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हमारे शहर जौनपुर का इतिहास प्राचीन काल से ही काफ़ी रोचक रहा है। हमारा जिला प्राचीन काल में एक रियासत भी था।कुछ वर्षों पहले तक, इस क्षेत्र पर राज करने हेतु राजा का एक पद हुआ करता था। ‘जौनपुर के राजा’ की उपाधि, उस व्यक्ति के पास होती थी, जो शिव लाल दुबे जी के ब्राह्मण परिवार का प्रतिनिधित्व करता था। प्राचीन काल में, जौनपुर जिले में सबसे बड़ी संपत्ति के मालिक होने के नाते, दुबे परिवार इस उपाधि का सही हकदार था।
शिव लाल दुबे जी के पिताजी, मोती लाल दुबे एक धनी बैंकर(Banker)थे। शिव लालजी का जन्म 1776 में अमौली फ़तेहपुर में उनके परिवार के निवास पर हुआ था। बड़े होने पर शिव लाल दुबे नवाब कल्ब अली बेग के बैंकर बन गए। आप शायद जानते ही होंगे कि, नवाब कल्ब अली को जौनपुर शहर के निर्माता के रुप में जाना जाता है।
मोती लाल दुबे की मृत्यु के बाद, शिव लाल दुबे की संपत्ति में जबरदस्त वृद्धि देखी गई। क्योंकि, शिव लाल दुबे तब उनके दिवंगत पिता द्वारा निर्धारित बैंकिंग मार्ग में कार्यरत थे। इसके फलस्वरूप,वर्ष 1797 में उन्हें “राजा बहादुर” की उपाधि प्रदान की गई एवं बदलापुर तालुका से पुरस्कृत किया गया। फिर जब 1836 में उनकी मृत्यु हुई, तो उनकी संपत्ति में जौनपुर के अलावा बनारस, गोरखपुर, आज़मगढ़, मिर्ज़ापुर की भी बड़ी संपत्तियां शामिल थीं।
शिव लाल दुबे की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र राजा बाल दत्त के होते हुए भी उनका शीर्षक और संपत्ति उनके पोते राजा राम गुलाम को दे दी गई। हालांकि,1843 में राजा राम गुलाम की मृत्यु के पश्चात उनके पिता, राजा बाल दत्त को यह संपत्ति एवं उपाधि मिली। परंतु, उनकी भी अगले एक वर्ष में ही, अर्थात 1844 में मृत्यु हो गई। तब, उनके दूसरे बेटे राजा लछमन गुलाम इस पद के उत्तराधिकारी बने।
1845 में राजा लछमन गुलाम की मृत्यु के बाद, इस पद एवं संपत्ति का प्रबंधन उनकी मां, रानी तिलक कुँवर को सौंप दिया गया। उन्होंने 1848 में अपनी मृत्यु तक इस संपत्ति का प्रबंधन किया। इसके बाद,यह पद राजा राम गुलाम के बेटे, राजा शिव गुलाम को विरासत में मिल गया।इस समय में, इस संपत्ति में भारी गिरावट देखी गई। इसका मुख्य कारण, उत्तराधिकारी का अल्पमत होना और पारिवारिक विवाद था। राजा शिव गुलाम की मृत्यु के बाद, संपत्ति प्रबंधन के पास थी, जिसे 1869 में वापस जारी कर दिया गया था।तब जारी की गई संपत्ति, राजा लक्ष्मी नारायण को प्रदान की गई थी।1875 में उनकी मृत्यु के बाद राजा हरिहर दत्त को वह विरासत मिली। राजा हरिहर दत्त राजा हरि गुलाम के पहले पुत्र थे। फिर उनके पुत्र राजा शंकर दत्त उनके उत्तराधिकारी बने, जिन्होंने 1897 में उनकी मृत्यु तक संपत्ति का प्रबंधन किया।
इन परिस्थितियों में, संपत्ति पर फिर से प्रबंधन का नियंत्रण हो गया। इस बार, यह संपत्ति राजा श्री कृष्ण दत्त की ओर से प्रबंधन के पास गई थी।श्री कृष्ण दत्त अमौली के सदानंद दुबे के प्रत्यक्ष वंशज माने जाते थे। जबकि, सदानंद दुबे जौनपुर के पहले राजा, राजा शिव लाल के बड़े भाई थे।
1916 में रियासत राजा श्री कृष्ण दत्त को प्रदान की गई। 1944 में उनकी मृत्यु के बाद, वर्ष 1956 में राजायादवेंद्र दत्त ने इसका कार्यभार संभाला और 1999 में उनकी मृत्यु तक वे इसके मालिक थे। जौनपुर रियासत के वे 11 वें राजा थे। 1942 से ही, यादवेंद्र दत्त हिंदू राष्ट्रवादी संगठन– राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात आरएसएस(RSS) के सदस्य थे और वाराणसी विभाग के लिए इस संगठन के संघचालक भी थे। वह भारतीय जनसंघ के टिकट पर जौनपुर से 6वीं और 9वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए थे। 17 वर्षों तक उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहने के बाद, 1962 से 1964 तक उन्होंने एक विपक्ष नेता के रूप में कार्य किया।
राजनीति के पुरोधा यादवेंद्र दत्त दुबे की यादें आज भी लोगों के बीच ताजा हैं। जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त अपनी बुद्धिमत्ता व कौशल के दम पर राजनीति में शीर्ष पर पहुंचे थे। वे हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषा बोलते थे तथा विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र की भी अच्छी जानकारी रखते थे।
जबकि, आज वर्तमान समय में, यह कार्यभार एवं पद तथा रियासत का हिस्सा अवनींद्र दत्त के पास है।अवनींद्र दत्त का जन्म 1947 में इलाहाबाद में हुआ था।और अब राजा जौनपुर की उपाधि उनके नाम हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/38xzc4a6
https://tinyurl.com/cdpr79ub
https://tinyurl.com/3tsucdsa
https://tinyurl.com/yz4cfat7
https://tinyurl.com/p55pp9au
चित्र संदर्भ
1-जौनपुर राज निवास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2-जौनपुर के शाही क़िले को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3-जौनपुर के वर्तमान राजा अवनींद्र दत्त को दर्शाता एक चित्रण (YouTube)
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