जौनपुर की झांजिरी मस्जिद की जालीनुमा संरचनाएं, और तुघरा शैली सुलेखन में निहित संदेश

ध्वनि II - भाषाएँ
10-07-2023 09:43 PM
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जौनपुर की झांजिरी मस्जिद की जालीनुमा संरचनाएं, और तुघरा शैली सुलेखन में निहित संदेश

हमारे जौनपुर को अद्वितीय बनाती है यहां मौजूद मस्जिदों की वास्तुकला! ऐसी वास्तुकला शायद देश में कहीं भी नहीं पाई जाती है। जौनपुर की वास्तुकला में पुष्प और ज्यामितीय डिजाइनों के साथ-साथ सुंदर सुलेख से परिपूर्ण विशाल अलंकृत प्रवेश द्वार भी शामिल हैं। जौनपुर की वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण यहां मौजूद झांजिरी मस्जिद है, जिसका निर्माण शम्स-उद-दीन इब्राहिम शाह शर्की (1401-1440) के शासनकाल के दौरान 1408 के आसपास हज़रत सईद सद्र जहां अजमली के सम्मान में किया गया था। यूं तो 1486 में सिकंदर लोधी द्वारा जौनपुर पर हमला करने पर मस्जिद का अधिकांश भाग नष्ट हो गया था, लेकिन मस्जिद के कुछ मुख्य भाग अभी भी वहां शेष हैं। झांजिरी मस्जिद के मुख्य द्वार पर पत्थर पर एक धनुषाकार प्रोपाइलॉन (arched propylon) बना हुआ है, तथा यह संरचना अभी भी चाचकपुर के पास नदी के किनारे मौजूद है। मस्जिद के मुख्य द्वार पर अनेकों जालीनुमा संरचनाएं या झांजिरी मौजूद है,जिस कारण लोग इसे झांजिरी मस्जिद के नाम से संबोधित करते हैं। झांजिरी मस्जिद का निर्माण जौनपुर की विशिष्ट स्थापत्य शैली में किया गया था।इस मस्जिद की एक अन्य विशेषता यह है कि मस्जिद के मुख्य द्वार के ऊपर के हिस्से में अरबी भाषा की तुघरा शैली में सुरुचिपूर्ण सुलेख लिखा हुआ है। घुमावदार प्रकृति के साथ तुघरा अक्षर लगभग 30 सेंटीमीटर ऊंचाई के हैं और इनका आधार बड़ा है। घुमावदार सीमाओं पर कुरान की सूरह II की आयतें लिखी हुई हैं।
अरबी भाषा की तुघरा शैली की बात करें तो यह सुल्तान का एक सुलेखन सम्बंधी नामचिन्ह, मुहर या हस्ताक्षर है, जिसे सभी आधिकारिक दस्तावेजों और पत्राचार के साथ अंकित किया गया था।“तमघा” (एक अमूर्त मुहर,जिसका उपयोग यूरेशियाई (Eurasian) खानाबदोशों और उनसे प्रभावित संस्कृतियों द्वारा किया जाता था) से प्रेरित होकर,तुघरा को सुल्तान की मुहर पर भी उकेरा गया था और सुल्तान के शासनकाल के दौरान बने सिक्कों पर भी अंकित किया गया था। तुघरा का उपयोग करते हुए महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों के लिए बहुत विस्तृत अलंकृत संस्करण बनाए गए थे। तुघरा को सुल्तान के शासनकाल की शुरुआत में डिजाइन किया गया था और लिखित दस्तावेजों पर दरबार के सुलेखकों द्वारा अंकित किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक तुर्क सुल्तान की अपनी व्यक्तिगत तुघरा शैली हुआ करती थी।
