 
                                            समय - सीमा 268
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प्रत्येक धर्म में उसके अपने विश्वास और अपनी मान्यताएं होती हैं। इस्लाम धर्म में भी कई विश्वास और मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें ‘क़दर’ भी एक है। कदर का अर्थ है ‘भाग्य’, ‘दिव्य अग्र-समन्वय या पूर्वनिर्धारण। शाब्दिक रूप से इस शब्द से तात्पर्य ‘शक्ति’ से है। इस्लाम धर्म में यह ईश्वरीय भाग्य की अवधारणा को संदर्भित करता है। अल्लाह की अखंडता, कुरान, इस्लाम के पैगंबर, पुनरुत्थान और स्वर्गदूतों के दिन के साथ यह इस्लामी विश्वास के छह लेखों में से एक है। इस अवधारणा को कुरान में अल्लाह के ‘हुक्मनामे या निर्णय’ के रूप में भी उल्लेखित किया गया है।  इस्लाम के अंतर्गत अंग्रेजी भाषा में इसे प्रीडेस्टेनेशन (Pre-destination-पूर्वनिर्धारण) कहा जाता है, जिसे सुन्नी मुसलमान अल-क़दा वा आई-क़दर कहते हैं। सुन्नी विश्वास के अनुसार, इस वाक्यांश का अर्थ है – ‘दिव्य हुक्मनामा या दिव्य निर्णय और पूर्वनिर्धारण’। अधिक निकटता से देखा जाए तो अल-क़दा से तात्पर्य ‘शक्ति (दिव्य)’ से है। यह मापन, लक्ष्य निर्धारण, गणना, तैयारी, समर्थतता और शक्ति से संबंधित अवधारणाओं को दर्शाता है। इस अवधारणा को लेकर कई मत हैं, जिनमें से कुछ इसके समर्थक हैं तो कुछ आलोचक। प्रायः ऐसे दो समूह हैं,   जो तटस्थ दृष्टिकोण क़दर के बारे में अपने विचार या मत रखते हैं। 'जबरिया समूह' इस अवधारणा का समर्थन करता है तथा कहता है कि मनुष्यों का अपने कार्यों पर कोई नियंत्रण नहीं है और जो कुछ उसके साथ होता है वह सब भगवान द्वारा निर्धारित किया जाता है। दूसरा समूह 'कदरियाह' इस अवधारणा का आलोचक है तथा कहता है कि मनुष्य का अपने भाग्य पर पूर्ण नियंत्रण है। यह नियंत्रण इस हद तक है कि स्वयं भगवान को भी यह पता नहीं है कि मनुष्य क्या करने का विकल्प चुनेगा।
इस्लाम धर्म के सुन्नी सम्प्रदाय का दृष्टिकोण इन दोनों विचारों या मतों का एक संश्लेषण है। वे मानते हैं कि ईश्वर को हर उस चीज़ का ज्ञान है जो होन वाली है। लेकिन साथ ही वह इस बात का भी समर्थन करते हैं कि जो कुछ भी होगा उसे चयनित करने की स्वतंत्रता या विकल्प की स्वतंत्रता मनुष्यों को है। इब्न उमर इस अवधारणा के प्रबल समर्थक थे जबकि माबाद अल-जुहानी, सुन्नी सम्प्रदाय के इस दृष्टिकोण की आलोचना करने वालों में से एक थे। अल-क़दर विश्वास चार बातों पर आधारित है। पहला अल-इल्म (Al-'ilm) अर्थात ज्ञान, दूसरा किताबत (Kitabat) अर्थात लेखन, तीसरा मशीहत (Mashii'at) अर्थात इच्छा तथा अल खल्क (Al-Khalq) अर्थात निर्माण और गठन। ज्ञान से मतलब है कि अल्लाह उन सभी बातों को जानता है जो बीत चुकी हैं, जो होने वाली हैं और जो हो रही हैं। वह यह भी जानता है कि उसकी बनायी रचना क्या कर्म करेगी। लेखन का मतलब है कि अल्लाह ने हर उस चीज़ को लिखा है, जो अभी अस्तित्व में है और होगी। इच्छा से तात्पर्य है कि सब कुछ अल्लाह की इच्छा पर निर्भर है। जो ईश्वर चाहता है वो होता है और जो नहीं चाहता वो नहीं होता।
 अधिक निकटता से देखा जाए तो अल-क़दा से तात्पर्य ‘शक्ति (दिव्य)’ से है। यह मापन, लक्ष्य निर्धारण, गणना, तैयारी, समर्थतता और शक्ति से संबंधित अवधारणाओं को दर्शाता है। इस अवधारणा को लेकर कई मत हैं, जिनमें से कुछ इसके समर्थक हैं तो कुछ आलोचक। प्रायः ऐसे दो समूह हैं,   जो तटस्थ दृष्टिकोण क़दर के बारे में अपने विचार या मत रखते हैं। 'जबरिया समूह' इस अवधारणा का समर्थन करता है तथा कहता है कि मनुष्यों का अपने कार्यों पर कोई नियंत्रण नहीं है और जो कुछ उसके साथ होता है वह सब भगवान द्वारा निर्धारित किया जाता है। दूसरा समूह 'कदरियाह' इस अवधारणा का आलोचक है तथा कहता है कि मनुष्य का अपने भाग्य पर पूर्ण नियंत्रण है। यह नियंत्रण इस हद तक है कि स्वयं भगवान को भी यह पता नहीं है कि मनुष्य क्या करने का विकल्प चुनेगा।
