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अपने समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाने वाला हमारा शहर रामपुर विविध संस्कृतियों और परंपराओं का मिश्रण है। रामपुर ऐतिहासिक रूप से अपनी वास्तुकला की भव्यता के लिए प्रसिद्ध रहा है। मुगल शासकों द्वारा निर्मित होने के कारण यहाँ की ऐतिहासिक इमारतों पर मुगल वास्तुकला का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। अत्यधिक पुरानी होने के कारण इन इमारतों का औपनिवेशिक शासन के तहत इंडो-सारसेनिक (Indo-Saracenic) वास्तुकला के अनुसार कई बार ज़ीर्णोद्धार भी किया गया। हमारे रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी भी इसी इंडो-सारसेनिक वास्तुकला के अनुसार बनी है। आइए इंडो-सारसेनिक वास्तुकला और रज़ा लाइब्रेरी के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।
1774 ईसवी में नवाब फैज़ुल्लाह खान द्वारा स्थापित हमारे रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी में, इंडो-इस्लामिक सांस्कृतिक विरासत के संग्रह के रूप में, राष्ट्रीय महत्व की और विभिन्न भाषाओं की दुर्लभ पांडुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, चित्रों और पुस्तकों का एक विशाल संग्रह है। हालांकि अब यह संस्था केंद्र सरकार द्वारा संचालित है। ‘हामिद मंज़िल’ में स्थित इस इमारत को वास्तुकार डब्ल्यू.सी. राइट (W.C. Wright) द्वारा इंडो-सारसेनिक शैली में डिज़ाइन किया गया था।
वास्तव में इंडो-सारसेनिक शैली इस्लामी, हिंदू और विक्टोरियन गोथिक शैली (Victorian Gothic) के तत्वों का एक अनुपम मिश्रण है, जिसका ब्रिटिश वास्तुकारों द्वारा मुख्य रूप से 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में सार्वजनिक और सरकारी भवनों और रियासतों के शासकों के महलों के निर्माण के लिए उपयोग किया गया था। हालांकि इस वास्तुकला के अंतर्गत इमारतों की मूल संरचना का निर्माण गोथिक पुनरुद्धार और नव-शास्त्रीय जैसी अन्य शैलियों में किया जाता है, लेकिन इस वास्तुकला पर देशी इंडो-इस्लामिक वास्तुकला, विशेष रूप से मुगल वास्तुकला के तत्वों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। ‘सारासेन’ (Saracen) शब्द का उपयोग यूरोप (Europe) में मध्य युग में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के अरबी भाषी मुस्लिम लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह शैली लगभग 1795 के बाद से भारत में पश्चिमी चित्रण के अनुसार बनी इमारतों से विकसित हुई है।
माना जाता है कि भारत में इंडो-सारसेनिक शैली में विकसित हुई पहली इमारत 'चेपॉक पैलेस' (Chepauk Palace) है, जो 1768 में वर्तमान चेन्नई (मद्रास) में बनकर तैयार हुई थी। न केवल भारत में बल्कि इंग्लैंड में उन्नत ब्रिटिश संरचनात्मक ने इस शैली के अंतर्गत इमारतों का निर्माण किया गया। विभिन्न विषयों के कुशल कारीगरों की कल्पना द्वारा समर्थित, यह वास्तुकला ब्रिटिश, यूरोपीय और अमेरिका (America) के व्यापक जनसांख्यिकीय में व्यापक रूप से प्रसारित हुई। वास्तव में इस प्रकार की वास्तुकला के डिज़ाइन नवाचारों के इतने अनुकूल होते हैं जो वास्तुशिल्प परियोजनाओं की सौंदर्य दिशाओं को निर्धारित करते हैं। इस वास्तुकला का प्रभाव बारोक (Baroque) शैली पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
इस वास्तुकला के डिज़ाइन तत्वों और रूपांकनों की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
प्याज़ के आकार का बल्बनुमा गुंबद
छज्जा, जो अक्सर विशिष्ट कोष्ठकों द्वारा समर्थित होते हैं!
