
मेरठवासियों, क्या आपने कभी गहराई से सोचा है कि वह छोटा-सा राशन कार्ड (Ration Card), जिसे हम अकसर सिर्फ सस्ते गेहूं, चावल या चीनी पाने का ज़रिया मानते हैं, असल में हमारे जीवन का कितना बड़ा सहारा बन चुका है? मेरठ जैसे ज़िले में, जहाँ एक ओर तेज़ी से फैलता शहरी विस्तार है और दूसरी ओर गांवों में अब भी आर्थिक संघर्ष बना हुआ है, वहाँ राशन कार्ड न सिर्फ रसोई भरने का साधन है, बल्कि यह सामाजिक सुरक्षा, पहचान और सरकारी अधिकारों तक पहुँच का सशक्त माध्यम बन गया है। आज राशन कार्ड एक ऐसा दस्तावेज़ है जो आपके बच्चे की पढ़ाई में छात्रवृत्ति दिला सकता है, आपके घर की महिला को प्रमुख मानकर सशक्त बना सकता है, और बैंक खाता खोलने से लेकर मोबाइल सिम कार्ड (Mobile SIM card) लेने तक, आपके हर कदम में साथ निभा सकता है। यह सिर्फ एक सरकारी योजना का हिस्सा नहीं, बल्कि आपके परिवार की ज़रूरतों, अस्मिता और अवसरों को सुरक्षित रखने वाला औज़ार बन चुका है। मेरठ के चौक-चौराहों से लेकर देहात की गलियों तक, राशन कार्ड ने न जाने कितने परिवारों को खाद्य सुरक्षा, गरिमा और आत्मनिर्भरता की नई राह दिखाई है। खासतौर पर निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए यह कार्ड जीवन की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने का प्रवेश-द्वार है। इससे मिलने वाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सेवाएँ सिर्फ अनाज नहीं देतीं, बल्कि यह विश्वास दिलाती हैं कि इस देश में हर व्यक्ति को भरपेट भोजन और सम्मान से जीने का हक है।
इस लेख में हम जानने का प्रयास करेंगे कि भारत में राशन कार्ड प्रणाली का विकास किस तरह स्वतंत्रता के बाद से डिजिटलीकरण (Digitization) तक पहुँचा। हम यह भी समझेंगे कि इसकी संरचना, श्रेणियाँ और आवंटन की प्रक्रिया क्या है। साथ ही, हम देखेंगे कि राशन कार्ड कैसे अनेक सरकारी सेवाओं का प्रवेश-द्वार बन चुका है, और कैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली हमारे समाज में खाद्य सुरक्षा और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करती है। अंत में, हम मौजूदा चुनौतियों और तकनीकी सुधारों की बात करेंगे, जो इस व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत बना सकते हैं।
स्वतंत्रता से डिजिटलीकरण तक: भारत में राशन कार्ड प्रणाली का ऐतिहासिक विकास
भारत में राशन कार्ड प्रणाली की शुरुआत का मूल आधार द्वितीय विश्व युद्ध के समय पड़ा, जब ब्रिटिश (British) औपनिवेशिक सरकार ने खाद्यान्न, मिट्टी का तेल और चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए एक संगठित राशनिंग प्रणाली को लागू किया। युद्ध के बाद के वर्षों में यह व्यवस्था देश में बनी रही, और स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसे जनसंख्या में बढ़ती खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने तथा गरीबी से जूझ रहे तबकों तक पहुंच सुनिश्चित करने के एक साधन के रूप में बनाए रखा। राशनिंग बोर्डों (Rationing Boards) की स्थापना कर राज्यों में वितरण को व्यवस्थित किया गया और पात्र परिवारों को राशन कार्ड जारी किए गए। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, देश की सामाजिक और आर्थिक जरूरतों में भी बदलाव आता गया, और उसी के अनुसार इस प्रणाली में परिवर्तन किए गए। 1990 और 2000 के दशक में कम्प्यूटरीकरण (computerization) के ज़रिए इस प्रणाली में तकनीकी सुधार हुए जिससे पारदर्शिता बढ़ी और भ्रष्टाचार की संभावना में कमी आई। 1997 में शुरू की गई 'लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली' (TPDS) ने सबसे गरीब वर्ग तक सहायता पहुँचाने की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाया। 