 
                                            समय - सीमा 268
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भाई बहनों का आपस में एक दूसरे के लिए गहरा लगाव होता है। भाई-बहन के बीच स्नेह का बंधन बहुत अनोखा होता है। वे एक दूसरे की जितनी परवाह करते हैं, उसकी  कोई सीमा नहीं होती। उनके आपसी प्यार की किसी से तुलना नहीं की जा सकती।  इस कालातीत भावना की गूंज भारत की पौराणिक कथाओं और उसके इतिहास में सुनाई देती है। इनसे हमें बहुत से असाधारण भाई बहनों की जोड़ियों के उदाहरण भी मिलते हैं।
 रावण और शूर्पणखा
 पवित्र रामायण महाकाव्य की कहानियां सुनकर बड़े हुए हर एक व्यक्ति को रावण और शूर्पणखा का प्रसंग अच्छी तरह से याद होगा।  इन भाई-बहन का जन्म साधु विश्रव और राक्षसी कैकसी  के घर में हुआ था। कहा जाता है कि  शूर्पणखा  को पहली नजर में भगवान राम पसंद आ गए, जब वे पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में थे। भगवान राम ने बहुत नम्रता के साथ शूर्पणखा  का विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो जैसे की कथा बताई जाती है,  शूर्पणखा  को अपनी नाक गंवानी पड़ गई। लक्ष्मण ने उसकी नाक काटी थी, दर्द से तड़पती शूर्पणखा  ने लौटकर आपबीती अपने भाई रावण को सुनाई जो लंका के राजा थे। रावण ने क्रुद्ध होकर प्रतिशोध में सीता का अपहरण किया।
पवित्र रामायण महाकाव्य की कहानियां सुनकर बड़े हुए हर एक व्यक्ति को रावण और शूर्पणखा का प्रसंग अच्छी तरह से याद होगा।  इन भाई-बहन का जन्म साधु विश्रव और राक्षसी कैकसी  के घर में हुआ था। कहा जाता है कि  शूर्पणखा  को पहली नजर में भगवान राम पसंद आ गए, जब वे पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में थे। भगवान राम ने बहुत नम्रता के साथ शूर्पणखा  का विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो जैसे की कथा बताई जाती है,  शूर्पणखा  को अपनी नाक गंवानी पड़ गई। लक्ष्मण ने उसकी नाक काटी थी, दर्द से तड़पती शूर्पणखा  ने लौटकर आपबीती अपने भाई रावण को सुनाई जो लंका के राजा थे। रावण ने क्रुद्ध होकर प्रतिशोध में सीता का अपहरण किया।
 कंस और देवकी
 कंस और देवकी
इतिहास में कंस को भगवान कृष्ण का मामा बताया जाता है। जीवन भर कंस जगन और अपवित्र कामों में लिप्त रहा, जिसमें अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को बंदी बनाकर पीटना भी शामिल था क्योंकि एक भविष्यवाणी में यह बताया गया था कि देवकी और वासुदेव की संतान कंस की मौत का कारण बनेगी। कंस ने हर कोशिश कर ली अपने भाग्य को बदलने की लेकिन अंततः बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और कृष्ण के हाथों कंस का अंत हुआ।
सुभद्रा, कृष्ण और बलराम
सुभद्रा का जन्म कृष्ण और बलराम की दुलारी बहन के रूप में हुआ था। कृष्ण ने प्रमुख भूमिका निभाते हुए सुभद्रा का विवाह अर्जुन के साथ किया। इस संबंध के चलते कृष्ण आसानी से अर्जुन और पांडवों की मदद कर सकें और कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों की विजय हुई। सुभद्रा और अर्जुन का परम योद्धा पुत्र था अभिमन्यु। उड़ीसा के के मंदिर के गर्भ गृह में कृष्ण और बलराम के साथ सुभद्रा का चित्र लगा है।
 यमराज और यमुना
 यमराज और यमुना
ऋग्वेद के अनुसार अमिया और यमुना नदी यमराज की जुड़वा बहन है। यमराज  को हिंदू पौराणिक  ग्रंथों में मृत्यु का देवता माना जाता है। इन दोनों का जन्म सारन्यू  और विवासवन्त  के यहां हुआ था। ऐसा माना जाता है कि रक्षाबंधन की शुरुआत यामी और यमराज द्वारा हुई थी। पौराणिक हिंदू कथानक के अनुसार यमुना  ने यम को  राखी बांधी और उसे अमर बना दिया।  यम ने बहन  के इस स्नेहिल कृत्य से प्रभावित होकर घोषणा की थी कि जो भी अपनी बहन से राखी बंधवाएगा,  उसे लंबी आयु का वरदान मिलेगा।
 पार्वती और विष्णु
 पार्वती और विष्णु
सती (भगवान शिव की पहली पत्नी)  का पुनर्जन्म पार्वती नाम से राजा हिमवान और मैनावती के यहां हुआ था। वह इस आशा में बड़ी हुई कि एक दिन भगवान शिव से उनका विवाह होगा। लेकिन पार्वती को भारी धक्का पहुंचा जब शिव ने उन्हें अपना जीवन साथी बनाने से इंकार कर दिया। पार्वती ने अपनी इंद्रियों को सशक्त बनाने के लिए कठोर तपस्या की, अपने चक्रों को जागृत  किया ताकि वह शिव से विवाह की पात्रता हासिल कर सकें। पार्वती को अपने लक्ष्य में सफल करने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने पार्वती को उनकी कलाई पर राखी बांधने को कहा, ताकि उनके भाई के रूप में विष्णु उनकी सारी कठिनाइयों को दूर कर सकें। ऐसी कथा है कि शिव और पार्वती के आकाशीय विवाह में भगवान विष्णु ने वे सभी कार्य किए जो एक वधू के भाई को करने चाहिए।
 द्रौपदी और कृष्ण
 द्रौपदी और कृष्ण
पांचाल के राजा की कन्या पांचाली जिसे द्रौपदी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान कृष्ण की पोषित दत्तक बहन थी। क्योंकि उसका रंग कृष्ण की तरह था, कृष्ण स्नेह से उसे  ‘कृष्णी’  कहकर बुलाते थे।
महान महाकाव्य महाभारत में प्रसंग है, कौरवों द्वारा जुए में पांडुओं से जीतने पर भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण किया जा रहा था, तो द्रौपदी की गुहार पर कृष्ण ने उसका चीर बढ़ाकर न सिर्फ मान रक्षा की बल्कि पांडवों की हारी हुई संपत्ति वापस दिलाने में भी मुख्य भूमिका निभाई।
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        