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                                            एक व्यक्ति जिसे अपने पूर्व इतिहास, उद्गम और संस्कृति के विषय में कोई जानकारी नहीं है, वह उस वृक्ष के जैसा है, जिसकी जड़ ही नहीं है।
मार्कस ग्रेवी (Marcus Gravy) का कथन
 सिंधु घाटी सभ्यता और नक्काशी कला
सिंधु घाटी सभ्यता की नक्काशी कला की गूंज दूर-दूर तक थी। इसके उत्पादन में कम कीमती पत्थरों से निर्मित आभूषण शामिल थे, जैसे कि गोमेद, कार्नेलियन, जैस्पर, बिल्लौर, फिरोजा, अमेज़न पत्थर इत्यादि। अतीत में मनके पुराने जमाने की कमतर चीज समझे जाते थे, लेकिन नए शोधों ने इसके महत्व को रेखांकित किया कि कैसे यह सामाजिक, धार्मिक, सजातीय  पहचान, आर्थिक नियंत्रण, व्यापार और विनिमय तंत्रों को जोड़कर सिंधु घाटी की परंपराओं के दूर-दूर तक प्रसरण में सहायक बने।
गोमेद बनाने की मोहनजोदड़ो, हड़प्पा,chanhudaro, नागवारा, लेवान, गाजी शाह, रहमानधेरी ,बनावाली, धोलावीरा, लोथल, सरकोटडा  इत्यादि में कार्यशालाओं की खोज हुई और गोमेद के शोधन या बाजार के क्षेत्र, जो दूसरे स्थानों पर मिले उनसे यह साबित होता है कि यह सभी कभी हड़प्पा की बस्तियां रहे थे।
मैकेय (Mackay) ने एक मोटी रूपरेखा बनाकर कार्नेलियन मनको के निर्माण के चरण बनाएं। इसमें उन्होंने खूबसूरत लंबे बैरल नमूने भी शामिल किए, जो संभवतः मेसोपोटामिया के साथ लंबी दूरी के व्यापार के लिए निर्मित किये गए थे।
ड्रिल्स एकदम हड़प्पा के पत्थरों के प्रकार की होती हैं, जो प्रारंभिक सिंधु सभ्यता के दौर की थी। यह ड्रिल्स गोमेद और कार्नेलियन के लिए हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नागवारा और धोलावीरा में  इस्तेमाल होती थी, जो एक खास चट्टान एर्नेस्टिट(Ernestite) से बनी थी। यह नाम अर्नेस्ट  मैकेय (Ernest Mackay) के नाम के आधार पर रखा गया । ऐसा भी माना जाता है कि बहुत से लंबे कार्नेलियन मनके, सिंधु घाटी में निर्मित हुए थे, जबकि उनमें से बहुत से मेसोपोटामिया में उन सिंधु घाटी के कलाकारों की वजह से बने, जो वहां से पलायन कर गए थे। इनका उल्लेख 'मेलुहा अल्पसंख्यकों' के नाम से मेसोपोटामिया के पाठों में मिलता है।
 धोलावीरा
पश्चिमी भारत के गुजरात राज्य में धोलावीरा एक पुरातात्विक स्थल है, जो  गुजरात राज्य में  खादिर बेट, कच्छ जिले के तालुका में स्थित है। इसका नाम एक आधुनिक गांव के आधार पर रखा गया है, जो इससे 1 किलोमीटर दक्षिण में था। यह गांव  राधानपुर से 165 किलोमीटर की दूरी पर है। स्थानीय रूप से  इसे कोटाडा टिंबा कहते हैं। इस स्थल पर सिंधु घाटी के खंडहर स्थित है।
 सभ्यता
हड़प्पा का शहर 'धोलावीरा' ट्रॉपिक ऑफ़ कैंसर (Tropic of Cancer) पर स्थित है। यह हड़प्पा की 5 सबसे बड़ी जगहों में से एक है और सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित सबसे प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में से एक है। यह माना जाता है कि यह स्थल अपने समय के महान शहरों में गिना जाता था। यह खदिर बेट एक आइलैंड (Island) पर स्थित है, जो कि  कच्छ  डेजर्ट  वाइल्ड लाइफ  सेंचुरी (Kutch Desert Wildlife Sanctuary) में है।  यह जगह 2650 ईसा पूर्व से बसी हुई थी, धीरे-धीरे इसका पतन लगभग 2100 ईसा पूर्व में शुरू हुआ। कुछ दिन यह सुनसान रहा, फिर दोबारा बस गया और यह स्थिति 1450 ईसा पूर्व तक रही।
पुरातत्व  विशेषज्ञों के अनुसार धोलावीरा अपने समय के व्यापार का केंद्र बिंदु था,पश्चिमी एशिया, गुजरात, सिंध और पंजाब के बीच धोलावीरा  एक सुनियोजित ढंग से बना शहर था। इस शहर का आकार और संगठन आयताकार था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के ठीक उलट धोलावीरा बहुत वैज्ञानिक और चिंतित तरीके से निर्मित शहर था जिसके तीन भाग थे-
दि सिटाडेल (The Citadel) 
रिजर्वायर चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान विभिन्न प्रस्तर खण्डों, मानकों और स्वर्ण द्वारा बनाये आभूषणों को दिखाया गया है। (Publicdomainpictures)
2. दूसरे चित्र में विभिन्न पत्थरों के प्रयोग से बनाये गए आभूषण और पत्थरों का चित्रण है, स्वर्ण आभूषणों में भी पत्थरों का प्रयोग किया गया था। (Prarang)
3. तीसरे चित्र में धोलावीरा से प्राप्त तराजू, सिंधु सभ्यता के दौरान प्रयुक्त ड्रिल और विभिन्न पत्रों को दिखाया है। (Prarang)
4. चौथे चित्र में सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के मध्य विस्तार, आवागमन का समुद्री मार्ग (लाल रेखा), और दोनों सभ्यताओं के स्थलों से प्राप्त लगभग एक जैसे मानकों को दिखाया गया है। (Prarang)
5. पांचवे चित्र में धोलावीरा का वर्तमान चित्रण है। (Flickr)
6. छठे चित्र में धोलावीरा का कलात्मक प्रोजेक्टेड (Projected) चित्रण और वर्तमान चित्र दिखाए गए हैं। (Prarang)
7. सातवें चित्र के दोनों ही खण्डों में कलात्मक तौर पर बनाये गए धोलावीरा के बाजार चित्रण है। (Flickr)
8. अंतिम चित्र में सिंधु सभ्यता से प्राप्त विभिन्न मोहरों के चित्र हैं। (Wikiwand)