
समयसीमा 253
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 994
मानव व उसके आविष्कार 774
भूगोल 247
जीव - जन्तु 289
उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले की गर्मियां एक अनोखी मिठास के साथ आती हैं — जमैथा का खरबूजा। इसकी खास पहचान होती है उसके छिलके पर फैली हुई जालीनुमा आकृति और भीतर छिपी हुई रसभरी मिठास। यह न सिर्फ स्थानीय बाजारों में बल्कि आस-पास के जिलों में भी अपनी सुगंध और स्वाद के लिए प्रसिद्ध रहा है। दशकों से यह फल ग्रामीण जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है, जिसे ग्रामीण किसान पीढ़ी दर पीढ़ी उगाते आ रहे हैं।इस लेख में हम जमैथा खरबूजे की विशेष पहचान को जानेंगे, फिर इसके पोषण तत्वों की जानकारी लेंगे। इसके बाद, हम देखेंगे कि यह फल स्वास्थ्य के लिए किस तरह फायदेमंद हो सकता है। फिर हम जानेंगे कि भारत के किन राज्यों में इसकी खेती की जाती है और किस प्रकार की मिट्टी व विधियाँ इसके लिए उपयुक्त होंगी। अंत में, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि इसका स्वाद क्यों घट रहा है और इसे कैसे बेहतर बनाए रखा जा सकता है।
जमैथा खरबूजे की अनोखी पहचान
जमैथा का खरबूजा जौनपुर की ज़ायद फसल की एक महत्वपूर्ण पहचान है, जिसे उसकी विशिष्ट जालीदार त्वचा, गाढ़े पीले रंग और मीठे गूदे के लिए जाना जाता है। गर्मियों की शुरुआत होते ही यह फल बाजारों में छा जाता है और स्थानीय लोगों के लिए यह मौसम का प्रतीक बन चुका है। स्थानीय ग्रामीण भाषा में इसे ‘गंधी खरबूजा’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें एक प्राकृतिक सौंधी खुशबू होती है।
इसकी जालीदार परत और छिलके की कठोरता इसे बाजार में ज्यादा दिन तक टिकाऊ बनाती है, जो इसकी मांग को और भी बढ़ाती है। पारंपरिक रूप से किसान इसे नहर के पानी से सींचते हैं और गोबर की खाद का उपयोग करते हैं, जिससे इसमें मिठास स्वाभाविक रूप से भर जाती है। यही विशेषताएं इसे उत्तर भारत के अन्य खरबूजों से अलग बनाती हैं।
खरबूजे का पोषण मूल्य
जमैथा खरबूजा न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत पोषक भी है। यह विटामिन A, B, C, नियासिन, फोलिक एसिड, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मैग्नीशियम, फाइबर और पोटैशियम जैसे कई आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह शरीर को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखता है, जिससे गर्मियों में लू लगने की संभावना कम हो जाती है।
एक कप खरबूजे में लगभग 516 RE विटामिन A, 68 मिलीग्राम विटामिन C, और 494 मिलीग्राम पोटैशियम होता है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि यह फल न केवल हाइड्रेशन के लिए उपयोगी है, बल्कि यह शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स के संतुलन को भी बनाए रखने में सहायक होता है। इसमें कैलोरी की मात्रा भी बहुत कम होती है, जिससे यह डाइटिंग करने वालों के लिए एक आदर्श फल है।
जमैथा खरबूजे के स्वास्थ्य लाभ
इसका सेवन गर्मियों के दिनों में शरीर को ठंडक पहुंचाता है, थकान को दूर करता है और ऊर्जा प्रदान करता है। विटामिन C की अधिकता के कारण यह कोलेजन के निर्माण में सहायक होता है, जिससे त्वचा में कसाव बना रहता है और झुर्रियां देर से आती हैं। साथ ही, इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर को फ्री रेडिकल्स से लड़ने की ताकत देते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होती है।
इसके अलावा, पाचन क्रिया को सुधारने के लिए इसमें घुलनशील फाइबर पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है, जो कब्ज और एसिडिटी जैसी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। आयुर्वेद में भी खरबूजे को मूत्रल (diuretic) माना गया है, जो शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायक होता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर उम्र के लिए यह फल स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।
भारत में खरबूजे की खेती
खरबूजे की खेती भारत के अनेक भागों में की जाती है, विशेषकर उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में। इसकी खेती के लिए गहरी, उपजाऊ, रेतीली-दोमट मिट्टी और अच्छे जल निकास वाली भूमि की आवश्यकता होती है। उत्तर भारत में इसकी बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती है, जबकि दक्षिण भारत में यह नवंबर से जनवरी तक बोया जाता है।
खेती के लिए खेत को अच्छे से जोतकर उसमें जैविक खाद मिलाया जाता है। पौधों को लगभग एक मीटर की दूरी पर बोया जाता है और उन्हें ड्रिप इरिगेशन या नहर के पानी से सींचा जाता है। नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात ने ग्रीनहाउस तकनीक द्वारा खरबूजे की बेमौसम खेती को संभव बना दिया है, जिससे किसानों को अतिरिक्त लाभ हो रहा है। परंपरागत पद्धतियों और वैज्ञानिक अनुसंधान के मेल से इसकी गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ाए जा सकते हैं।
स्वाद में गिरावट के कारण
जमैथा खरबूजे की मिठास अब पहले जैसी नहीं रही। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग है, जिससे न केवल मिट्टी की उर्वरता घटी है, बल्कि फल का प्राकृतिक स्वाद भी समाप्त होने लगा है। पहले किसान गोबर, मूत्र और जैविक खाद का उपयोग करते थे, जिससे फल धीरे-धीरे पकता था और उसमें प्राकृतिक मिठास विकसित होती थी।
अब किसान अधिक उपज के चक्कर में रसायनों पर निर्भर हो गए हैं, जिससे न केवल मिठास कम हो गई है, बल्कि फलों का आकार भी असामान्य हो गया है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन, बेमौसम बारिश और फसल चक्र के पालन न करने जैसे कारण भी इसके स्वाद को प्रभावित कर रहे हैं। यदि यह स्थिति यूँ ही बनी रही, तो आने वाली पीढ़ियाँ जमैथा खरबूजे की असली मिठास को केवल कहानियों में ही जान पाएंगी।
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.