निहत्थे लड़ने की प्राचीन कला से मार्शल आर्ट जूडो की उत्पत्ति

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निहत्थे लड़ने की प्राचीन कला से मार्शल आर्ट जूडो की उत्पत्ति

वर्तमान समय के जूडो की उत्पत्ति स्पष्ट रूप से जापानी / चीनी (Japanese/Chinese) जूजीत्सू (Jujitsu) से जुड़ी हुई है।ऐसा माना जाता है की 1532 में स्थापित टकेनोची-रियू (Takenouchi-ryu–इसके संस्थापक टकेनोची हिसामोरी थे) मार्शल आर्ट (Martial art)विद्यालय में जापान के जूजीत्सू तकनीक की शुरुआत की गई थी।ऐसा कहा जाता है कि चीन (China) में मीन राजवंश के पतन के बाद देश को छोड़कर चिंगेम्पिन नामक एक व्यक्ति जापान आया, और येदो (Yedo– वर्तमान टोक्यो (Tokyo)) में आज़बू (Azabu) में कोकुशोजी (एक बौद्ध मंदिर) में रहने लगा। उस मंदिर में अन्य तीन समुराई फुकुनो, इसोगई और मिउरा रहते थे, एक दिन चिंगेम्पिन ने उन्हें बताया कि चीन में निहत्थे लड़नेकी एक कला मौजूद थी, जिसे उन्होंने स्वयं योद्धाओं को अभ्यास करते हुए देखा लेकिन उसके सिद्धांतों को नहीं सिख पाए। यह सुनकर, इन तीनों पुरुषों ने खोज की और बाद में इस युद्ध कला में काफी निपुण हो गए। जिसके परिणामस्वरूप जू (जो जूजीत्सू के समान है) की उत्पत्ति का श्रेय इन्हें जाता है, इनके माध्यम से ही जू संपूर्ण देश में फैला। इस कला के सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
1. एक प्रतिद्वंद्वी का विरोध करने के बजाए, अनुकूलनशीलता से जीत हासिल करना।
2. नियमित जीत को लक्ष्य नहीं बनाएं।
3. क्षुद्र और तुच्छ मामलों के बारे में बहस करने के बजाए मन को शांतचित्त स्थिर रखें।
4. अपने आस-पास की चीजों से परेशान न हों।
5. किसी भी आपात स्थिति के तहत उत्तेजित नहीं होना चाहिए लेकिन शांत रहना चाहिए।
6. और इन सभी के लिए, श्वसन के नियमों को महत्वपूर्ण माना जाता है।
टकेनोची-रियू ने निहत्थे लड़ने की कला (कोगुसोकू (Kogusoku))को सिखाया था, जो वर्तमान में सिखाई जाने वाली शैली से काफी अलग है, लेकिन इसे आमतौर पर आधुनिक जूडो कला की नींव माना जाता है। जूजीत्सू किसी हथियार के बिना केवल अपने शरीर की मदद से दूसरों पर हमला करने या खुद का बचाव करने की कला है। सामंती समय से जूजीत्सू को विभिन्न नामों के तहत जाना जाता है, जैसे यवारा (Yawara), ताई-जुत्सु (Tai-jutsu), कोगुसोकू (Kogusoku), केम्पो (Kempo) और हकुडा (Hakuda)। हालांकि उस समय जूजीत्सू और यवारा नाम सबसे व्यापक रूप से ज्ञात और उपयोग किए जाते थे। 1882 में, डॉ. जिगोरो कानो (जूडो के जनक) ने प्राचीन आत्म-रक्षा रूपों का व्यापक अध्ययन किया और इनमें से सर्वश्रेष्ठ रूपों को कोडोकन जूडो (Kodokan Judo) में एकीकृत किया।कोडोकन का शाब्दिक अर्थ है:को (व्याख्यान, अध्ययन, विधि),डो (शैली या मार्ग), और कन (विशाल कक्ष या स्थान); इसी तरह
जूडो का शाब्दिक अर्थ है: जू (कोमल) और डो (शैली या मार्ग) या “कोमल शैली”।दरसल कानो को चौदह वर्ष की आयु में शिबा (Shiba), टोक्यो (Tokyo) में अंग्रेजी-माध्यमिक विद्यालय,आईकिई- गिजुकु (Ikuei-Gijuku) में दाखिला करा दिया गया। हालांकि विद्यालय में स्थानिक विद्यार्थी द्वारा डराने-धमकाने की परंपरा मौजूद थी, जिसने कानो को जूजीत्सू के शिक्षक की तलाश करने के लिए प्रेरित किया। उनके द्वारा जूजीत्सू के शिक्षक को ढूँढने के शुरुआती प्रयास में ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई, क्योंकि उनके समय तक जापान में जूजीत्सू खत्म होने के कगार में थी। काफी पूछताछ के बाद, कानो को फुकुदा हैचिनोसुके (1828-1880 ईसवी), जूजीत्सू के एक शिक्षक के पास भेजा, फुकुदा एक छोटी नौ कालीन डोजो (Dojo) में पांच छात्रों को जूजीत्सू सिखाते थे।कहा जाता है कि फुकुदा ने औपचारिक अभ्यास की तकनीक पर बल दिया और कानो में जूडो के रैंडोरी (मुक्त अभ्यास) तकनीक के बीज बोए। फुकुदा की मृत्यु के बाद कानो ने एक अन्य इसो मसाटोमो के तेनजिन शिन'यो-रियु विद्यालय में दाखिला लिया, यहां इसो द्वारा "काटा" के अभ्यास पर अधिक जोर दिया गया। जून 1881 में इसो की मृत्यु हो गई और कानो ने किटो-रयू के इकुबो सुनेतोशी में पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।फुकुदा की तरह, इकुबो ने रैंडोरी पर अधिक जोर दिया औरकिटो-रयूके साथ नेज-वाज़ (Nage- waza -फेंकने वाली तकनीकों) पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया।फरवरी 1882 में, कानो ने एक बौद्ध मंदिर, इशो-जी में एक विद्यालय स्थापना करी। वाज़ (तकनीक) का उपयोग करने वाले व्यक्ति को टोरी कहा जाता है और जिस व्यक्ति पर वाज़ का उपयोग किया जाता है उसे उके कहा जाता है। जूडो में वाज़ (तकनीक) की तीन मूल श्रेणियां हैं:
