 
                                            समय - सीमा 268
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संसार में जो भी प्राणी जन्म लेता है, वो एक निश्चित अवधि पूरी करने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है, किंतु यह ज्ञात कर पाना बहुत मुश्किल है कि इस प्रक्रिया का अंत कब होगा? इससे सम्बंधित विभिन्न बातों को जानने का प्रयास परलोक सिद्धांत (Eschatology) कर रहा है। दूसरे शब्दों में ब्रह्माण्ड के अंतिम समय या मानवता की अंतिम नियति क्या है? इस अवधारणा को आमतौर पर दुनिया के अंत या अंत समय के रूप में जाना जाता है। एक प्रकार से परलोक सिद्धांत या एस्केटोलॉजी, थियोलॉजी (Theology) की एक शाखा है, जो आत्मा और मानव की मृत्यु, अंतिम निर्णय और अंतिम नियति से सम्बंधित है। हिंदू धर्म में वेदग्रंथों, पुराणों और उपनिषदों में इसके बारे में विभिन्न तर्क दिये गये हैं। हिंदू धर्म व्यापक परंपराओं वाला धर्म है और इसलिए किसी भी विशिष्टता के साथ हिंदू एस्केटोलॉजी का वर्णन करना बहुत मुश्किल है। आम तौर पर, जीवन को पुनर्जन्म से अंतिम मुक्ति की ओर एक नैतिक प्रगति के रूप में समझा जाता है।  संस्कृत ग्रंथों, विशेष रूप से पुराणों और वेदों की तुलना से ब्रह्माण्ड की रचना और विनाश को एक अधिक सटीक उदहारण (Pattern) के रूप में दर्शाया है। पुराणों में माना गया है कि, ब्रह्माण्ड स्वयं एक जीवित प्राणी है, और इसलिए अन्य सभी प्राणियों की तरह, यह भी जन्म लेता है, जीवित रहता है और मर जाता है। इसके अनुसार प्रारंभिक अवस्था में ब्रह्माण्ड समुद्र में तैरते एक सुनहरे अंडे के जैसे होता है। यह समुद्र में तैरता रहता है, जब जगत निर्माता भगवान ब्रम्हा अपने ध्यान से जाग्रत हो जाते हैं, तब वे इस अंडे को तोड़ देते हैं। जैसे ही यह टूटता है वैसे ही पृथ्वी, आकाश और अधोलोकों की उत्पत्ति होती है। इसके बाद के समय को भगवान विष्णु द्वारा संरक्षण प्रदान किया जाता है। पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्माण्ड चार युगों का अनुसरण करता है। पहला युग, सत्य का युग अर्थात सतयुग है, जिसमें शांत और निर्मल हृदय वाले लोग विचरण करते हैं और इसलिए यह स्वर्ण भी है। दूसरा युग, पहले के समान नहीं है लेकिन इस युग में जीवन अभी भी बहुत अच्छा है। इस युग में परिस्थितियां प्रतिकूल हैं लेकिन फिर भी कुछ अच्छे तत्व पृथ्वी को सुंदर बना देते हैं। तीसरे युग में परिस्थितियां थोड़ा जटिल हो जाती हैं, और दुःख, बीमारी और मृत्यु जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। अंतिम युग विघटन, युद्ध, संघर्ष, लघु जीवन काल, भौतिकवाद, वंशानुगतता और अनैतिकता को संदर्भित करता है, जिसके अत्यधिक व्यापक होने से ब्रह्माण्ड विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है। धरती ज्वाला की तरह फट जाती है, और सात या बारह सूरज प्रदर्शित होते हैं। ऐसा होने पर समुद्र सूख जाता है और पृथ्वी झुलस जाती है। इसके उपरांत आकाश पुनः धरती में अत्यधिक पानी बरसाता है, जिसमें पूरा ब्रह्माण्ड डूब जाता है और एक सुनहरे अंडे के रूप में समुद्र में तैरने लगता है। भगवान ब्रहमा के जागने और अंडे के टूटने पर प्रक्रिया फिर से अनंत की ओर अग्रसर होती है।
