| Post Viewership from Post Date to 21- Mar-2021 (5th day) | ||||
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भारत में टीकों की प्रभावकारिता के बारे में संदेह कोई नई बात नहीं है। इसी दुविधा का सामना अंग्रेजों (British) ने तब किया जब वे 120 साल पहले प्लेग (Plague) और हैजा के लिए टीके का अभियान शुरू किया था। जहां टीका लगाने में धार्मिक विचारों ने झिझक उत्पन्न करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं टीकाकरण के कारण एक दुखद घटना जिसमें टीकाकरण के बाद 19 लोगों की मृत्यु हो गई थी, ने भी नागरिकों के बीच अनिच्छा को उत्पन्न कर दिया था। लोगों द्वारा टीकाकरण को स्वीकार न करना कोई नई बात नहीं है, 1800 के दशक की शुरुआत में जब छोटे चेचक के टीके का इस्तेमाल बड़ी संख्या में किया जाने लगा था, तब भी कई लोगों द्वारा टीकाकरण को स्वीकार नहीं किया गया था, जिसका मुख्य कारण चेचक से बचाव के लिए काउपाक्स के छाले (Cowpox blister) का उपयोग आलोचनीय बन गया था। आलोचना मुख्य रूप से स्वास्थ्य-संबंधी, धार्मिक और राजनीतिक आपत्तियों पर आधारित थी, वहीं कुछ पादरियों का मानना था कि टीका उनके धर्म के खिलाफ है। 1970 के दशक में, डीटीपी टीके (DTP vaccine) को तंत्रिका संबंधी विकारों से जोड़ने पर विरोध की लहर का सामना करना पड़ा। टीकाकरण के विरोध का सामना करने के लिए, ऐसे कानून पारित किए गए हैं जिनके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य के उपाय के रूप में टीकाकरण की आवश्यकता होती है।
टीकाकरण के विरोध के पीछे कई कारण हैं। कुछ लोगों को संभावित एलर्जी (Allergic) प्रतिक्रियाओं के उच्च जोखिम के कारण विभिन्न टीकाकरण को त्यागना पड़ता है। लेकिन ज्यादातर जो टीके से इनकार करते हैं उन्हें इस बात से ज्ञात होना चाहिए कि इसमें थोड़ा ही जोखिम होता है। हालांकि कुछ लोग धार्मिक मान्यताओं के कारण टीकाकरण से इनकार कर देते हैं, हालांकि अधिकांश धर्म टीकों की निंदा नहीं करते हैं। वहीं एक धारणा थी कि बेहतर स्वच्छता और सफाई के कारण बीमारियां गायब हो रही हैं, टीके से नहीं। यह पहले से समाप्त संक्रामक रोगों के पुनरुत्थान के बाद गलत साबित हुई है। यह भी माना जाता था कि एक टीका हमें रोगों से संपूर्ण रूप से नहीं बचाता है और टीका लगाने के बाद भी एक व्यक्ति बीमार हो सकता है, लेकिन वे हल्के लक्षणों का अनुभव करते हैं।
यह प्रारूप मानता है कि टीके से संकोच एक व्यक्ति को आवश्यक जानकारी की कमी के कारण है और इस समस्या को हल करने के लिए उन्हें उस जानकारी को प्रदान करने का प्रयास करना अवश्य है। इस दृष्टिकोण का प्रयास करने वाले कई शैक्षिक हस्तक्षेपों के बावजूद, पर्याप्त साक्ष्य इंगित करते हैं कि अधिक जानकारी प्रदान करना अक्सर टीके के प्रति संकोच वाले व्यक्ति के विचारों को बदलने में अप्रभावी होता है और वास्तव में, इच्छित प्रभाव के विपरीत हो सकता है और उनकी गलत धारणाओं को सुदृढ़ कर सकता है। वहीं ऐसा माना जाता है कि टीके से संकोच करने वाले माता-पिता के साथ बातचीत करते समय कई संचार रणनीतियों का उपयोग किया जाना चाहिए। इनमें ईमानदार और सम्मानजनक संवाद स्थापित करना शामिल है और एक टीके के जोखिमों को स्वीकार करना लेकिन बीमारी के जोखिम के खिलाफ उन्हें संतुलित करना; माता-पिता को टीके की जानकारी के सम्मानित स्रोतों का उल्लेख करना; और टीके से संकोच करने वाले परिवारों के साथ परस्पर बातचीत को बनाए रखना। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) ने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को टीका लगाने के बारे में उनसे प्रभावकारिता और सुरक्षा के बारे में पूछताछ की जाने पर सीधे अभिभावकों की चिंताओं का समाधान करने की सिफारिश की है।
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