इस्लाम धर्म के सुन्नी सम्प्रदाय का दृष्टिकोण इन दोनों विचारों या मतों का एक संश्लेषण है। वे मानते हैं कि ईश्वर को हर उस चीज़ का ज्ञान है जो होन वाली है। लेकिन साथ ही वह इस बात का भी समर्थन करते हैं कि जो कुछ भी होगा उसे चयनित करने की स्वतंत्रता या विकल्प की स्वतंत्रता मनुष्यों को है। इब्न उमर इस अवधारणा के प्रबल समर्थक थे जबकि माबाद अल-जुहानी, सुन्नी सम्प्रदाय के इस दृष्टिकोण की आलोचना करने वालों में से एक थे। अल-क़दर विश्वास चार बातों पर आधारित है। पहला अल-इल्म (Al-'ilm) अर्थात ज्ञान, दूसरा किताबत (Kitabat) अर्थात लेखन, तीसरा मशीहत (Mashii'at) अर्थात इच्छा तथा अल खल्क (Al-Khalq) अर्थात निर्माण और गठन। ज्ञान से मतलब है कि अल्लाह उन सभी बातों को जानता है जो बीत चुकी हैं, जो होने वाली हैं और जो हो रही हैं। वह यह भी जानता है कि उसकी बनायी रचना क्या कर्म करेगी। लेखन का मतलब है कि अल्लाह ने हर उस चीज़ को लिखा है, जो अभी अस्तित्व में है और होगी। इच्छा से तात्पर्य है कि सब कुछ अल्लाह की इच्छा पर निर्भर है। जो ईश्वर चाहता है वो होता है और जो नहीं चाहता वो नहीं होता। आकाश या पृथ्वी पर होने वाली कोई भी हलचल उसकी इच्छा से होती है। तकदीर (Taqdīr) क़दर के उपसमुच्चय का रूप है, जिसका अर्थ है माप के अनुसार वस्तुओं का निर्माण। यह अवधारणा इस बात पर आधारित है कि ईश्वर की सारी रचना में पूर्ण निपुणता है। इस अवधारणा में, मानव को ईश्वर द्वारा साधन या माध्यम प्रदान किये जाते हैं, न कि वह उन्हें अपने माध्यम से प्राप्त होते हैं। यह इस्लामी मान्यता का एक अभिन्न अंग है। मुसलमान आमतौर पर मानते हैं कि जो कुछ हुआ है और भविष्य में जो कुछ भी होगा वह सब कुछ भगवान द्वारा होने दिया जाएगा।
भिन्न-भिन्न मतों की जब एक दूसरे से तुलना की गयी, तब प्रत्येक मत अधूरे धर्मशास्त्र का निर्माण करते मिले। लेकिन कुरान और सुन्नत सम्प्रदाय ने इन दो मतों के बीच के मध्य मार्ग का अनुसरण किया, जिसके अनुसार पूरे ब्रह्मांड पर अल्लाह का संप्रभु है और वह सभी चीजों को पहले से ही जानता है तथा उन्हें असीम शक्ति के साथ अस्तित्व में रखता है। लेकिन इसके साथ ही, अल्लाह ने मानव को अपने कर्मों का परीक्षण करने के लिए उसकी मर्जी सौंपी है। उन फरमानों या हुक्मों की पूर्ति हमारे द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर बदल सकती है। अगर अल्लाह हमारे लिए एक बुरी किस्मत का फैसला करता है, तो वह इसे बदल सकता है यदि हम उसके लिए ईमानदारी से अच्छा काम करते हैं। हमारी ईश्वर प्रदत्त इच्छा, अल्लाह की इच्छा के अधीन है। सभी लोगों के पास अंततः दो संभावित गंतव्य एक नरक दूसरा स्वर्ग हैं, और इनमें से केवल एक ही स्थान मनुष्य को प्राप्त होगा।
 आकाश या पृथ्वी पर होने वाली कोई भी हलचल उसकी इच्छा से होती है। तकदीर (Taqdīr) क़दर के उपसमुच्चय का रूप है, जिसका अर्थ है माप के अनुसार वस्तुओं का निर्माण। यह अवधारणा इस बात पर आधारित है कि ईश्वर की सारी रचना में पूर्ण निपुणता है। इस अवधारणा में, मानव को ईश्वर द्वारा साधन या माध्यम प्रदान किये जाते हैं, न कि वह उन्हें अपने माध्यम से प्राप्त होते हैं। यह इस्लामी मान्यता का एक अभिन्न अंग है। मुसलमान आमतौर पर मानते हैं कि जो कुछ हुआ है और भविष्य में जो कुछ भी होगा वह सब कुछ भगवान द्वारा होने दिया जाएगा।
भिन्न-भिन्न मतों की जब एक दूसरे से तुलना की गयी, तब प्रत्येक मत अधूरे धर्मशास्त्र का निर्माण करते मिले। लेकिन कुरान और सुन्नत सम्प्रदाय ने इन दो मतों के बीच के मध्य मार्ग का अनुसरण किया, जिसके अनुसार पूरे ब्रह्मांड पर अल्लाह का संप्रभु है और वह सभी चीजों को पहले से ही जानता है तथा उन्हें असीम शक्ति के साथ अस्तित्व में रखता है। लेकिन इसके साथ ही, अल्लाह ने मानव को अपने कर्मों का परीक्षण करने के लिए उसकी मर्जी सौंपी है। उन फरमानों या हुक्मों की पूर्ति हमारे द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर बदल सकती है। अगर अल्लाह हमारे लिए एक बुरी किस्मत का फैसला करता है, तो वह इसे बदल सकता है यदि हम उसके लिए ईमानदारी से अच्छा काम करते हैं। हमारी ईश्वर प्रदत्त इच्छा, अल्लाह की इच्छा के अधीन है। सभी लोगों के पास अंततः दो संभावित गंतव्य एक नरक दूसरा स्वर्ग हैं, और इनमें से केवल एक ही स्थान मनुष्य को प्राप्त होगा।
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        