संस्कृत ग्रंथों, विशेष रूप से पुराणों और वेदों की तुलना से ब्रह्माण्ड की रचना और विनाश को एक अधिक सटीक उदहारण (Pattern) के रूप में दर्शाया है। पुराणों में माना गया है कि, ब्रह्माण्ड स्वयं एक जीवित प्राणी है, और इसलिए अन्य सभी प्राणियों की तरह, यह भी जन्म लेता है, जीवित रहता है और मर जाता है। इसके अनुसार प्रारंभिक अवस्था में ब्रह्माण्ड समुद्र में तैरते एक सुनहरे अंडे के जैसे होता है। यह समुद्र में तैरता रहता है, जब जगत निर्माता भगवान ब्रम्हा अपने ध्यान से जाग्रत हो जाते हैं, तब वे इस अंडे को तोड़ देते हैं। जैसे ही यह टूटता है वैसे ही पृथ्वी, आकाश और अधोलोकों की उत्पत्ति होती है। इसके बाद के समय को भगवान विष्णु द्वारा संरक्षण प्रदान किया जाता है। पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्माण्ड चार युगों का अनुसरण करता है। पहला युग, सत्य का युग अर्थात सतयुग है, जिसमें शांत और निर्मल हृदय वाले लोग विचरण करते हैं और इसलिए यह स्वर्ण भी है। दूसरा युग, पहले के समान नहीं है लेकिन इस युग में जीवन अभी भी बहुत अच्छा है। इस युग में परिस्थितियां प्रतिकूल हैं लेकिन फिर भी कुछ अच्छे तत्व पृथ्वी को सुंदर बना देते हैं। तीसरे युग में परिस्थितियां थोड़ा जटिल हो जाती हैं, और दुःख, बीमारी और मृत्यु जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। अंतिम युग विघटन, युद्ध, संघर्ष, लघु जीवन काल, भौतिकवाद, वंशानुगतता और अनैतिकता को संदर्भित करता है, जिसके अत्यधिक व्यापक होने से ब्रह्माण्ड विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है। धरती ज्वाला की तरह फट जाती है, और सात या बारह सूरज प्रदर्शित होते हैं। ऐसा होने पर समुद्र सूख जाता है और पृथ्वी झुलस जाती है। इसके उपरांत आकाश पुनः धरती में अत्यधिक पानी बरसाता है, जिसमें पूरा ब्रह्माण्ड डूब जाता है और एक सुनहरे अंडे के रूप में समुद्र में तैरने लगता है। भगवान ब्रहमा के जागने और अंडे के टूटने पर प्रक्रिया फिर से अनंत की ओर अग्रसर होती है। हिंदू एस्केटोलॉजी मुख्य रूप से वैष्णव परंपरा में कल्कि नामक महान मानव से जुड़ी हुई है। कल्कि कलयुग के अंत से पूर्व भगवान विष्णु या शिव का 10वां और अंतिम अवतार है। इस युग के बाद हरिहर (विष्णु और शिव का सन्युक्त रूप) एक साथ ब्रह्माण्ड को समाप्त और पुनर्जीवित करते हैं। हिंदू धर्म में, समय चक्रीय है, जिसमें चक्र या ‘कल्प’ शामिल होते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर जन्म, विकास, क्षय और नवीकरण के चक्र की लौकिक क्रम में पुनरावृत्ति होती रहती है, जब तक कि इसमें कोई दिव्य हस्त्क्षेप नहीं होता। कुछ शैव लोगों की मान्यता है कि परमात्मा लगातार दुनिया को नष्ट कर रहा है और बना रहा है। एक बड़े चक्र के बाद, पूरी सृष्टि एक विलक्षण बिंदु पर संकुचित हो जायेगी और फिर उसी एकल बिंदु से विस्तार करेगी, क्योंकि सभी युग फिर से उसी धार्मिक क्रम में शुरू हो जायेंगे।