पहले तुघरा सुलेखन का उदाहरण 14वीं शताब्दी का है। तुघरा का एक विशिष्ट रूप है, जिसमें बाईं ओर दो लूप या गोले बने होते हैं. इसके बीच में तीन ऊर्ध्वाधर रेखाएं होती हैं तथा आधार पर खड़ा-खड़ा लेखन और दाईं ओर दो आयाम (extensions) मौजूद होते हैं। इनमें से प्रत्येक तत्व का एक विशिष्ट अर्थ है तथा एक साथ मिलकर ये एक ऐसी संरचना या रूप बनाते हैं, जिससे तुघरा शैली को आसानी से पहचाना जा सकता है।सुल्तान का नाम प्रायः नीचे के भाग में लिखा होता है, जिसे सिअर (sere) कहा जाता है। तुघरा के बायीं ओर के लूपों को बेज़े (beyze) कहा जाता है,जिसका अरबी में अर्थ होता है,अंडा। कुछ व्याख्यानों के अनुसार तुघरा डिज़ाइन में मौजूद बेजे को उन दो समुद्रों का प्रतीक माना जाता है जिन पर सुल्तानों का अधिकार था। बाहरी बड़ा लूप भूमध्य सागर को दर्शाता है और आंतरिक छोटा लूप काले सागर (Black Sea) को दर्शाता है।तुघरा शैली के शीर्ष पर खड़ी रेखाओं को टग (tuğ), या फ़्लैगस्टाफ़ (flagstaff) कहा जाता है तथा तीन टग स्वतंत्रता का प्रतीक माने जाते हैं। टग्स से होकर गुजरने वाली S आकार की रेखाओं को ज़ुल्फे (zülfe) कहा जाता है और वे टग्स के शीर्ष के साथ मिलकर यह दर्शाती हैं कि हवाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं, जो ओटोमन्स (Ottomans) की पारंपरिक गति मानी जाती है। तुघरा के दाहिनी ओर की रेखाओं को हैंसर (hançer) कहा जाता है और यह तलवार, शक्ति और पराक्रम का प्रतिनिधित्व करती है।
हालाँकि तुघरा को अक्सर ओटोमन सुल्तानों से सम्बंधित माना जाता है, लेकिन कभी-कभी उनका उपयोग अन्य राज्यों में भी किया जाता है, जैसे कि काजार राजवंश (Qajar dynasty), सफ़ाविद साम्राज्य (Safavid) और कज़ान के ख़ानते (Khanate of Kazan)। बाद में, शाही रूस (Russia) के टाटर्सों (Tatars) के द्वारा तुघरा का उपयोग किया जाने लगा। मुगल सम्राटों को भी सुलेख प्रतीकों का उपयोग करने के लिए जाना जाता है : ”मुग़ल तुघरा" का आकार गोलाकार था, जिसके शीर्ष पर तीन बिंदुओं को देखा जा सकता है । इसके बगल में सम्राट के सुलेखन सम्बंधी हस्ताक्षर मौजूद होते हैं। 1919 से 1936 तक अफगान (Afghan) मुद्रा नोटों में भी तुघरा शैली मौजूद थी। 1947 से 1974 तक पाकिस्तान (Pakistan) के सिक्कों पर भी तुघरा शैली अंकित थी । इन दोनों के उदाहरण कराची के स्टेट बैंक म्यूजियम (State Bank Museum) में मौजूद हैं। बहावलपुर के नवाब और हैदराबाद के निज़ाम के सिक्कों पर भी तुघरा शैली दिखाई देती है। बहती हुई रेखाएं सुलेमान के शासन की व्यापक पहुंच और भविष्य में उसकी विजय का प्रतीक हो सकती हैं। इसके अलावा यह अन्य क्षेत्रों में इस्लाम के प्रसार का भी संकेत हो सकता है।

संदर्भ:

https://rb.gy/dphkw
https://rb.gy/aipoo

चित्र संदर्भ

1. जौनपुर की झांजिरी मस्जिद को दर्शाता चित्रण (Prarang)
2. सामने से देखने पर झांजिरी मस्जिद को दर्शाता चित्रण (Prarang)
3. नजदीक से झांजिरी मस्जिद की संरचना को दर्शाता चित्रण (Prarang)
4. झांजिरी मस्जिद के मुख्य द्वार के ऊपर के हिस्से में अरबी भाषा की तुघरा शैली में सुरुचिपूर्ण सुलेख लिखा हुआ है। को दर्शाता चित्रण (Prarang)



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