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रामपुरवासियों, जब भी हम अपने शहर की तहज़ीब, रिवायतों और गौरवशाली विरासत की चर्चा करते हैं, तो ज़हन में सिर्फ़ भव्य इमारतें, नवाबी अदब, ख़ास खानपान या मधुर संगीत ही नहीं आते, बल्कि एक अनोखी और दुर्लभ नस्ल का नाम भी गूँज उठता है - रामपुर ग्रेहाउंड (Rampur Greyhound)। यह कुत्ता मात्र एक पालतू जानवर नहीं, बल्कि रामपुर की शान, बहादुरी और अतीत की जिंदा यादगार है। नवाबी दौर में इसका विकास केवल शिकार या सुरक्षा के लिए नहीं हुआ था, बल्कि यह उस समय की शानो-शौकत, ताक़त और सूझबूझ का प्रतीक भी था। कहा जाता है कि रामपुर ग्रेहाउंड की तेज़ी, फुर्ती और वफ़ादारी ने नवाबों की शान को और ऊँचाई दी। आज भी जब इस नस्ल का ज़िक्र होता है, तो रामपुर की पहचान, उसकी तहज़ीब और उसकी ऐतिहासिक अहमियत अपने आप ताज़ा हो जाती है। यही वजह है कि रामपुर ग्रेहाउंड केवल एक कुत्ता नहीं, बल्कि रामपुर की मिट्टी से जुड़ी वह धरोहर है, जिस पर हर रामपुरवासी गर्व महसूस करता है।
इस लेख में हम क्रमवार समझेंगे कि किस तरह रामपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर ने इस नस्ल के जन्म की नींव रखी। फिर हम जानेंगे रामपुर ग्रेहाउंड का उद्भव और इतिहास, जिसमें नवाब अहमद अली खान बहादुर की भूमिका और नस्ल के निर्माण की पूरी कहानी सामने आएगी। इसके बाद हम विस्तार से देखेंगे रामपुर ग्रेहाउंड की विशेषताएँ और क्षमताएँ, जिनकी वजह से यह नस्ल अद्वितीय मानी जाती है। साथ ही, हम चर्चा करेंगे कि किस तरह यह नस्ल आज विलुप्ति के ख़तरे और दुर्लभता से जूझ रही है और इसके संरक्षण की ज़रूरत क्यों है। अंत में, हम यह भी देखेंगे कि किस तरह इसे राष्ट्रीय मान्यता मिली और आज यह भारतीय पुलिस बलों में अपनी नई भूमिका निभाने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
रामपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर
रामपुर की पहचान केवल उसकी इमारतों, क़िलों और नवाबी दौर की शानदार धरोहर से नहीं है। इस शहर की असली ख़ासियत उसकी तहज़ीब, भाषा, खानपान और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बसती है। यहाँ की उर्दू ज़बान की मिठास, ग़ज़लों और शायरी की रिवायत, और यहां के पकवानों की लज़्ज़त, रामपुर को उत्तर भारत की संस्कृति में एक अनोखी जगह देते हैं। रामपुर के नवाबों ने कला, संगीत और साहित्य को बढ़ावा देने के साथ-साथ ऐसी कई परंपराएँ भी शुरू कीं, जिनका असर आज भी देखा जा सकता है। इन्हीं परंपराओं में एक अद्भुत योगदान है - रामपुर ग्रेहाउंड। यह केवल एक कुत्ते की नस्ल नहीं है, बल्कि रामपुर की रचनात्मकता, ताक़त और नवाबी अंदाज़ का जीवित प्रतीक है।