1. नेज-वाज़ (Nage-waza -फेंकने वाली तकनीक) :नेज-वाज़ में सभी तकनीकों को शामिल किया गया है, जिसमें टोरी आमतौर पर उके को अपनी पीठ पर रखकर उके को फेंकने या गिराने का प्रयास करता है।
2. कटामे-वाज़ (Katame-waza -कुश्ती तकनीक) :इस तकनीक को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है: ओसेकोमी-वाज़(Osaekomi-waza–नियंत्रक तकनीक) में टोरी उके को फर्श पर उसकी पीठ के बल गिराता है; शाइम-वाज़(Shime-waza – अवरोधन तकनीक)में टोरी उके के श्वसन मार्ग को अवरोध करके या घोंटकर आत्मसमर्पण करवाता है और कनसेत्सु-वाज़(Kansetsu-waza - संयुक्त तकनीक)में टोरी द्वारा उके के जोड़ों में दर्दनाक हेरफेर करके उके को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करता है।
3. अटेमी-वाज़ (Atemi-waza -आक्रमण तकनीक) :इस तकनीक में टोरी एक मार्मिक जगह में वार करता है। काटा के बाहर अटेमी-वाज़ को उपयोग करने की अनुमितप्राप्त नहीं है। जूडो को ज्यादातर नेज-वाज़ और कटामे-वाज़ के लिए जाना जाता है।जूडो को सीखने वाले को जूडोका के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजी में "जुडोका (Judoka)" का आधुनिक अर्थ किसी भी स्तर की विशेषज्ञता प्राप्त जूडो व्यवसायी के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन परंपरागत रूप से 4 वें दान के पद से नीचे वाले जूडो व्यवसायी को केन्कीयू-सेई (प्रशिक्षु) कहा जाता था; और केवल 4 वें दान या उच्चतर वाले जूडो व्यवसायी को "जुडोका" कहा जाता था।एक जूडो शिक्षक को सेंसे (Sensei) कहा जाता है।साथ ही जूडो के अभ्यास और प्रतियोगिता के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक वर्दी को जुडोगी कहा जाता है। वहीं जूडो के लिए अंतरराष्ट्रीय संचालन संस्था अंतरराष्ट्रीय जूडो फेडरेशन (International Judo Federation) है, जिसे 1951 में स्थापित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय जूडो फेडरेशन के सदस्यों में अफ्रीकी जुडो यूनियन (African Judo Union), द पैन- अमेरिकन जूडो कन्फेडरेशन (Pan-American Judo Confederation), जूडो यूनियन ऑफ एशिया (Judo Union of Asia), यूरोपीय जूडो यूनियन (European Judo Union) और ओशिनिया जूडो यूनियन (Oceania Judo Union) शामिल हैं।अंतरराष्ट्रीय जूडो फेडरेशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और विश्व जूडो चैंपियनशिप को आयोजित किया जाता है और ओलंपिक जूडो स्पर्धाओं को संचालित करना शामिल है। वहीं भारत की सबसे पहली जुडोका गारिमा चौधरी का जन्म मेरठ में हुआ था। वे 2012 लंदन (London) ओलंपिक (Olympic) में भारत की एकमात्र जूडोका थी, जो महिला (63 किलो) श्रेणी में प्रतिस्पर्धा कर रही थीं।उन्होंने पेरिस (Paris) में आयोजित 2011 की विश्व जूडो चैम्पियनशिप (World Judo Championship) और विश्व कप में 2012 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के लिए अपनी योग्यता के एक हिस्से के रूप में भाग लिया।ओलंपिक के लिए तैयारी करने के लिए, चौधरी ने जर्मनी (Germany) और फ्रांस (France) में प्रशिक्षण लिया था। उन्होंने एक और प्रतिस्पर्धा उन्मुख प्रशिक्षण लिया, अपने विरोधियों का अध्ययन किया, और विशिष्ट स्वस्थता पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया।वहीं 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में चौधरी क्वार्टर फाइनल (Quarter finals)तक पहुंची थी।

संदर्भ :-
https://bit.ly/30eRkPq
https://bit.ly/3GDj7J5
https://bit.ly/3yfO1nG
https://bit.ly/31Qr12G
https://bit.ly/3Gu32oO

चित्र संदर्भ   
1. मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते चीनी योद्धाओं को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. जूजीत्सू किसी हथियार के बिना केवल अपने शरीर की मदद से दूसरों पर हमला करने या खुद का बचाव करने की कला है। जिसको दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. कानो जिगोरो (Kano Jigoro), जूडो के संस्थापक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारत की सबसे पहली जुडोका गारिमा चौधरी काको दर्शाता एक चित्रण (twitter)