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एक समय ऐसा भी था जब जौनपुर मुस्लिम शिक्षा और विज्ञान का बहुत बड़ा केंद्र बन गया था जहां पुरे विश्व से लोग ज्ञान लेने आते थे इसी कारण शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान जौनपुर को शिराज़े हिंद के नाम से नवाजा गया। यहां के हर शासक को गर्व था कि वे इस्लामिक ज्ञान और दर्शन के संरक्षक हैं। शर्कीकाल में जनपद जौनपुर शिक्षा, संस्क़ृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता था जिसने भारत के अलावा हेरात और बदख्शां जैसे देशों से भी छात्रों को अपनी ओर आकर्षित किया। उस समय में यहां दुनिया के कुछ शीर्ष मदरसे थे। परंतु अब यहां के मदरसे, शीर्ष 10 मदरसों की सूची में भी नहीं आते हैं। क्या आप जानते है कि इसका कारण क्या था? तो चलिये जानते हैं कि क्यों यहां के शीर्ष मदरसों को ध्वस्त कर दिया गया और आज उनका अस्तित्व केवल इतिहास के पन्नों में मिलता है।
मदरसा शब्द का मतलब है ‘एक ऐसी जगह जहाँ पर शिक्षा दी जाती है और इनकी शुरूआत मस्जिदों से हुई थी।‘ चौथी शताब्दी में मस्जिदों का इस्तेमाल शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाने लगा। इस अवधि के दौरान मदरसों की अगुवाई वाली मस्जिदों की स्थापना सामान्य प्रवृत्ति थी। भारत में यदि इनकी बात की जाए तो उत्तर भारत के मध्य में स्वतंत्र मुस्लिम शासन की स्थापना सातवीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में कुतुब-उद-दीन ऐबक (1209) के शासन काल के दौरान शुरू हुई और मुल्तान में, नासिर अल-दीन कुबाचा, वहां शासक था, जिसने एक मदरसे का निर्माण किया जिसका प्रबंधन प्रसिद्ध विद्वान और लेखक, काजी मिनहाज-ए सिराज (1259) ने किया था। इस दौरन दो और मदरसों के नाम इतिहास में पाए जाते हैं; जिनके नाम मदरसा-ए माइजियो और मदरसा-ए नासिरिया थे।
हिजरी के आठवीं शताब्दी तक भारत में इस्लामिक स्कूलों की स्थापना का रिवाज आम हो गया था, अकेले दिल्ली में सुल्तान मुहम्मद तुगलक (1324) के शासनकाल में एक हज़ार मदरसे थे, जिनमें शिक्षकों के लिए वेतन शाही खजाने से दिया जाता था। यहां पर धर्मों के साथ-साथ तर्कसंगत विज्ञान और गणित को भी पढ़ाया जाता था। मुहम्मद मुग़ल के बाद फिरोज़ शाह तुगलक के शासन काल में उन्होंने पुराने मदरसे पुननिर्मित करवाये और कई नये मदरसों का निर्माण करवाया। उन्होंने गुलामों और बच्चों की शिक्षा तथा प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया एवं लड़कियों के लिए अलग स्कूल भी स्थापित किए।
शर्की सुल्तान पूर्वी भारत में जौनपुर के शासक थे। उन्होंने सैकड़ों मदरसों का निर्माण किया और विद्वानों को आमंत्रित करते हुए उन्हें बहुमूल्य जागीरें प्रदान कीं। जौनपुर की विषयक और शैक्षिक श्रेष्ठता लोदी सुल्तानों के अंतिम काल तक चली। मुहम्मद शाह के शासन काल तक 50 प्रसिद्ध मदरसे जौनपुर में थे जिन्हें इस्लामी अध्यात्मवाद में विश्व के सर्वश्रेष्ठ मदरसों में से एक माना जाता था। उस समय जौनपुर शिक्षा, संस्क़ृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में सबसे आगे था। परंतु इन ऐतिहासिक मदरसों में से नाम मात्र के मदरसे ही आज बचे हुए हैं।
जब दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने जौनपुर पर आक्रमण कर अपना कब्जा किया तो उसने सभी मस्जिदों और मदरसों को नष्ट करवा दिया। इसी कारण आज यहां पुराने ऐतिहासिक मदरसे नहीं हैं। लेकिन अभी भी कई मस्जिदें जैसे कि अटाला मस्जिद, लाल दरवाजा मस्जिद और जामा मस्जिद मौजूद हैं जिनकी गंध आज भी यहां विद्यमान है। अटाला मस्जिद को शर्की राजवंश के इब्राहीमशाह (1402-1438 ई.) ने 1408 ई. में बनवाया। हालांकि इसकी आधारशिला 1377 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक तृतीय के शासनकाल में रखी गई थी। इस मस्जिद के साथ जौनपुर का सबसे पुराना मदरसा भी जुड़ा हुआ है। मस्जिद से लगी मदरसे की इमारत आज तक मौजूद है। जिसके बारे में कहा जाता है कि भारत के प्रसिद्ध और चतुर शहेंशाह शेरशाह सूरी ने इस मस्जिद-मदरसा से शिक्षा ग्रहण की थी। इस मदरसे को ‘मदरसा दीन दुनिया’ के नाम से जाना जाता है। इसके अंदर की वास्तुकला अभी भी पुराने अताला देवी मंदिर को दिखाती है, जिसे राजा पृथ्वीराज चौहान के ससुर राजा विजया चंद्र ने बनाया था। इसके अलावा बीबी राजी ने सभी स्थानीय मुस्लिम निवासियों के लिए जौनपुर में लाल दरवाजा के आस-पास के इलाके में एक धार्मिक विद्यालय की स्थापना की, जिसका नाम जामिया हुसैनिया रखा गया था और यह आज तक मौजूद है। लाल दरवाजा मस्जिद (लाल पोर्टल मस्जिद या रूबी गेट मस्जिद) का निर्माण 1447 में रानी राजे बीबी ने किया था। यह मस्जिद जौनपुर के एक मुस्लिम संत मौलाना सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन को समर्पित है।
संदर्भ:
1.https://archive.org/stream/historyofdeoband/HistoryOfTheDarAlUlumDeoband-Volume11980_djvu.txt
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Lal_Darwaza_Masjid,_Jaunpur
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Atala_Mosque,_Jaunpur