नुकीले मेहराब,
घोड़े की नाल आकृति के मेहराब,
एक मेहराब के चारों ओर विपरीत रंग, विशेष रूप से लाल और सफेद
चार-चाला जैसी बंगाली शैलियों में घुमावदार छतें
छत पर गुंबददार छतरी
चोटी
मीनारें
हरम खिड़कियाँ
बंगला छत वाले खुले मंडप
जालियां
मशरबिया या झरोखा शैली वाली खिड़कियाँ
पूरे यूरोप और अमेरिका में कई कुशल पेशेवर और कारीगरों के साथ साथ वास्तुकला की इस शैली के मुख्य प्रस्तावक रॉबर्ट फेलोज़ शिशोल्म (Robert Fellowes Chisholm), चार्ल्स मंट (Charles Mant), हेनरी इरविन (Henry Irwin), विलियम एमर्सन (William Emerson), जॉर्ज विटेट (George Wittet) और फ्रेडरिक स्टीवंस (Frederick Stevens) थे।
इंडो-सारसेनिक शैली में भारत और आसपास के कुछ देशों में मुख्य रूप से भव्य सार्वजनिक इमारतें जैसे ‘क्लॉक टॉवर’ (Clock Tower) और ‘कोर्टहाउस’ (Courthouse) निर्मित की गई थीं। इस शैली में निर्मित नगरपालिकाओं और सरकारी कॉलेजों के साथ-साथ टाउन हॉल जैसी संरचनाओं को आज तक शीर्ष-श्रेणी वाली और सबसे बेशकीमती संरचनाओं में गिना जाता है। ब्रिटेन में ही, उदाहरण के लिए, ब्राइटन में किंग जॉर्ज चतुर्थ का शाही मंडप (King George IV’s Royal Pavilion at Brighton) और अन्य आवासीय संरचनाएं जो इस औपनिवेशिक शैली को प्रदर्शित करती हैं, अत्यधिक मूल्यवान और बेशकीमती हैं। आज भी जब भारत में स्थानीय रेलवे स्टेशनों, संग्रहालयों और कला दीर्घाओं के निर्माण की योजनाएँ तैयार की जाती थीं, तो ऐसे "स्वदेशी जातीय वास्तुकला" के निर्माण पर महत्वपूर्ण धनराशि खर्च की जाती है।
प्रश्न उठता है कि इस शैली में केवल भव्य इमारतें ही क्यों बनाई गई? इसका कारण यह है कि इस शैली की इमारतों के निर्माण की लागत बहुत अधिक थी, जिसमें उनके सभी अंतर्निहित अनुकूलन, आभूषण और सूक्ष्म सजावट, पत्थर और लकड़ी की नक्काशी, साथ ही उत्कृष्ट जड़ा हुआ काम और आवश्यक कच्चा माल शामिल थे। इसलिए इस शैली को केवल भव्य इमारतों पर ही निष्पादित किया गया था।
1885 में बनकर तैयार हुई मेयो कॉलेज की मुख्य इमारत इंडो-सारसेनिक शैली में बनी है, जिसके वास्तुकार मेजर मंट हैं। चेन्नई का विक्टोरिया पब्लिक हॉल, मद्रास उच्च न्यायालय, मद्रास विश्वविद्यालय का सेनेट हाउस और चेन्नई सेंट्रल स्टेशन इस शैली में निर्मित इमारतों के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं। इसके अलावा राष्ट्रपति भवन (तत्कालीन वायसराय महल) के स्तंभों के शीर्षों और मुख्य गुंबद के नीचे प्राचीन स्तूपों के चारों ओर लगी रेलिंगों पर इस शैली को चित्रित किया जा सकता है।
संदर्भ
https://shorturl.at/qwCT0
https://shorturl.at/czHR4
चित्र संदर्भ
1. सुंदर पुष्पों के साथ रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. इंडो-सरसेनिक वास्तुकला के प्रमुख बिंदुओं को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. मद्रास उच्च न्यायाल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. चेन्नई के विक्टोरिया पब्लिक हॉल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)