लखनऊ की संस्कृति से लोकतंत्र और समानता की सीख को फिर से समझने का अवसर

आधुनिक राज्य : 1947 ई. से वर्तमान तक
26-11-2025 09:16 AM
लखनऊ की संस्कृति से लोकतंत्र और समानता की सीख को फिर से समझने का अवसर

लखनऊवासियों, 26 नवंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय संविधान दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि हमारी आज़ादी, समानता और भाईचारे की नींव को याद करने का दिन है। भारत का संविधान हमें यह सिखाता है कि देश सिर्फ़ सीमाओं से नहीं, बल्कि उसके नागरिकों की सोच, मूल्यों और आपसी सम्मान से बनता है। जैसे हमारी नवाबी तहज़ीब में “अदब, बातचीत की नज़ाकत और हर व्यक्ति को इज़्ज़त देना” एक परंपरा रही है, वैसा ही आदर्श हमारा संविधान भी आगे बढ़ाता है - कि हर व्यक्ति समान है, चाहे उसका धर्म, भाषा, पहचान या जीवनशैली कुछ भी क्यों न हो। संविधान हमें अपने विचार रखने की आज़ादी देता है, सपने चुनने का अधिकार देता है, और अन्याय के खिलाफ़ खड़े होने की ताकत देता है। लेकिन इसके साथ ही यह हमें यह भी याद दिलाता है कि देश सिर्फ़ सरकार से नहीं चलता - देश नागरिकों की जिम्मेदारियों से चलता है। कानून का सम्मान करना, दूसरों के अधिकारों को समझना, देश की एकता को बनाए रखना - यह केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि हमारी पहचान है। इसलिए, संविधान दिवस सिर्फ़ किताब पढ़ने का दिन नहीं - यह वह क्षण है जब हम सोचते हैं कि हम कौन हैं, हम क्या बनना चाहते हैं, और हम अपने भारत को किस दिशा में आगे ले जाना चाहते हैं। लखनऊ की धरती, जिसने हमेशा मोहब्बत, तहज़ीब और मिल-जुलकर रहने की संस्कृति को सहेजा है, आज भी हमें याद दिलाती है कि यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है - और यही संविधान का भी सबसे बड़ा संदेश है। 
आज के इस लेख में हम राष्ट्रीय संविधान दिवस के महत्व को सरल शब्दों में समझेंगे। हम जानेंगे कि यह दिवस क्यों मनाया जाता है, इसका इतिहास क्या है और भारत ने अपना संविधान कैसे बनाया। साथ ही, हम डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका पर भी बात करेंगे, जिन्होंने संविधान को समानता और न्याय की मजबूत नींव दी। अंत में, हम समझेंगे कि देश भर में संविधान दिवस कैसे मनाया जाता है और यह दिन हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनने की याद क्यों दिलाता है।

File:Constitution-Day.jpg

राष्ट्रीय संविधान दिवस क्या है और क्यों मनाया जाता है?
राष्ट्रीय संविधान दिवस, जिसे हम “संविधान दिवस” या के नाम से जानते हैं, हर वर्ष 26 नवंबर को मनाया जाता है। यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की नींव का उत्सव है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि किसी भी समाज में स्वतंत्रता केवल बाहरी शासन से मुक्ति भर नहीं होती, बल्कि समान अधिकार, आत्मसम्मान और न्याय पाने की यात्रा भी होती है। हमारा संविधान यह सुनिश्चित करता है कि हम सब एक ऐसे राष्ट्र का हिस्सा हैं जहाँ हर व्यक्ति को उसकी पहचान, विचार, धर्म, संस्कृति और सपनों के लिए सम्मान मिलता है। संविधान दिवस मनाने का उद्देश्य यह है कि नागरिक यह समझें कि लोकतंत्र केवल भाषणों और कानूनों से नहीं, बल्कि जागरूक, जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिकों से जीवित रहता है। यह दिन विशेषकर नई पीढ़ी को यह समझाने के लिए जरूरी है कि आज हमें जो सुरक्षा, अधिकार, स्वतंत्रता और अवसर मिलते हैं, वह सदियों के संघर्षों, आंदोलनों और बलिदानों का परिणाम है। अतः यह दिवस हमें अपने देश, अपने कर्तव्यों और अपने संविधान के प्रति सम्मान विकसित करने की प्रेरणा देता है।

संविधान दिवस का इतिहास और उत्पत्ति
भारत के स्वतंत्र होने के बाद देश के सामने एक बड़ी चुनौती थी - एक ऐसा तंत्र स्थापित करना जो न्यायपूर्ण, एकीकृत और लोकतांत्रिक हो। इस उद्देश्य के लिए 1946 में संविधान सभा की स्थापना की गई। इस सभा में विभिन्न राज्यों, समुदायों, भाषाओं और पृष्ठभूमियों से आए हुए प्रतिनिधि शामिल थे, जो भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता का प्रतीक थे। संविधान बनाना कोई साधारण कार्य नहीं था, बल्कि लगातार चर्चाओं, बहसों, सुझावों और सुधारों से गुज़रा एक लंबा और गंभीर प्रयास था। यह प्रक्रिया 2 साल, 11 महीने और 17 दिन चली, जिसमें 1145 से अधिक बैठकें हुईं। हर अनुच्छेद, हर शब्द और हर सिद्धांत पर बेहद धैर्य और विचारशीलता से निर्णय लिया गया। 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे पूरे देश में लागू किया गया, जिस दिन भारत गणतंत्र बना। साल 2015 में, भारत सरकार ने इस दिन को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय संविधान दिवस के रूप में घोषित किया, ताकि नागरिक विशेषकर युवा पीढ़ी संविधान के मूल मूल्यों को समझ सके और उससे जुड़ सके।

