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आमो की दो ही खसियत होनी चाहिए, पहली, वे मीठे हो और दूसरी, बहुत हो! हम सभी गर्मियों के इन दिनों में आमों के जायके का आनंद ले रहे हैं।अतः आज के इस लेख का उद्देश्य हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के गोरखपुर क्षेत्र में कम-ज्ञात लेकिन, व्यापक रूप से प्रिय ‘गौरजीत आम’ के बारे में जानना है।आइए, गौरजीत आम की अनूठी विशेषताओं, इसके पकने के समय और महत्व पर प्रकाश डालते है। साथ ही, आज के इस लेख के माध्यम से गौरजीत आमों के लिए संकेत अर्थात, जीआई टैग एवं स्थानीय कृषि परिदृश्य में उनके सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व पर भी प्रकाश डालते हैं।
गौरजीत आम, इन फलों में सर्वोत्कृष्ट माने जाने वाले हापुस आम से छोटा होता है, इसका छिलका सुनहरा-पीला होता है एवं गूदा चमकदार सुनहरा-नारंगी होता है। गौरजीत आम इन फलों की सबसे सुगंधित किस्मों में से एक है, और यह आम काफ़ी मीठा होता है। इसकी मिठास के कारण इसे ग़ाज़ीपुर में ‘मिठौआ’ के नाम से भी जाना जाता था। गोरखपुर में मौजूद एक किंवदंती के अनुसार, गौरजीत आम को पहली बार बिहार के बेतिया में उगाया गया था, जहां से यह गोरखपुर पहुंचा। तब इसे महराजगंज लाया गया था और इस क्षेत्र की मिट्टी इस आम के अनुकूल थी।गौरजीत और ‘गावरजीत’ (जैसा कि इसे गांवों में कहा जाता है) मूल रूप से,‘गौहरजीत’ (उर्दू में गौहर का अर्थ मोती होता है) के बोलचाल के संस्करण हैं।
गोरखपुर-देवरिया-बस्ती बेल्ट के बाहर बहुत से लोग इस आम के बारे में नहीं जानते हैं। क्योंकि, इस आम को जल्दी ही खाया जाना चाहिए, और इस कारण आमतौर पर स्थानीय स्तर पर ही इसका सेवन किया जाता है।
15 से 20 साल पुराने पेड़ पर एक वर्ष में 150-200 किलोग्राम फल लगते हैं, और इस उपज का लगभग सारा हिस्सा स्थानीय उपभोग के लिए उपयोग किया जाता है। इन आमों का निर्यात नहीं किया जाता है, क्योंकि, इसकी कोई आपूर्ति श्रृंखला मौजूद नहीं है। साथ ही, कच्चे फल को तोड़ने पर यह तुरंत ही पक जाता है। आम की गौरजीत किस्म जल्दी खराब होने लगती है, और इसे लंबे समय तक रखा नहीं जा सकता। इसका निर्यात तभी किया जा सकता है, जब इसके भंडारण की उचित व्यवस्था हो। फिर भी आम को उपहार के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है, और अतः इसे दूर-दूर से मुंबई, कोलकाता और अन्य मेट्रो शहरों में भी भेजा जाता है। अच्छी खबर यह है कि, किसानों के अधिक जागरूक होने के कारण पिछले 10-15 वर्षों में इस आम को उपज में 15-20% की वृद्धि हुई है।
अपने अनूठे गंध, स्वाद या रंग के मामले में यह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती और संत कबीर नगर जिलों के इलाकों में लोगों का पसंदीदा है।हमारे राज्य के गोरखपुर और बस्ती मंडलों के बीच लगभग 6,000 हेक्टेयर क्षेत्र में गौरजीत किस्म के आम उगाए जाते हैं। यह बिहार के कुछ जिलों में भी उगाया जाता है, लेकिन, वहां यह, जर्दालू और मिठुआ जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
हम सब जानते ही है कि, हमारे राज्य उत्तर प्रदेश भारत में, आमों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। हम जैसे कई लोग, आमों के शौकीन भी होते हैं। यहां आमों की कई अनूठी किस्मों का उत्पादन भी होता है। अतः गौरजीत जैसे कम ज्ञात, लेकिन,अनूठे आम को व्यापक आम प्रेमियों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए, हमारे राज्य की सरकार ने गोरखपुर के इस आम के लिए भौगोलिक सूचकांक (जीआई –Geographical Indication) टैगिंग के लिए आवेदन किया है।यह आम उन 15 कृषि उत्पादों में से एक है, जिसके लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने जीआई टैगिंग के लिए आवेदन किया है।यदि गौरजीत आम को जीआई टैगिंग दी जाती है, तो इसके उत्पादन में शामिल सैकड़ों किसानों को लाभ होगा। इससे खासकर गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, बहरीच, गोंडा और श्रावस्ती के किसानों को लाभ होगा, क्योंकि, वे एक ही कृषि जलवायु के अंतर्गत आते हैं।
साथ ही, इस आम का उत्पादन क्षेत्र और बढ़ने में सक्षम होगा।
जीआई टैग किसी दिए गए क्षेत्र में किसी विशेष कृषि उत्पाद को कानूनी सुरक्षा भी प्रदान करता है। इसके तहत जीआई टैग वाली उपज के अनाधिकृत उपयोग को प्रतिबंधित किया जा सकता है, और निर्दिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उगाई जाने वाली उपज का महत्व बढ़ जाता है।अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में, जीआई टैग का मूल्य एक ट्रेडमार्क के बराबर होता है, और इससे इन आमों की निर्यात बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yyv9rdv4
https://tinyurl.com/mspk272h
https://tinyurl.com/mvwctwhj
चित्र संदर्भ
1. गौरजीत आम और जीआई टैग को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. गौरजीत आम के पेड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
3. गौरजीत आम की पौंध को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
4. कच्चे गौरजीत आम के पेड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
5. जीआई टैग को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)