मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान युवा कर्मचारियों को हुआ है, रोजगार का अधिक नुकसान

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
05-02-2021 11:53 AM
Post Viewership from Post Date to 10- Feb-2021 (5th day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2285 120 0 2405
* Please see metrics definition on bottom of this page.
मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान युवा कर्मचारियों को हुआ है, रोजगार का अधिक नुकसान

किसी भी देश के लिए रोजगार उसके प्रमुख विषयों में से एक है। रोजगार एक ऐसा कारक है, जो किसी भी देश की प्रगति के मुख्य निर्धारकों में से एक होता है। भारत में रोजगार की स्थिति को देखें तो, पिछले कई सालों की तुलना में इस स्थिति में निरंतर गिरावट आयी है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के लीक (Leaked) आंकड़ों के उपयोग द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार, 2004 और 2017 के बीच रोजगार में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि दर के आधे भाग से भी कम हुई। इस दौरान रोजगार में महिलाओं और युवाओं की संख्या में गिरावट हुई तथा ग्रामीण रोजगार भी गतिहीन हुआ। देश में रोजगार की स्थिति के संदर्भ में, एक रिपोर्ट (Report) के अनुसार, देश में जहां रोजगार और बेरोजगारी की सामान्य वास्तविकता गंभीर है, वहीं महिलाओं की रोजगार स्थिति सामाजिक-सांस्कृतिक और सरकार की नीतियों के कारण और भी बदतर है। महिलाओं को औसत रूप से समान कार्य करने के लिए योग्य पुरुष श्रमिकों की तुलना में 34 प्रतिशत कम भुगतान किया जाता है। 2015 में, 92 प्रतिशत महिलाएं और 82 प्रतिशत पुरुष 10,000 रुपये से कम मासिक वेतन कमा रहे थे, जो कि, सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (2013) की सिफारिश के अनुसार प्रति माह 18,000 रुपये था। ग्रामीण श्रम बाजारों को लिंग, जाति और वर्ग की पहचान द्वारा दृढ़ता से संरचित और विनियमित किया जाता है। जाति के आधार पर किया जाने वाला पारंपरिक व्यवसाय ग्रामीण भारत में बना हुआ है। जाति के आधार पर लोगों की उपज और बाजार भागीदारी के लिए कीमतों के संदर्भ में भी भेदभाव मौजूद है। बढ़ती अर्थव्यवस्था और श्रम शक्ति में वृद्धि के बावजूद, रोजगार सृजन की प्रक्रिया बेहद सुस्त रही है। आय और धन के वितरण का परिणाम श्रम बाजार की प्रक्रियाओं से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। संगठित क्षेत्र विशेषकर निजी क्षेत्र में अनौपचारिक श्रमिकों के रोजगार में तीव्र वृद्धि हुई है। इस सदी की शुरुआत में, अनुबंध कर्मियों की हिस्सेदारी उस समय कार्यरत सभी श्रमिकों की हिस्सेदारी की तुलना में 20 प्रतिशत से भी कम थी, लेकिन एक दशक के भीतर यह बढ़कर एक तिहाई से भी अधिक हो गयी। अनुबंध कर्मी न केवल कार्यकाल की असुरक्षा से ग्रस्त हैं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा लाभ के अभाव के साथ कम वेतन से भी ग्रसित हैं।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey - PLFS) 2017-18 के अनुसार भारत में बेरोजगारी विगत 45 वर्षों से भी अधिक थी। एक अन्य अध्ययन के अनुसार, रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण (Employment-Unemployment Surveys – EUS) 2004-05 और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के बीच देश में कुल रोजगार में 4.5 करोड़ की वृद्धि हुई। यह वृद्धि सिर्फ 0.8 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करती है, जो उस दर के आधे भाग से भी कम है, जिस पर समग्र आबादी में वृद्धि हुई। रोजगार में 4.5 करोड़ की वृद्धि में से, 4.2 करोड़ शहरी क्षेत्रों में हुई जबकि ग्रामीण रोजगार या तो अनुबंधित था या स्थिर था। भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है, लेकिन आयु समूहों के अनुसार रोजगार के आंकड़े बताते हैं कि, युवा रोजगार (15 से 24 वर्ष की आयु के बीच) 2004 में 8.14 करोड़ से गिरकर 2017 में 5.34 करोड़ हो गया है। संगठित क्षेत्र में रोजगार वृद्धि की दर सबसे तेज़ रही है, और कुल नियुक्ति में इसकी हिस्सेदारी 2004 में 8.9 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 14 प्रतिशत हो गई है। असंगठित क्षेत्र भी विकसित हुआ है। हालांकि, इसकी विकास दर धीमी रही है, लेकिन अर्थव्यवस्था में इसकी समग्र हिस्सेदारी 2004 में 37.1 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 47.7 प्रतिशत हो गई है। 2011 के बाद से असंगठित क्षेत्र की वृद्धि की गति कम हुई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था जांच केंद्र – सीएमआईई (Centre for Monitoring Indian Economy - CMIE) के अनुसार, कोरोना महामारी के दौरान 25-29 वर्ष की आयु वाले युवा कार्यबल ने सबसे अधिक रोजगार हानि अनुभव की है। इस श्रेणी में नई भर्तियां कम हैं, जो इस समय के दौरान नए श्रम की कम मांग तथा उद्यमों की नये कर्मचारियों को नियुक्त करने और प्रशिक्षित करने में अक्षमता को संदर्भित करती है। सभी प्रकार के रोजगार में 25-29 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों की हिस्सेदारी लगभग 11% है, लेकिन रोजगार नुकसान की बात की जाए तो, इसमें इनका हिस्सा 46% है। इसी प्रकार से 20-24 वर्ष के आयु वर्ग के श्रमिकों की कुल रोजगार में हिस्सेदारी 9% से भी कम है, लेकिन 2020 तक कुल रोजगार नुकसान में इनका हिस्सा 35% है। इस प्रकार मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान युवा कर्मचारियों को नौकरी का अधिक नुकसान हुआ। सीएमआईई के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि, रोजगार क्षेत्रों में 40 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों की हिस्सेदारी, जो 2019-20 में 56 प्रतिशत थी, दिसंबर 2020 तक बढ़कर 60 प्रतिशत हुई, जबकि अपेक्षाकृत कम उम्र वाले या 40 वर्ष से कम आयु वर्ग वाले लोगों की हिस्सेदारी में कमी आयी है। कार्यबल में अधिक उम्र वाले लोगों की बहुतायत, 2020-21 की दूसरी छमाही में या भविष्य में अर्थव्यवस्था के एक मजबूत सुधार के लिए अनुकूल नहीं है। नौकरियों का सृजन करने के लिए श्रम गहन क्षेत्रों की ओर विकास पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। नौकरियों में वृद्धि समावेशी होनी चाहिए और नई नौकरियों को बेहतर कार्य स्थितियों के साथ सभ्य और सुरक्षित होना चाहिए।

संदर्भ:
http://bitly.ws/bAZK
http://bitly.ws/bAZM
https://bit.ly/2NsR84Q
http://bitly.ws/bAZP
https://bit.ly/320elRc
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र काम पर रखने को दर्शाता है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर भारत में रोजगार के परिदृश्य को दिखाती है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर में एक युवा व्यक्ति को चाय बनाते हुए दिखाया गया है। (प्रारंग)