मित्र और वरुण को आंतरिक तथा बाहरी, दोनों संसारों के शासकों के रूप में देखा जाता है। वे नैतिकता और असीमित विवेक जैसी अवधारणाओं से भी जुड़े हैं। इन दोनों देवताओं को अक्सर एक ही शक्ति के पूरक पहलुओं के रूप में देखा जाता है। अर्थात मित्र ब्रह्मांड के प्रकाश और व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि वरुण अंधकार और अराजकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाद के वैदिक ग्रंथों में “मित्र देव” की भूमिका कम होने लगी थी। हालाँकि, भारत के कुछ हिस्सों में अभी भी उनकी पूजा की जाती है।
क्या आप जानते हैं कि पारसी धर्म के पवित्र ग्रंथ समूह “अवेस्ता” (Avesta) में भी “मिथ्र (mithra)” शब्द का वर्णन मिलता है। उच्चारण में समानता होने के साथ ही, अवेस्ता में उल्लिखित मिथ्रा, वैदिक मित्र से काफी समानताएं भी साझा करते हैं, हालांकि कुछ हद तक अलग भी हैं। मिथ्रा, की समानताएं एवं गुण देवराज इंद्र से अधिक मिलते हैं। जबकि ऋग्वेद में वर्णित मित्र - इंद्र, अग्नि-सोम और नासत्य जैसे देवताओं के बाद आते हैं। अवेस्ता परंपरा में वर्णित मिथ्रा, मिलनसार होने के बजाय अधिक आज्ञाकारी और सौम्य हैं। इसके अलावा मिथ्रा गरीबों और पीड़ितों की भी मदद करते हैं। मिथ्रा ईरान के एक प्राचीन देवता हैं, जिन्हें अक्सर एक बैल को मारते हुए चित्रित किया जाता है। मिथ्रा, न्याय के देवता माने जाते थे, और उन्हें अक्सर फ़्रीज़ियन टोपी (Phrygian hat) पहने एक युवा व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जाता है। मिथ्रा द्वारा बैल को मारने की छवि मिथ्रेआ पंथ में सबसे आम छवि है। ऐसा माना जाता है कि यह बुराई पर मिथ्रा की जीत और दुनिया के नवीनीकरण का प्रतिनिधित्व करती है। इसके अलावा बैल को अक्सर प्रजनन क्षमता और ताकत से भी जोड़ा जाता है, इसलिए उसकी मृत्यु पुरानी व्यवस्था के अंत और एक नई व्यवस्था की शुरुआत का प्रतीक हो सकती है। मिथ्रा द्वारा प्रचलित “मिथ्रा पंथ” सैनिकों और व्यापारियों के बीच खूब लोकप्रिय था।
मिथ्रा पंथ को मिथ्रावाद, या मिथ्राइक रहस्य के रूप में भी जाना जाता है। यह धर्म पहली से चौथी शताब्दी तक रोमन साम्राज्य में काफी लोकप्रिय हुआ करता था। मिथ्रावाद को प्रारंभिक ईसाई धर्म के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है। मिथ्रास का पंथ एक रहस्यमय पंथ था, अर्थात इस धर्म के अनुष्ठान और मान्यताएँ बेहद गुप्त मानी जाती थीं। इस पंथ का पूरा विवरण केवल दीक्षार्थियों को ही दिया जाता था, और यह पंथ मोक्ष के विचार पर आधारित था। आज भी स्पेन (Spain) से लेकर सीरिया (Syria) तक हर जगह ‘मिथ्राए’ (मिथ्रस को समर्पित मंदिर) पाए जाते हैं।
तीसरी शताब्दी तक, मिथ्रावाद, रोमन साम्राज्य में सबसे लोकप्रिय धर्मों में से एक बन गया था। ब्रिटेन (Britain) से लेकर उत्तरी अफ़्रीका (North Africa) तक फैले हुए इस पूरे साम्राज्य में मिथ्रा को समर्पित कई मंदिर भी थे। हालांकि, चौथी शताब्दी में रोमन साम्राज्य में ईसाई धर्म के आधिकारिक धर्म बनने के साथ ही मिथ्रावाद में गिरावट देखी जाने लगी और लोगों द्वारा ईसाई धर्म को अपनाया जाने लगा। लेकिन भाईचारे और वफादारी पर आधारित यह पंथ आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा बना हुआ है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4smwkkx9
https://tinyurl.com/2wn969se
https://tinyurl.com/546nxdct
https://tinyurl.com/mr2x6tx4
https://tinyurl.com/2vtauh3s
चित्र संदर्भ
1. रोम की सभ्यता में मिथ्रा देव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, Creazilla)
2. ताजिकिस्तान से मित्र की लकड़ी की पंथ छवि को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. विष्णु और लक्ष्मी एक हाथी पर बैठ, नंदी बैल पर सवार शिव, पार्वती और गणेश से मिल रहे हैं; जबकि कुछ देवता स्वर्ग से देख रहे हैं! इस पूरे दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
4. मिथ्रा देव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मिथ्राइक रहस्य पंथ को दर्शाता एक चित्रण (snl)