गांधी जयंती पर लखनऊवासियो का संकल्प:बापू की सीख और आज की दुनिया की ज़रूरत

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
01-10-2025 09:18 AM
गांधी जयंती पर लखनऊवासियो का संकल्प:बापू की सीख और आज की दुनिया की ज़रूरत

लखनऊवासियो, गांधी जयंती का दिन महज़ कैलेंडर (calendar) पर दर्ज़ एक तारीख़ या औपचारिक कार्यक्रम भर नहीं है। यह दिन हमें अपने भीतर झाँकने, अपने जीवन और समाज से जुड़े सवाल पूछने और उन पर गंभीरता से विचार करने का अवसर देता है। आज की दुनिया एक अजीब दोराहे पर खड़ी है - एक ओर युद्ध और हिंसा का साया मंडरा रहा है, तो दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन, असमानता और महामारी जैसी चुनौतियाँ हमारे सामने खड़ी हैं। ऐसे माहौल में यह सोचना ज़रूरी हो जाता है कि क्या हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं या कहीं भटक तो नहीं गए। यहीं पर महात्मा गांधी के विचार हमें राह दिखाते हैं। बापू ने हमें सिखाया कि असली ताक़त सत्ता, हथियार या धन में नहीं, बल्कि सत्य, अहिंसा और नैतिकता में है। उनका मानना था कि जब इंसान ईमानदारी से जिए, अपने काम को कर्तव्य माने और सेवा तथा त्याग की भावना से समाज को कुछ लौटाए, तब कोई भी संकट असंभव नहीं रहता। गांधी जी का जीवन इसी विश्वास का जीवंत उदाहरण है। आज जब हम गांधी जयंती मनाते हैं, तो यह केवल पुष्पांजलि अर्पित करने या मंच से भाषण देने तक सीमित न हो। यह दिन हमें बार-बार याद दिलाता है कि बापू की सीख हमारे रोज़मर्रा की आदतों और व्यवहार में झलके। चाहे वह हमारे रिश्तों में ईमानदारी हो, हमारे काम में पारदर्शिता हो या फिर समाज और पर्यावरण के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी - हर जगह गांधी जी के सिद्धांतों की छाप होनी चाहिए। यही उनकी सच्ची विरासत है, और यही उनके प्रति हमारी असली श्रद्धांजलि।
आज हम समझेंगे कि गांधी जयंती केवल एक स्मृति दिवस नहीं, बल्कि आज की दुनिया में उनके विचार क्यों और भी ज़्यादा ज़रूरी हो गए हैं। फिर, हम गांधी जी के बताए सात सामाजिक पापों की सूची को देखेंगे और उनका असली अर्थ समझेंगे। इसके बाद, हम कुछ पापों जैसे काम के बिना धन, विवेक के बिना आनंद और चरित्र के बिना ज्ञान को विस्तार से जानेंगे। आगे, हम नैतिकता के बिना वाणिज्य और मानवता के बिना विज्ञान जैसे खतरों पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम देखेंगे कि त्याग के बिना धर्म और सिद्धांत के बिना राजनीति समाज के लिए क्यों सबसे बड़ी चुनौती हैं और आज हम गांधी जी की चेतावनियों से क्या सीख सकते हैं।

गांधी जयंती और आज की दुनिया में उनकी प्रासंगिकता
आज की दुनिया में चारों ओर हिंसा, लालच और असमानता के स्वर हमें साफ़ सुनाई देते हैं। कभी युद्ध की आहट, कभी धर्म और जाति के नाम पर बँटवारा, तो कभी अमीरी-गरीबी की खाई - ये सब इंसानियत को चुनौती देते हैं। ऐसे माहौल में गांधी जी की सोच हमें याद दिलाती है कि समस्याओं का हल केवल हथियारों से नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और आत्मसंयम से निकल सकता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि अहिंसा, सत्य और नैतिकता कोई किताबों में बंद आदर्श नहीं हैं, बल्कि ये समाज को स्थिर और सुरक्षित रखने के लिए व्यावहारिक उपाय हैं। अगर हम रोज़मर्रा के जीवन में ईमानदारी, सादगी और करुणा को जगह दें, तो चाहे कितना भी बड़ा संकट क्यों न हो, उससे बाहर निकलने का रास्ता मिल सकता है। यही वजह है कि गांधी जयंती पर हम केवल श्रद्धांजलि ही नहीं, बल्कि आत्ममंथन भी करते हैं।

सात सामाजिक पापों की सूची और उनका मूल अर्थ
गांधी जी ने 1925 में अपने साप्ताहिक पत्र यंग इंडिया (Young India) में "सेवन सोशल सिन्स" (Seven Social Sins) यानी सात सामाजिक पापों की सूची प्रकाशित की थी। ये सात चेतावनियाँ थीं - 

  1. काम के बिना धन
  2. विवेक के बिना आनंद
  3. चरित्र के बिना ज्ञान
  4. नैतिकता के बिना वाणिज्य
  5. मानवता के बिना विज्ञान
  6. त्याग के बिना धर्म
  7. सिद्धांत के बिना राजनीति

