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नए साल की शुरुआत के साथ ही देश में उत्त्सव और पर्वों को मानाने का दौर भी शुरू हो जाता है। जनवरी का
महीना शुरू होते ही पूरा पंजाब फसलों और नाच गानों के त्योहार लोहड़ी के त्योहार को मनाने की तैयारियों
में जुट जाता है। लोहड़ी पर्व के दिन हर पंजाबी के लिए साल के सबसे सुनहरे और यादगार अवसरों में से एक
होते है।
लोहड़ी न केवल पंजाब बल्कि पूरे उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह मकर संक्रान्ति के एक दिन
पहले मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्योहार का उल्लास चरम पर रहता है। त्योहार
के दिन विशेष तौर पर रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा
बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि बांटे और खाए जाते हैं।
लोहड़ी शक संवत पंचांग (Shaka Samvat Calendar) के पौष माह के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ
संक्रांति से पहली रात) मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर में यह प्रसिद्द त्यौहार आमतौर पर 12 या 13
जनवरी के बीच पड़ता है। लोहड़ी मुख्यतः द्योतार्थक (acrostic) वर्णों के समुच्चय से बना है, जहाँ ल
(लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) +ड़ी (रेवड़ी) = 'लोहड़ी' के प्रतीक हैं। भारत में लोहड़ी का पर्व सर्दियों की
परिणति अर्थात जाने का प्रतीक है। पंजाब के ग्रामीण इलाकों में इसे लोही भी कहा जाता है।
लोहड़ी पर्व के साथ की पारंपरिक और ऐतिहासिक परंपराएं तथा मान्यताएं जुडी हुई हैं।
लोहड़ी त्यौहार के उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं हैं। सबसे लोकप्रिय प्रागैतिहासिक गाथा के अनुसार
दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही लोहड़ी की यह अग्नि जलाई जाती है। इस
अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। लोहड़ी
से 20-25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाओं द्वारा 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे
किये जाते हैं। तथा इस दिन सामूहिक रूप से संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर
आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं।
लोहड़ी के दौरान या आस-पास जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है,
उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर बराबर रेवड़ी बांटी जाती हैं। लोहड़ी का त्यौहार
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोलाससे मनाया जाता हैं।
वर्ष 2022 में लोहड़ी तिथि गुरुवार, 13 जनवरी तथा लोहड़ी संक्रांति क्षण - 02:43 अपराह्न, 14 जनवरी को
पड़ रहा है।
पंजाब में लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक प्रचलित कहानी से भी जोड़ा जाता हैं। लोहड़ी की सभी गानों का
केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं। दरअसल दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के शाशनकाल के
दौरान पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था! उस समय संदल
बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच दिया जाता था। दुल्ला भट्टी
ने योजना बनाकर न केवल लड़कियों को मुक्त कराया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लडको से करवाई। दुल्ला
भट्टी एक विद्रोही था और उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे, जो की संदल बार में था। अब संदल बार
पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक माना जाता था। लोहड़ी से जुडी हुई एक और लोकगाथा अतिप्रचलित है, जिसके अनुसार होलिका (हिरण्यकश्यप नामक योद्धा
की बहन और प्रह्लाद की बुआ थी) और लोहड़ी बहनें थीं। जहाँ प्रह्लाद को जलाने में असमर्थ होलिका होली
की आग में जल गई, जबकि लोहड़ी जीवित रही। यह भी माना जाता है कि चूंकि 'लोह' का अर्थ है, आग की
रोशनी और गर्मी, लोहड़ी उसी से ली गई थी। अलाव लोहड़ी का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है, लोहड़ी पर, लोग
पवित्र अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं। और इसकी पूजा करते हैं।
लोहड़ी सर्दियों के महीनों के अंत और वसंत की शुरुआत का प्रतीक है। चूंकि मकर संक्रांति सूर्य की उत्तर
दिशा की गति पर आधारित है, इसलिए इसे सौर कैलेंडर से जोड़ा गया है। यही कारण है की इस त्योहार की
तारीख साल दर साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार समान रहती है। और लोहड़ी का उत्सव पंजाब में माघी
से एक रात पहले होता है।
लोहड़ी से जुडी हुई एक और लोकगाथा अतिप्रचलित है, जिसके अनुसार होलिका (हिरण्यकश्यप नामक योद्धा
