समय - सीमा 273
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1050
मानव और उनके आविष्कार 811
भूगोल 272
जीव-जंतु 312
औपनिवेशिक काल के दौरान एक ओर भारतीय लोग ब्रिटिश के अत्याचार का, वहीं दूसरी ओर भारत में व्याप्त अंधविश्वास और कठोर कुरीतियों का शिकार हो रहे थे। पश्चिमी सभ्यता को देख कई भारतीयों में जाति प्रथा, बहुविवाह प्रथा, बाल-विवाह, छूआछूत, महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखना आदि को खंडित करने की जागरूकता उत्पन्न हुई। उस दौरान इन रूढ़िवादी बिचारों का खंडन करने के लिए कई महान लोगों ने महत्वपूर्ण कदम उठाए। आइए आपको बताते हैं इन्हीं में से ‘स्वामी दयानंद सरस्वती’ द्वारा उठाए गए एक महत्वपूर्ण कदम के बारे में।
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म काठियावाड़ के रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने लगभग 21 वर्ष की आयु में विवाह न करने तथा ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करने के लिये घर छोड़ दिया था। उसके बाद उन्होंने समस्त भारत का भ्रमण किया और मथुरा में वेदों के परम ज्ञानी स्वामी विरजानंद सरस्वती की छत्र-छाया में अपनी शिक्षा पूरी की। यह एक ईश्वर को मानते थे और बहु ईश्वरवाद तथा मूर्तिपूजा के खिलाफ थे। इसलिए उनके द्वारा समाजिक विषमताओं जैसे जाति प्रथा, बाल-विवाह और अस्पृश्यता का विरोध भी किया गया।
उन्होंने इन सब प्रथाओं का खंडन करने के लिए तथा लोगों को इस सोच के विरुद्ध जागरूक करने के लिए 10 अप्रैल, 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लोगों को उपदेश देने में और भारत में आर्य समाज के नए केंद्र स्थापित करने में व्यतीत कर दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उनके द्वारा प्रारंभ किये गये आन्दोलन को जारी रखा, जो आज भी जारी है। स्वामी दयानंद के अनुयायियों द्वारा किए गए पूर्व और वर्तमान कार्य इस प्रकार हैं-
i. आर्य समाज के कार्यकर्ताओं ने शिक्षा को अपना माध्यम बना कर लोगों को जागरुक किया। इनके द्वारा दो शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की गयी। सर्वप्रथम गुरुकुल की स्थापना कांगड़ी (हरिद्वार) में वर्ष 1902 में हुई, जिसमें मुंशी राम जी का बड़ा योगदान था। वर्तमान में समूचे देश में लगभग 300 गुरुकुल (स्कूल व कॉलेज दोनों) हैं, जिनमें संस्कृत शिक्षण का मुख्य माध्यम है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल व पंजाब राज्यों के अधिकांश जिला मुख्यालयों में गुरुकुल के केंद्र हैं। और वहीं आर्य समाज के इतिहास में 1886 में लाहौर में पहले डी.ए.वी. (दयानंद एंग्लो वैदिक्/ Dayanand Anglo Vedic) कॉलेज की स्थापना अविस्मरणीय पहल रही। वर्तमान में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान व झारखंड में इसकी संस्थाएं बहुतायत में हैं।
ii. इनके द्वारा बड़े पैमाने पर समाज सेवा (मानवजाति की भौतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दशा का उत्थान) की जाती है।
iii. इन्होंने विधवा विवाह विशेषकर बाल विधवा विवाह के लिए आंदोलन किए। वहीं पंजाब के मानव सेवी सर गंगा राम ने विधवाओं की दशा सुधारने के लिए उल्लेखनीय कार्य किए।
iv. आर्य समाज के कार्यकर्ताओं में ‘शुद्धि’ कार्य विशेष रुप से उल्लेखनीय है। जैसे कि, जो स्वेच्छा से अपना धर्मांतरण करना चाहता हो, का धर्मांतरण कर हिंदू संस्कार देना और या पहले ही धर्मांतरण कर चुके लोगों को सही मार्ग दिखाना और शुद्धि करना।
v. ये दलित वर्गों की स्थिति सुधारने में भी अपना योगदान देते हैं।
vi. आर्य समाज द्वारा हिंदी भाषा को भारत के संविधान में राजभाषा बनाने के लिये काफी प्रयास किए गए।
आर्य समाज ने भारतियों में नव-उत्साह व आत्म गौरव का संचार करके सकारात्मक भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय रूढ़िवादी सोच पर कठोर प्रहार हुआ।
संदर्भ:
1. सांस्कृतिक एटलस, राष्ट्रीय एटलस एवं थिमैटिक मानचित्रण संगठन (NATMO)
2. http://www.thearyasamaj.org/home
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.