यह सूची केवल शब्दों का खेल नहीं थी। इसमें गांधी जी ने यह समझाने की कोशिश की थी कि अगर समाज इन गलत रास्तों पर चला तो उसकी जड़ें खोखली हो जाएँगी। यह कोई नकारात्मक सोच नहीं, बल्कि एक तरह की चेतावनी थी ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इन ग़लतियों से बच सकें। हर पाप उस खाई की ओर इशारा करता है जहाँ गिरकर इंसानियत टूट सकती है।

काम के बिना धन, विवेक के बिना आनंद और चरित्र के बिना ज्ञान
ये तीन पाप सीधे तौर पर इंसान के व्यक्तिगत जीवन और उसके आचरण से जुड़े हैं।

  • काम के बिना धन: गांधी जी मानते थे कि मेहनत के बिना मिला हुआ धन समाज को खोखला कर देता है। रिश्वत, शोषण या जुए से कमाया गया पैसा कुछ समय के लिए सुख तो दे सकता है, लेकिन यह समाज में असमानता और अन्याय फैलाता है। सच्चा धन वही है जो ईमानदारी और परिश्रम से मिले।
  • विवेक के बिना आनंद: जीवन का उद्देश्य केवल मौज-मस्ती करना नहीं है। आनंद तब तक सार्थक नहीं जब तक उसमें दूसरों की भलाई और जिम्मेदारी का भाव न हो। अगर कोई केवल स्वार्थ और लालच के लिए सुख ढूँढता है, तो वह आनंद क्षणिक और खोखला हो जाता है।
  • चरित्र के बिना ज्ञान: ज्ञान का मूल्य तभी है जब वह इंसान को ज़िम्मेदार और संवेदनशील बनाए। अगर शिक्षा का इस्तेमाल धोखा देने, शोषण करने या केवल व्यक्तिगत लाभ उठाने के लिए हो, तो वह ज्ञान नहीं बल्कि विनाश का साधन बन जाता है। गांधी जी के अनुसार, शिक्षा का मकसद चरित्र निर्माण होना चाहिए।
File:Gandhi writing Aug1942.jpg

नैतिकता के बिना वाणिज्य और मानवता के बिना विज्ञान
ये दोनों पाप समाज और आधुनिक जीवन की बड़ी चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं।

  • नैतिकता के बिना वाणिज्य: जब व्यापार केवल मुनाफ़े के लिए किया जाता है और ईमानदारी या इंसाफ़ की कोई परवाह नहीं होती, तो यह समाज को तोड़ता है। भ्रष्टाचार, नकली उत्पाद, मजदूरों का शोषण - ये सब इसी सोच से निकलते हैं। सही मायने में वाणिज्य तभी सफल है जब उसमें समाज की भलाई और ईमानदारी जुड़ी हो।
  • मानवता के बिना विज्ञान: विज्ञान और तकनीक इंसान की प्रगति के सबसे बड़े साधन हैं, लेकिन अगर उनका उपयोग केवल युद्धक हथियार बनाने या पर्यावरण को नष्ट करने के लिए हो, तो यह मानवता के खिलाफ़ अपराध है। विज्ञान का उद्देश्य जीवन को सरल, सुरक्षित और बेहतर बनाना होना चाहिए। गांधी जी का मानना था कि अगर विज्ञान में मानवता न हो, तो उसका विकास विनाशकारी साबित हो सकता है।

त्याग के बिना धर्म और सिद्धांत के बिना राजनीति
ये दोनों पाप समाज की सबसे गहरी जड़ों से जुड़े हैं - धर्म और राजनीति।

  • त्याग के बिना धर्म: अगर धर्म केवल कर्मकांडों तक सीमित रह जाए और उसमें सेवा, करुणा और त्याग की भावना न हो, तो वह अधूरा है। धर्म का असली उद्देश्य लोगों को जोड़ना और उनके दुःख दूर करना है, न कि दिखावा या अंधविश्वास।
  • सिद्धांत के बिना राजनीति: राजनीति तब तक स्वस्थ है जब तक उसमें नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों की जगह हो। जब राजनीति केवल सत्ता पाने का साधन बन जाए और उसमें ईमानदारी या जवाबदेही की जगह न रहे, तो यह अराजकता और अन्याय पैदा करती है। गांधी जी ने राजनीति को सेवा और जनकल्याण का माध्यम माना था, न कि व्यक्तिगत स्वार्थ का।

गांधी जी की चेतावनियों से आज के समाज के लिए सीख
गांधी जी की सात सामाजिक पापों की सूची हमें केवल चेतावनी ही नहीं देती, बल्कि एक सकारात्मक रास्ता भी दिखाती है। अगर हम मेहनत से कमाए गए धन को महत्व दें, आनंद को विवेक से जोड़ें, ज्ञान को चरित्र से मिलाएँ, व्यापार को नैतिक बनाएं और विज्ञान को मानवता के लिए इस्तेमाल करें, तो समाज खुद-ब-खुद बेहतर बन सकता है। साथ ही धर्म को त्याग और सेवा से जोड़कर और राजनीति को सिद्धांतों पर आधारित बनाकर ही हम एक संतुलित और न्यायपूर्ण व्यवस्था खड़ी कर सकते हैं। आज के समय में जब दुनिया कई संकटों से घिरी है, गांधी जी की यह सीख हमें याद दिलाती है कि समाज को बचाने का रास्ता बाहरी ताक़तों से नहीं, बल्कि हमारे भीतर की नैतिकता और जिम्मेदारी से निकलता है।

संदर्भ-
https://short-link.me/18IHD 

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