 
                                            समय - सीमा 268
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                                            आज बसंत पंचमी है और इस ऋतू का इंतज़ार तो हम सभी करते है। बसंत ऋतू के आगमन से ही मानो जैसे आसमान चमक उठता है, फूल खिल उठते है, चारो ओर चिड़िया चहचहाने लगते है और बस खुसी का ही माहौल होता है। तो इस बसंत पंचमी हम आपके लिए सुमित्रानंदन पंत की एक कविता लाये है और बसंत ऋतू की एक बेहत ही मनमोहक वीडियो लाये है जिसे देख आपका मन हर्षोउल्लाश से भर उठेगा। तो कृपया इस वीडियो को देखे और बसंत ऋतू पर कविता लें।
फिर वसंत की आत्मा आई,
मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण, अभिवादन करता भू का मन!
दीप्त दिशाओं के वातायन,
प्रीति साँस-सा मलय समीरण,
चंचल नील, नवल भू यौवन,
फिर वसंत की आत्मा आई,
आम्र मौर में गूँथ स्वर्ण कण,
किंशुक को कर ज्वाल वसन तन !
देख चुका मन कितने पतझर,ग्रीष्म शरद, हिम पावस सुंदर,
ऋतुओं की ऋतु यह कुसुमाकर,
फिर वसंत की आत्मा आई,
विरह मिलन के खुले प्रीति व्रण,
स्वप्नों से शोभा प्ररोह मन !
सब युग सब ऋतु थीं आयोजन,तुम आओगी वे थीं साधन,
तुम्हें भूल कटते ही कब क्षण?
फिर वसंत की आत्मा आई,
देव, हुआ फिर नवल युगागम,
स्वर्ग धरा का सफल समागम !    
सन्दर्भ:
1. https://vimeo.com/11904553 
                                         
                                         
                                         
                                        