राग जौनपुरी जैसे कई रागों को वैदिक युग से आज तक संजोया है, संगीत के घरानों ने

ध्वनि I - कंपन से संगीत तक
01-07-2024 09:42 AM
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राग जौनपुरी जैसे कई रागों को वैदिक युग से आज तक संजोया है, संगीत के घरानों ने

संगीत को एक ऐसी डोर या सेतु माना जा सकता है, जिसने वैदिक युग को आधुनिक युग के साथ जोड़ने का काम किया है। उदाहरण के तौर पर आज जौनपुर के समृद्ध संगीत घरानों में भी, वैदिक युग के कई संगीत अनुदेशों का पालन किया गया है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के ऐतिहासिक 300 रागों में से, लगभग 100 रागों का प्रयोग आज भी किया जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में कई ऐसे घराने हैं, जिन्होंने कई पीढ़ियों से हमारे संगीत की धरोहर को संजो के रखा है। भारत के कुछ उल्लेखनीय संगीत घरानों को अपने अद्वितीय योगदान और प्रसिद्ध प्रतिपादकों के लिए जाना जाता है। लेकिन इन घरानों के बारे में जानने से पहले आइये संगीत के दीर्घकालिक सफ़र को विविध समयावधि के आधार पर समझने की कोशिश करते हैं:
1. वैदिक काल (2500 ई.पू. - 500 ई.पू.): इस समय अवधि के दौरान, विभिन्न संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाने लगा। वैदिक मंत्रों के जाप से संगीत के सात स्वरों की पहचान हुई।
2. प्राचीन काल (500 ई.पू. - 500 ई.): इस अवधि में, ऋषि भरत ने नाट्यशास्त्र की रचना की, जिसमें संगीत और नृत्य की अवधारणाएँ, संगीत वाद्ययंत्रों का वर्गीकरण तथा श्रुति, स्वर, ग्राम, मूर्छा और ताल जैसे विचार शामिल थे। महान महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी संगीत वाद्ययंत्रों का उल्लेख मिलता है।
3. मध्यकालीन काल (5वीं शताब्दी ई. - 13वीं शताब्दी ई.): इस समयावधि के दौरान, संगीत से संबंधित संस्कृत ग्रंथ बृहद्देशी (जहाँ राग शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया था), जयदेव द्वारा गीत गोविंदा और शारंगदेव द्वारा संगीत रत्नाकर जैसी महत्वपूर्ण रचनाएँ रची गईं। इस समय तक उत्तर भारतीय संगीत में फ़ारसी और मध्य एशियाई प्रभाव भी दिखने लगा था। भारत में सूफ़ी संगीत का आगमन भी इसी समयावधि में हुआ।
4. दो परंपराओं का विकास (12वीं - 14वीं शताब्दी ई.): इस अवधि में, दक्षिण भारत के कर्नाटक संगीत और उत्तर भारत के हिंदुस्तानी संगीत दो अलग-अलग परंपराओं के रूप में विकसित हुए। पुरंदर दास को "कर्नाटक संगीत का जनक" माना जाता है, क्योंकि उन्होंने कई भक्ति गीतों की रचना की और कर्नाटक संगीत के बुनियादी पाठ तैयार किए। वैसे तो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में करीब 300 राग हुआ करते थे, लेकिन पिछली कई सदियों के दौरान ये सभी राग लुप्त हो चुके हैं। आज हम करीब 100 रागों के बारे में जानते हैं।
नीचे दी गई सूची में इनमें से ज़्यादातर रागों को शामिल किया गया है। यह सूची राग के नाम से वर्णानुक्रम में व्यवस्थित है।