File:Dr. Ambedkar with Mr. Wallace Stevens at Columbia University, New York (USA), while receiving LL.D. (Doctorate of Laws) for being the 'Chief Architect of the Constitution of India'.jpg
डॉ. अम्बेडकर, श्री वालेस स्टीवंस के साथ कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में, 'भारत के संविधान के मुख्य वास्तुकार' होने के लिए एल.एल.डी. (डॉक्टरेट ऑफ लॉज़) की उपाधि प्राप्त करते हुए।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर और संविधान निर्माण में उनकी भूमिका
भारत के संविधान निर्माण के केंद्र में थे डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर, जिन्हें “भारतीय संविधान के निर्माता” के रूप में सम्मानित किया जाता है। वे ड्राफ्टिंग कमेटी (Drafting Committee) के अध्यक्ष थे और उन्होंने संविधान को केवल शासन चलाने का दस्तावेज नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने का सशक्त माध्यम माना। बाबासाहेब का जीवन स्वयं समाज में व्याप्त भेदभाव, अन्याय और असमानता के खिलाफ संघर्ष का उदाहरण था। उनकी यह व्यक्तिगत पीड़ा ही उनके भीतर समानता और मानवाधिकारों के लिए गहरी प्रतिबद्धता बनकर उभरी। उन्होंने सुनिश्चित किया कि संविधान लोगों को केवल अधिकार न दे, बल्कि मानव गरिमा और आत्मसम्मान की सुरक्षा भी करे। उनके द्वारा दिए गए मूल्य - समानता, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, शिक्षा का अधिकार, सामाजिक न्याय और अवसर की समानता - आज भारत की आत्मा हैं। बाबासाहेब का सपना था: “एक ऐसा भारत जहाँ व्यक्ति की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके चरित्र और क्षमता से हो।” हमारा आधुनिक भारत उसी सपने की निरंतर यात्रा है।

संपूर्ण भारत में संविधान दिवस कैसे मनाया जाता है?
संविधान दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने और अपनाने का अवसर है। इस दिन पूरे भारत में स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, सरकारी संस्थानों और सामाजिक संगठनों में विशेष गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। सबसे पहले संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक वाचन किया जाता है, जिससे नागरिकों में एकता, समानता और देशभक्ति की भावना मजबूत होती है। इसके बाद भाषण, निबंध लेखन, वाद-विवाद, क्विज़ (quiz) प्रतियोगिता के माध्यम से संविधान का ज्ञान गहराता है। स्कूलों में पोस्टर, पेंटिंग, स्लोगन (slogan) और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनसे छात्र न केवल संविधान को पढ़ते हैं बल्कि उसे महसूस करते हैं। इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य यह है कि संविधान हमारे पुस्तकों में कैद शब्द न बने, बल्कि हमारी सोच, व्यवहार और जीवन का हिस्सा बने।

File:Dr. Babasaheb Ambedkar, chairman of the Drafting Committee, presenting the final draft of the Indian Constitution to Dr Rajendra Prasad on 25 November, 1949.jpg
25 नवंबर, 1949 को संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारतीय संविधान का अंतिम प्रारूप प्रस्तुत करते हुए

संविधान दिवस का महत्व और भारत के नागरिकों के लिए इसका संदेश
संविधान दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमारा संविधान हमारी स्वतंत्रता का रक्षक और हमारा नैतिक मार्गदर्शक है। यह हमें चार महत्वपूर्ण आदर्शों का संदेश देता है - न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व।
लेकिन संविधान केवल अधिकार नहीं देता, यह कर्तव्यों की भी मांग करता है।
एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि हम:

  • देश की एकता और अखंडता की रक्षा करें
  • कानून और संविधान का सम्मान करें
  • अन्य नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करें
  • सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें
  • समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखें

महिला सदस्यों और अन्य ऐतिहासिक व्यक्तित्वों का योगदान
संविधान निर्माण में महिला सदस्यों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। सरोजिनी नायडू ने महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को आवाज दी। सुभद्रा जोशी ने सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को मजबूती दी। बेग़म क़ुदसिया रसल ने राष्ट्रवाद और सामाजिक एकता को केंद्र में रखने की वकालत की। वहीं दक्षायनी वेलायुधन, जो दलित समुदाय से आने वाली पहली महिला सदस्य थीं, उन्होंने हाशिए पर बसे समुदायों की ओर से समानता और न्याय की माँग को साहस के साथ रखा। इन सभी महिलाओं ने यह सिद्ध किया कि देश का निर्माण केवल पुरुषों का कार्य नहीं, बल्कि महिलाओं की दृष्टि, समझ, संवेदना और नेतृत्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/4h3npvhc 
https://tinyurl.com/4yntm3j2 
https://tinyurl.com/5ezwm9w8 
https://tinyurl.com/3zb2banf 



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