की बहन और प्रह्लाद की बुआ थी) और लोहड़ी बहनें थीं। जहाँ प्रह्लाद को जलाने में असमर्थ होलिका होली
की आग में जल गई, जबकि लोहड़ी जीवित रही। यह भी माना जाता है कि चूंकि 'लोह' का अर्थ है, आग की
रोशनी और गर्मी, लोहड़ी उसी से ली गई थी। अलाव लोहड़ी का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है, लोहड़ी पर, लोग
पवित्र अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं। और इसकी पूजा करते हैं।
लोहड़ी सर्दियों के महीनों के अंत और वसंत की शुरुआत का प्रतीक है। चूंकि मकर संक्रांति सूर्य की उत्तर
दिशा की गति पर आधारित है, इसलिए इसे सौर कैलेंडर से जोड़ा गया है। यही कारण है की इस त्योहार की
तारीख साल दर साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार समान रहती है। और लोहड़ी का उत्सव पंजाब में माघी
से एक रात पहले होता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लोहड़ी का नाम संत कबीर की पत्नी लोई के नाम पर पड़ा है। इस
दौरान कुछ लोग अग्नि देव (अग्नि के देवता) की पूजा करते हैं। सूर्य और अग्नि दोनों ही गर्मी का
प्रतिनिधित्व करते हैं और लोगों को ठंड के मौसम में ठंड से राहत देते हैं। मूंगफली , पोहा (चपटा चावल),
तिल (तिल), गुड़ आदि को प्रसाद के रूप में पवित्र अग्नि में अर्पित किया जाता है। कुछ लोग परिक्रमा करने
के बाद कच्चा दूध और पानी भी चढ़ाते हैं। लोकप्रिय मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी की आग लोगों की
मनोकामनाएं पूरी करती है। इसलिए, वे अपनी सबसे पोषित इच्छा मांगते हुए पवित्र अलाव के चारों ओर
घूमते हैं।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लोहड़ी का नाम संत कबीर की पत्नी लोई के नाम पर पड़ा है। इस
दौरान कुछ लोग अग्नि देव (अग्नि के देवता) की पूजा करते हैं। सूर्य और अग्नि दोनों ही गर्मी का
प्रतिनिधित्व करते हैं और लोगों को ठंड के मौसम में ठंड से राहत देते हैं। मूंगफली , पोहा (चपटा चावल),
तिल (तिल), गुड़ आदि को प्रसाद के रूप में पवित्र अग्नि में अर्पित किया जाता है। कुछ लोग परिक्रमा करने
के बाद कच्चा दूध और पानी भी चढ़ाते हैं। लोकप्रिय मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी की आग लोगों की
मनोकामनाएं पूरी करती है। इसलिए, वे अपनी सबसे पोषित इच्छा मांगते हुए पवित्र अलाव के चारों ओर
घूमते हैं।
सरसों का साग, मक्की की रोटी और मीठी खीर (हलवा) लोहड़ी त्यौहार के मुख्य व्यंजन होते हैं। इस दौरान
पारंपरिक पोशाक पहनी जाती है, लोकप्रिय लोक संगीत पर नृत्य करते हुए लोग हर ओर दिख जाते हैं।
मौसम साफ होने पर भी लोग पतंगबाजी का मजा भी लेते हैं। लोहड़ी मानाने का एक अन्य उद्द्येश्य सूर्य-
देवता को प्रसन्न करना भी है। यह त्यौहार उत्तर भारतीय राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में सिखों और
हिंदुओं दोनों द्वारा सामान जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी मनाने वालों का एक बड़ा
हिस्सा किसान वर्ग हैं, जिनके लिए लोहड़ी एक अत्यंत शुभ दिन है क्योंकि यह उर्वरता प्रतीक माना जाता
है। इस दौरान किसान अपने परिवारों के साथ आने वाले वर्ष में प्रचुर मात्रा में फसल उत्पादन के लिए
प्रार्थना करते हैं। पंजाबी किसान लोहड़ी के अगले दिन को वित्तीय नव वर्ष के रूप में देखते हैं।
यह त्यौहार उत्तर भारतीय राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में सिखों और
हिंदुओं दोनों द्वारा सामान जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी मनाने वालों का एक बड़ा
हिस्सा किसान वर्ग हैं, जिनके लिए लोहड़ी एक अत्यंत शुभ दिन है क्योंकि यह उर्वरता प्रतीक माना जाता
है। इस दौरान किसान अपने परिवारों के साथ आने वाले वर्ष में प्रचुर मात्रा में फसल उत्पादन के लिए
प्रार्थना करते हैं। पंजाबी किसान लोहड़ी के अगले दिन को वित्तीय नव वर्ष के रूप में देखते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3KcEELe
https://bit.ly/3FyKy5W
https://bit.ly/33b2OFm
https://bit.ly/3zZlzrh
https://bit.ly/3GsO2Ip
https://en.wikipedia.org/wiki/Lohri
चित्र संदर्भ   
1. लोहड़ी में आग के चारों ओर बैठकर जश्न मानते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. लोहड़ी समारोह के दौरान भंगड़ा नृत्य करते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. किशन सिंह आरिफ द्वारा पंजाब किस्सा दुल्ला भट्टी का एक संस्करण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पंजाब से लोहड़ी उत्सव अनुष्ठान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पंजाबी सांस्कृतिक नृत्य "गिद्दा" करने को तैयार बालिका को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        