राग थाट (सप्तक के 12 स्वरों में से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के उस समुदाय को ठाट या थाट कहते हैं जिससे राग की उत्पत्ति होती है।)
प्रस्तुति का समय
अड़ाना आसावरी रात
अहीर भैरव भैरव सुबह
आसावरी आसावरी सुबह
बागेश्री काफी रात
बहार काफी रात
बैरागी भैरव भैरव सुबह
बसंत पूर्वी रात
बसंत मुखारी सुबह
भैरव भैरव सुबह
भैरवी भैरवी कोई भी समय
भंकर भैरव सुबह
भटियार भैरव सुबह
भीमपलासी काफी दोपहर
भिन्न षड्ज खमाज रात
भूपाल तोड़ी भैरवी सुबह
भूपाली कल्याण शाम
बिहाग कल्याण रात
बिलासखानी तोड़ी भैरवी सुबह
बिलावल बिलावल सुबह
चांदनी केदार कल्याण रात
चंद्रकौंस रात
चारुकेशी
छायानट कल्याण रात
दरबारी आसावरी रात
देश खमाज शाम
देशकार बिलावल सुबह
देसी आसावरी सुबह
धानी काफी कोई भी समय
दुर्गा बिलावल रात
गारा खमाज
गौड़ मल्हार काफी मानसून
गौड़ सारंग कल्याण दोपहर
गोरख कल्याण खमाज रात
गुनक्री भैरव सुबह
गुर्जरी तोड़ी तोड़ी सुबह
हमीर कल्याण रात
हंसध्वनि बिलावल शाम
हिन्दोल कल्याण सुबह
जैजैवंती खमाज रात
जनसम्मोहिनी
जौनपुरी आसावरी सुबह
झिंझोटी खमाज रात
जोगिया भैरव सुबह
काफी काफी कोई भी समय
कालावती खमाज रात
कलिंगड़ा भैरव सुबह
कमोद कल्याण शाम
केदार कल्याण रात
खमाज खमाज शाम
किरवानी रात
ललित पूर्वी सुबह
मधुवंती तोड़ी दोपहर
मध्यमाद सारंग काफी दोपहर
मालगुंजी काफी रात
मल्हार काफी रात
मालकोंस भैरवी रात
मालकोंस पंचम भैरवी रात
मंड बिलावल कोई भी समय
मारु बिहाग कल्याण शाम
मारवा मारवा दोपहर
मियाँ मल्हार काफी मानसून
मुल्तानी तोड़ी दोपहर
नंद कल्याण रात
नट भैरव भैरव सुबह
पहाड़ी बिलावल शाम
पटदीप दोपहर
पीलू काफी कोई भी समय
पूर्वी पूर्वी दोपहर
पुरिया मारवा शाम
पुरिया धनाश्री पूर्वी शाम
रागेश्री खमाज रात
शाम कल्याण कल्याण शाम
शंकरा बिलावल शाम
शिवरंजनी काफी रात
श्री पूर्वी दोपहर
शुद्ध कल्याण कल्याण शाम
शुद्ध सारंग कल्याण दोपहर
सोहनी मारवा सुबह
तिलक कमोद खमाज रात
तिलंग खमाज शाम
तोड़ी तोड़ी सुबह
विभास भैरव सुबह
वृंदावनी सारंग काफी
यमन कल्याण शाम
यमन कल्याण कल्याण शाम
ऊपर दी गई सूची में वर्णित रागों में से “आसावरी थाट” का एक उदाहरण भी है। राग जौनपुरी या जौनपुरी राग आसावरी थाट परिवार से संबंधित है, क्योंकि इसमें ग, ध और नी जैसे सभी स्वर कोमल हैं। इस राग को बनाने का श्रेय संगीत के प्रेमी और जौनपुर सल्तनत के आखिरी शासक सुल्तान हुसैन शर्की को दिया जाता है। जौनपुरी राग भी एक अन्य प्राचीन गांधारी राग के समान है।
जौनपुरी राग काफी हद तक आसावरी थाट से मिलता-जुलता है और इन दोनों में केवल एक स्वर का अंतर होता है। जौनपुरी के आरोह में कोमल निषाद होता है, जबकि आसावरी में नहीं होता।
