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गर्मियों के दिनों में प्रायः अनेक स्थानों पर श्वेतार्क के बीज उड़ते हुए दिखाई देते हैं। श्वेतार्क को रामपुरवासी कई स्थानों में भी देख सकते हैं, यह दक्षिण पूर्व एशिया, भारत, चीन, श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़ी झाड़ी, सफेद या लैवेंडर के फूलों के समूहों के साथ 4 मीटर तक लंबा देखा जा सकता है। इसके प्रत्येक फूल में पाँच नुकीली पंखुड़ियाँ होती हैं और एक छोटा "मुकुट" होता है जो केंद्र से ऊपर की ओर उठता है। यह पौधा कई प्रकार के कीड़ों और तितलियों की मेजबानी करता है। यह हवाई द्वीप के गैर-प्रवासी अधिप तितलियों के लिए मेजबान पौधा है। अर्क प्रजाति कीड़ों और मधुमक्खियों की मदद से परागण प्राप्त करने का एक उदाहरण है।
आयुर्वेद संहिताओं में इसकी गणना उपविषयों में की जाती है। अनेक चिकित्सकों द्वारा औषधीय रूप में श्वेतार्क का उपयोग किया जाता है। अनेक रोगों से मुक्ति के लिए इस वृक्ष का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए इसको 'वानस्पतिक पारद' की संज्ञा दी गयी है। वहीं इसके फुलों से एक टिकाऊ रेशे का उत्पादन होता है, जिसे 'बोस्ट्रिंग ऑफ इंडिया' के रूप में जाना जाता है, और इसका उपयोग रस्सियों और कालीनों को बनाने में किया जाता है।
वहीं कथित तौर पर पौधे में कवकरोधी और कीटनाशक गुण भी देखे जा सकते हैं। पारंपरिक चिकित्सा में, इसके फूल का उपयोग बुखार, खांसी और जुकाम, एक्जिमा, गठिया, मतली और दस्त जैसी सामान्य बीमारियों के लिए किया जाता था। इसके फूल लंबे समय तक चलने वाले होते हैं और थाईलैंड में उन्हें फूलों की सजावट में उपयोग किया जाता है। फूलों और पत्तियों के अर्क ने प्रीक्लिनिकल (preclinical) अध्ययनों में कम रक्त शर्करा प्रभाव दिखाया गया है। कंबोडिया में, इन फूलों को अंतिम संस्कार में उपयोग किया जाता है, कलश या कब्र और अंतिम संस्कार के लिए घर के अंदर को सजाने के लिए। वहीं इस से उत्पन्न होने वाले कपास से तकिये को भरा जा सकता है।
दुनिया भर में कई पौधों और जानवरों के अर्क का उपयोग कर तीर के जहर का उत्पादन किया जाता है। कई मामलों में, शिकार को पकड़ने के लिए जहर को तीर या भाले पर लगाया जाता था। श्वेतार्क जहरीले आक्षीर को उत्पन्न करता है जिसका उपयोग अफ्रीका में तीर के जहर के रूप में किया गया था। ये जहर सोडियम-पोटेशियम पंप को बाधित करके काम करते हैं, और इसका प्रभाव विशेष रूप से हृदय के ऊतकों में शक्तिशाली होता है। आक्षीर का उपयोग मोच, फोड़े, शरीर के दर्द और फुंसियों के उपचार के लिए भी किया जाता है। छाल का उपयोग न्यूरोडर्मोटाइटिस (neurodermatitis) और सिफलिस (syphilis) के लिए किया जाता है। लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है और लकड़ी का कोयला बनाया जाता है।
श्वेतार्क की शक्तिशाली जैव-सक्रियता को देखते हुए, कैलोट्रोपिस गिगेंटिया (calotropis gigantea) का उपयोग भारत में कई वर्षों से एक लोक चिकित्सा के रूप में किया जाता आ रहा है। आयुर्वेद में, भारतीय चिकित्सकों ने अस्थमा और सांस की तकलीफ और जिगर और तिल्ली के रोगों में इसकी जड़ और पत्ती का उपयोग किया था। इस पौधे को त्वचा, पाचन, श्वसन, संचार और स्नायु-विज्ञान विषयक विकारों के इलाज में प्रभावी बताया गया है और इसका उपयोग बुखार, फ़ीलपाँव, मतली, उल्टी और दस्त के इलाज के लिए किया गया था। साथ ही इसके दूधिया रस का उपयोग गठिया, कैंसर और साँप के काटने के लिए एक प्रतिषेधक के रूप में किया जाता था।
वैसे तो श्वेतार्क एक जहरीला पौधा है, तो इसके उपयोग से कई हानियाँ भी देखी गई हैं, जैसे इसे त्वचा में लगाने से लालिमा और दाने होने की संभावना हो सकती है। वहीं मौखिक रूप से लिए जाने पर इसका रस चरपरा और कड़वा स्वाद देता है, साथ ही गले और पेट में तेज दर्दनाक जलन पैदा करता है। इसके सेवन के बाद राल निकलना, पेट दर्द उल्टी, दस्त, धनुर्वाती आक्षेप, भेहोशी और यहाँ तक की मृत्यु भी हो सकती है।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Calotropis_gigantea
2. https://hindi.speakingtree.in/blog/content-550879
3. https://pfaf.org/user/Plant.aspx?LatinName=Calotropis+gigantea