रामपुर ग्रेहाउंड का उद्भव और इतिहास
रामपुर ग्रेहाउंड का जन्म 18वीं शताब्दी के अंत में हुआ, जब नवाब अहमद अली खान बहादुर (1794–1840) ने अपनी दूरदृष्टि और कल्पनाशक्ति से एक नई नस्ल तैयार करने का फ़ैसला लिया। उन्होंने अंग्रेजी ग्रेहाउंड (English Greyhound) की गति और अनुशासन को अफ़ग़ान हाउंड की ताक़त और बहादुरी के साथ मिलाकर एक ऐसा कुत्ता विकसित किया, जो एक साथ तेज़ भी हो और निडर भी। इस नस्ल को शुरुआत में शिकार के लिए पाला गया। रामपुर के घने जंगलों और कठिन इलाक़ों में यह जंगली सूअर और सियार का शिकार बड़ी आसानी से कर लेता था। लेकिन इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत थी इसका साहस - इतना कि यह बाघ और तेंदुए जैसे खूँखार जानवरों के सामने भी डटकर खड़ा हो सकता था। यह नस्ल उस दौर में रामपुर की शक्ति और शान का प्रतीक बन गई।
रामपुर ग्रेहाउंड की विशेषताएँ और क्षमताएँ
रामपुर ग्रेहाउंड मध्यम आकार का होने के बावजूद अपनी चुस्ती, फुर्ती और ताक़त में किसी से कम नहीं है। इसके लंबे, मज़बूत और मांसल पैर इसे दौड़ में बेजोड़ बनाते हैं। कहते हैं कि जब यह पूरी रफ़्तार से दौड़ता है, तो मानो ज़मीन को छूता ही नहीं। इसकी ख़ूबसूरत और लंबी काया, मज़बूत जबड़े और धारदार दाँत इसे एक बेहतरीन शिकारी बनाते हैं। लेकिन यह केवल ताक़तवर ही नहीं, बल्कि बेहद समझदार भी होता है। स्वभाव से रामपुर ग्रेहाउंड अपने मालिकों के प्रति बेहद वफ़ादार और सुरक्षात्मक होता है। यह अपने परिवार से गहरा लगाव रखता है और ख़तरे की आहट मिलते ही सुरक्षा की दीवार बनकर खड़ा हो जाता है। हालांकि अजनबियों के साथ इसका व्यवहार शुरू में थोड़ा आरक्षित रहता है, मगर भरोसा होने पर यह बेहद मिलनसार और स्नेही साबित होता है। यही वजह है कि नवाबी दौर में इसे “वफ़ादारी और शान” का दूसरा नाम कहा जाता था।

विलुप्ति का ख़तरा और दुर्लभता
समय के साथ परिस्थितियाँ बदलीं। शिकार पर क़ानूनी रोक लगने से इस नस्ल का असली इस्तेमाल लगभग बंद हो गया। इसके अलावा, इतने बड़े और ताक़तवर कुत्ते की देखभाल आसान नहीं थी - इसके लिए खुला मैदान, अच्छी खुराक और भरपूर दौड़-भाग की ज़रूरत होती है। बदलती जीवनशैली और आधुनिकता के बीच आम लोगों के लिए इन्हें पालना मुश्किल हो गया। धीरे-धीरे इनकी संख्या घटती चली गई और आज स्थिति यह है कि रामपुर ग्रेहाउंड विलुप्ति के ख़तरे में है। बहुत कम लोग अब इन्हें पालते हैं और मूल नस्ल को पहचानना भी कठिन होता जा रहा है। अगर जल्द ही संरक्षण की ठोस कोशिशें नहीं हुईं, तो आने वाली पीढ़ियाँ शायद इन्हें केवल पुरानी किताबों और तस्वीरों में ही देख पाएँगी। यह सोच कर ही मन में कसक उठती है कि इतनी शान और बहादुरी वाली नस्ल ख़ामोशी से गुमनामी में जा रही है।
राष्ट्रीय मान्यता और पहचान
रामपुर ग्रेहाउंड की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझते हुए भारत सरकार ने 2005 में इसे भारतीय डाक टिकट पर जगह दी। यह सम्मान केवल एक नस्ल को नहीं मिला, बल्कि पूरे रामपुर की उस विरासत को मान्यता दी गई, जिसका यह हिस्सा है। डाक टिकट पर जगह पाना इस बात का प्रतीक है कि रामपुर ग्रेहाउंड केवल एक पालतू जानवर नहीं, बल्कि भारत की जीवित धरोहर है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमारी परंपराएँ, चाहे वे इंसानी हों या प्रकृति से जुड़ी, उनकी रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है।

रामपुर ग्रेहाउंड और पुलिस बल में नई भूमिका
आज का भारत नए ख़तरों और चुनौतियों से जूझ रहा है। सुरक्षा बल लगातार ऐसे समाधान ढूँढ रहे हैं, जिनसे अपराध और आतंकवाद का सामना और मज़बूती से किया जा सके। इसी खोज में अब नज़रें स्वदेशी नस्लों की ओर भी गई हैं। बीएसएफ (BSF), सीआरपीएफ (CRPF) और सीआईएसएफ (CISF) जैसे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ने रामपुर ग्रेहाउंड की क्षमताओं को पहचाना है और इन्हें अपने के9 (K9 - कैनिन) दस्तों में शामिल करने की योजना बनाई जा रही है। इन्हें विस्फोटक और नशीले पदार्थों का पता लगाने, संदिग्धों की तलाश करने और ख़तरनाक इलाक़ों में गश्त के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। अगर यह पहल सफल होती है, तो रामपुर ग्रेहाउंड एक बार फिर अपने साहस और वफ़ादारी के दम पर राष्ट्रीय स्तर पर गौरव हासिल करेगा। यह केवल एक नस्ल का पुनर्जन्म नहीं होगा, बल्कि रामपुर की विरासत का भी पुनर्जीवन होगा।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/3pvbk5kz
https://tinyurl.com/5bz67t4u
https://tinyurl.com/bdexd9jw
https://tinyurl.com/bddn73jh
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