राग जौनपुरी में गाने के लिए कुछ सुरों को खास तरीके से लगाया जाता है। (रे), गंधार (ग), और निषाद (नि) को कोमल स्वर में गाया जाता है। बाकी सभी सुर शुद्ध स्वर होते हैं। राग जौनपुरी में कुल सात स्वर (स रे ग म प ध नि) इस्तेमाल होते हैं। इसे सुबह के दूसरे पहर (9 बजे से 12 बजे के बीच) गाया जाता है। रागों को प्राचीन समय से लेकर आजतक संजो के रखने में संगीत के घरानों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। संगीत के क्षेत्र में 'घराना' शब्द संगीतकारों के एक परिवार की वंशावली वृक्ष को संदर्भित करता है। हालांकि अब इसके दायरे में योग्य शिष्यों को भी शामिल किया जाता है। आधुनिक समय में 'घराना' शब्द संगीत में विचारों या शैली के एक विशेष स्कूल को संदर्भित करता है। इनमें से प्रत्येक शैली की विशिष्ट विशेषताएं, प्रवृत्तियां, रचनाओं के रूप, विस्तार की प्रक्रिया, अलंकरण आदि होती हैं, जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी, मौखिक परंपरा द्वारा सीधे तौर पर पारित किया जाता है।
एक घराने का नाम उस स्थान के नाम पर रखा जाता है जहाँ संगीतकार के परिवार की कम से कम तीन पीढ़ियाँ रहीं हों और उन्होंने एक विशिष्ट शैली का प्रचार किया हो ।
हिंदुस्तानी संगीत के कुछ महत्वपूर्ण घराने और उनके प्रतिपादक निम्नवत दिए गए हैं:
1. ग्वालियर घराना: हड्डू खान, हासु खान, उस्ताद रहमत खान, पं. बालकृष्ण बुआ इचलकरंजीकर पं. विष्णु दिगंबर पलुस्कर, शंकरराव पंडित और उनके पुत्र कृष्णराव पंडित, पं. ओंकारनाथ ठाकुर, पं. विनायकराव पटवर्धन, पं. नारायणराव व्यास, पं. डी.वी. पलुस्कर।
2. किराना घराना: उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, उस्ताद अब्दुल करीम खान, रोशनारा बेगम, उस्ताद फिरोज निजामी, उस्ताद शकूर खान, सवाई गंधर्व, गंगूबाई हंगल और भीमसेन जोशी।
3. आगरा घराना: उस्ताद नत्थन खान, उस्ताद फैयाज खान, उस्ताद अब्दुल्ला खान, उस्ताद विलायत हुसैन खान, उस्ताद युनुस हुसैन खान।
4. रामपुर-सहास्वान घराना: ग्वालियर घराने से उत्पन्न, उस्ताद इनायत हुसैन खान, उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान, उस्ताद इश्तियाक हुसैन खान, उस्ताद निसार हुसैन खान।
5. पटियाला घराना: उस्ताद अली बख्श और फतेह अली खान, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान।
6. जयपुर घराना: उस्ताद अल्लादिया खान, उस्ताद हैदर खान, उस्ताद मंजी खान, भूर्जी खान, केसरबाई केरकर, मोगुबाई कुर्डीकर, मल्लिकार्जुन मंसूर।
7. अतरुली घराना: उस्ताद महबूब खान 'दारास्पिया' और उस्ताद शराफत हुसैन खान।

संदर्भ
https://tinyurl.com/kr5h6aea
https://tinyurl.com/yt3ztejw
https://tinyurl.com/bdzztnzp
https://tinyurl.com/4brdshuu
https://tinyurl.com/ya337c2k

चित्र संदर्भ
1. राग जौनपुरी को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन करते संगीतकारों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. राग जौनपुरी को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
4. पं. मणि प्रसाद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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