हिंदू एस्केटोलॉजी मुख्य रूप से वैष्णव परंपरा में कल्कि नामक महान मानव से जुड़ी हुई है। कल्कि कलयुग के अंत से पूर्व भगवान विष्णु या शिव का 10वां और अंतिम अवतार है। इस युग के बाद हरिहर (विष्णु और शिव का सन्युक्त रूप) एक साथ ब्रह्माण्ड को समाप्त और पुनर्जीवित करते हैं। हिंदू धर्म में, समय चक्रीय है, जिसमें चक्र या ‘कल्प’ शामिल होते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर जन्म, विकास, क्षय और नवीकरण के चक्र की लौकिक क्रम में पुनरावृत्ति होती रहती है, जब तक कि इसमें कोई दिव्य हस्त्क्षेप नहीं होता। कुछ शैव लोगों की मान्यता है कि परमात्मा लगातार दुनिया को नष्ट कर रहा है और बना रहा है। एक बड़े चक्र के बाद, पूरी सृष्टि एक विलक्षण बिंदु पर संकुचित हो जायेगी और फिर उसी एकल बिंदु से विस्तार करेगी, क्योंकि सभी युग फिर से उसी धार्मिक क्रम में शुरू हो जायेंगे।  इसी प्रकार की अवधारणा बहा-ई (Baháʼí) (यह एक धर्म है जो सभी धर्मों के लिए आवश्यक मूल्यों, और सभी लोगों को एकता और समानता सिखाता है। इसे 1863 में बहा-उ-उल्लाह द्वारा स्थापित किया गया, जोकि फारस और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में फैला। आज यह दुनिया के अधिकांश देशों और क्षेत्रों में फैला हुआ है।) में भी मौजूद है। हिंदू धर्म के विपरीत इस धर्म के अनुसार सृजन की न तो कोई शुरुआत है और न ही अंत, जबकि कई हिंदू ग्रंथों के अनुसार एक निश्चित अवधि पूरी होने पर परमात्मा ब्रह्माण्ड का निर्माण और विनाश  करता है। हिंदू धर्म के समान बहा-ई धर्म के अनुसार मानव समय को प्रगतिशील रहस्योद्घाटन की एक श्रृंखला द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिसमें ईश्वर के संदेशवाहक या पैगम्बर धरती पर क्रमिक रूप से आते हैं।
इसी प्रकार की अवधारणा बहा-ई (Baháʼí) (यह एक धर्म है जो सभी धर्मों के लिए आवश्यक मूल्यों, और सभी लोगों को एकता और समानता सिखाता है। इसे 1863 में बहा-उ-उल्लाह द्वारा स्थापित किया गया, जोकि फारस और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में फैला। आज यह दुनिया के अधिकांश देशों और क्षेत्रों में फैला हुआ है।) में भी मौजूद है। हिंदू धर्म के विपरीत इस धर्म के अनुसार सृजन की न तो कोई शुरुआत है और न ही अंत, जबकि कई हिंदू ग्रंथों के अनुसार एक निश्चित अवधि पूरी होने पर परमात्मा ब्रह्माण्ड का निर्माण और विनाश  करता है। हिंदू धर्म के समान बहा-ई धर्म के अनुसार मानव समय को प्रगतिशील रहस्योद्घाटन की एक श्रृंखला द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिसमें ईश्वर के संदेशवाहक या पैगम्बर धरती पर क्रमिक रूप से आते हैं। 
  
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में कल्कि अवतार को संदर्भित किया गया है। (Wikimedia)
दूसरे चित्र में गीत गोविन्द के लेखक महान कवि जयदेव को भगवान् विष्णु की आराधना करते हुए दिखाया गया है। (Wikipedia)
तीसरे चित्र में उन्नीसवीं शताब्दी से प्राप्त भगवान विष्णु के दशावतारों का चित्रण दिखाया गया है। (Wikipedia)
चौथे चित्र में जन्म-मृत्यु को संदर्भित करने वाले हिरण्यगर्भ (Golden Womb) नामक चित्रण को दिखाया गया है। (Wikipedia)
 
                                         
                                         
                                         
                                        