2013 में लागू ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ ने राशन प्रणाली को एक कानूनी ढांचे में समाहित किया, जिससे लोगों को खाद्य अधिकार मिला। हालिया समय में 'एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड' योजना के तहत नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में अपने राशन कार्ड के ज़रिए अनाज प्राप्त करने की सुविधा दी गई है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति मेरठ से बाहर किसी अन्य शहर में जाकर काम करता है, तो वह वहाँ भी अपने कार्ड का प्रयोग कर सस्ती दरों पर अनाज प्राप्त कर सकता है।
राशन कार्ड की संरचना, वर्गीकरण और जारी करने की प्रक्रिया
भारत में राशन कार्ड प्रणाली को अलग-अलग वर्गों के अनुकूल बनाने के लिए इसे मुख्यतः तीन श्रेणियों में बाँटा गया है - गरीबी रेखा से ऊपर (APL), गरीबी रेखा के नीचे (BPL), और अंत्योदय अन्न योजना (AAY)। इन श्रेणियों का निर्धारण सरकार द्वारा नागरिकों की आर्थिक स्थिति के आधार पर किया जाता है और प्रत्येक श्रेणी के लिए अलग-अलग लाभ निर्धारित होते हैं। मेरठ जैसे जिलों में जहाँ शहरी और ग्रामीण आबादी दोनों हैं, इन कार्डों की उपस्थिति एक प्रकार की सामाजिक पहचान भी बन जाती है। स्थायी राशन कार्ड के अतिरिक्त, राज्य सरकारें अस्थायी राशन कार्ड भी जारी करती हैं, जो विशेष परिस्थितियों में सीमित समय के लिए उपयोग में आते हैं - जैसे कि आपातकालीन राहत या प्रवासी श्रमिकों के लिए। वर्ष 2013 के ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ के बाद यह निर्देशित किया गया कि राशन कार्ड परिवार की सबसे बड़ी महिला को जारी किया जाएगा, जिससे महिला सशक्तिकरण को भी बल मिला। यदि परिवार में ऐसी महिला नहीं है, तो फिर सबसे बड़ा पुरुष सदस्य कार्ड का प्रमुख माना जाता है। कार्ड बनाने की प्रक्रिया राज्यवार अलग हो सकती है, और इसमें ऑनलाइन (online) एवं ऑफलाइन (offline) दोनों विकल्प शामिल हैं। आधार कार्ड को राशन कार्ड से जोड़ने के बाद, पात्रता निर्धारण और वितरण प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और नियंत्रण संभव हुआ है। राशन कार्ड में आवश्यक संशोधन करने की सुविधा भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाती है, और निर्धारित समयसीमा के भीतर कार्ड जारी किया जाता है, जो अधिकतम एक महीने के भीतर किया जाना आवश्यक है।
सरकारी योजनाओं में प्रवेश द्वार: राशन कार्ड के विविध उपयोग और लाभ
राशन कार्ड का उपयोग केवल अनाज प्राप्त करने तक सीमित नहीं है; यह एक ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बन चुका है जो सरकारी और गैर-सरकारी सेवाओं की पहुँच का प्रवेश द्वार है। सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त दस्तावेज़ होने के कारण, यह पहचान प्रमाण के रूप में विभिन्न स्थानों पर मान्य है। इसका उपयोग पैन कार्ड (Pan Card) प्राप्त करने, बैंक खाता खोलने, पासपोर्ट (Passport) के लिए आवेदन करने, मोबाइल सिम कार्ड लेने, ड्राइविंग लाइसेंस (Driving License) प्राप्त करने और यहां तक कि एलपीजी कनेक्शन (LPG Connection) लेने जैसे विभिन्न कार्यों में किया जाता है। आयकर रिटर्न (Income Tax Return - ITR) भरने या जीवन बीमा योजनाओं के लिए भी इसका उपयोग होता है। मेरठ जैसे शहरों में, जहाँ बड़ी संख्या में लोग नौकरी या शिक्षा के लिए दस्तावेज़ी प्रमाण की आवश्यकता महसूस करते हैं, वहाँ राशन कार्ड उनकी पहचान और पात्रता का प्रमाण बनता है। इसके अतिरिक्त, डिजिटलीकरण की प्रक्रिया ने इस कार्ड को और अधिक उपयोगी बना दिया है - अब लाभार्थी अपने कार्ड की जानकारी ऑनलाइन देख सकते हैं, जरूरत होने पर उसे डाउनलोड (download) कर सकते हैं, और विभिन्न सेवाओं से जुड़े अपडेट (update) प्राप्त कर सकते हैं। डिजिटल इंडिया अभियान के अंतर्गत राशन कार्ड को तकनीकी रूप से सशक्त बनाकर नागरिकों को और अधिक सुलभ सेवाओं से जोड़ने की दिशा में निरंतर प्रयास हो रहे हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): खाद्य सुरक्षा और सामाजिक न्याय का आधार
भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस. - PDS) दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य वितरण व्यवस्थाओं में से एक मानी जाती है, जिसका प्रमुख उद्देश्य देश के गरीब और निम्न आय वर्ग को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। इस प्रणाली के माध्यम से गेहूं, चावल, चीनी और अन्य आवश्यक वस्तुएँ उचित मूल्य की दुकानों के ज़रिए सब्सिडी (subsidy) पर उपलब्ध कराई जाती हैं। यह प्रणाली न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खरीदे गए अनाज को पहले सुरक्षित रूप से गोदामों में संग्रहित करती है, फिर उसका वितरण लाभार्थियों तक सुनिश्चित करती है। इससे न केवल किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत मिलती है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी सस्ती दरों पर खाद्य उपलब्ध होता है। मेरठ जैसे कृषि उत्पादक क्षेत्र में यह व्यवस्था किसानों और आम नागरिकों, दोनों के लिए अत्यंत लाभकारी है। यह प्रणाली खाद्यान्न की स्थिर आपूर्ति, मूल्य नियंत्रण और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का एक सशक्त उपकरण बन चुकी है। इसके ज़रिए ना केवल सामान्य परिस्थितियों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है, बल्कि आपात स्थितियों जैसे बाढ़, सूखा या महामारी के दौरान भी यह प्रणाली राहत पहुँचाने का कार्य करती है। यह सामाजिक सुरक्षा का एक ऐसा आधार है, जिस पर करोड़ों लोगों का जीवन निर्भर करता है।
मौजूदा चुनौतियाँ और सुधार की दिशा: पी.डी.एस. प्रणाली में दक्षता और पारदर्शिता के उपाय
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विशालता के बावजूद इसमें कई प्रकार की चुनौतियाँ भी देखी गई हैं। सबसे प्रमुख समस्याओं में समावेशन (inclusion) और बहिष्करण (exclusion) की त्रुटियाँ हैं, जहाँ वास्तविक लाभार्थियों को अनाज नहीं मिल पाता जबकि अपात्र लोग लाभ उठा लेते हैं। इसके अलावा, अनाज के परिवहन के दौरान भारी मात्रा में बर्बादी, गोदामों की अपर्याप्त क्षमता और वितरण में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे भी पीडीएस की कार्यकुशलता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। उदाहरण के तौर पर, पूर्व योजना आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, देशभर में 36% गेहूं और चावल की बर्बादी दर्ज की गई थी। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने विभिन्न तकनीकी उपाय अपनाए हैं, जैसे - आधार से लिंक राशन कार्ड, ई-पीओएस मशीनें (e-POS Machines), जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम (GPS Tracking System), और नागरिकों द्वारा एसएमएस (SMS) के माध्यम से निगरानी। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इन तकनीकों ने अच्छे परिणाम दिए हैं और अन्य राज्यों को भी इस मॉडल से प्रेरणा मिल रही है। मेरठ में भी डिजिटलीकरण और निगरानी के ये प्रयास तेज़ी से अपनाए जा रहे हैं, जिससे वितरण प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ी है। आने वाले समय में यदि तकनीक और नीति को एक-दूसरे के पूरक रूप में इस्तेमाल किया जाए, तो यह प्रणाली देश के हर नागरिक तक न केवल भोजन, बल्कि गरिमा और अधिकार की पूर्ति भी कर सकेगी।
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