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मेरठ में महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का दर्शन करने के लिए शहर के "औघड़नाथ मंदिर" में भक्तों का ताँता लग जाता है। हालांकि यह एक ऐसा अवसर होता है, जो न केवल मेरठ बल्कि देश के कोने-कोने में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन कश्मीर में या विशेषतौर पर कश्मीरी पंडितों के बीच इसे बड़े ही अनोखे रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
कश्मीर में महाशिवरात्रि के उत्सव को 'हेरथ' के नाम से जाना जाता है। "शिव-पार्वती" के विवाह का प्रतीक यह त्यौहार कश्मीरी पंडितों द्वारा अनोखे तरीके से मनाया जाता है। हेरथ के रीति-रिवाज और अनुष्ठान अन्य संस्कृतियों के रीति-रिवाज और अनुष्ठान से काफी भिन्न हैं। हेरथ शब्द संस्कृत के 'हर रात्रि' से लिया गया है, जिसका अर्थ 'हर (शिव का दूसरा नाम) की रात' होता है।
फरवरी या मार्च की शुरुआत में पड़ने वाला यह त्योहार कश्मीरी समुदाय के लिए बहुत महत्व रखता है। दिलचस्प बात यह है कि कश्मीरी ब्राह्मण इसे हिंदू महीने के 13वें दिन (दुनिया में अन्य जगहों पर मनाए जाने से एक दिन पहले।) मनाते हैं। महाशिवरात्रि का शाब्दिक अनुवाद "शिव की रात" होता है, जो भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह की रात को दर्शाता है।
कश्मीर में दिवाली के उत्सव के समान ही इस विशेष अवसर की तैयारी भी 21 दिन पहले से शुरू हो जाती है। तैयारी की गतिविधियों में घर की सफाई, रसोई की साफ-सफाई, विशेष बर्तनों का अनावरण, पूजा सामग्री खरीदना और नए कपड़े खरीदना शामिल हैं। कश्मीरी पंडितों में 'हेरथ' उत्सव त्रयोदशी यानी कि महाशिवरात्रि से एक दिन पहले शुरू होता है। शिवरात्रि के दिन परिवार के सभी सदस्यों के लिए उपवास करने की प्रथा होती है। परिवार की विवाहित लड़कियाँ इस समय अपने मायके आती हैं और वहीं अपने बाल धोती हैं। इसके बाद परिवार की ओर से कन्याओं को उपहार दिए जाते हैं।
घर के बड़ों के लिए, यह दिन प्रार्थना और ध्यान को समर्पित होता है, जबकि बच्चे नई पोशाक पहनकर खूब आनंदित होते हैं। पहले के समय में कश्मीरी पंडितों के परिवार के सदस्य "हारा बाज़" नामक समुद्री सीपियों के साथ एक खेल खेलते थे।
चलिए अब शिवरात्रि के विभिन्न अनुष्ठानों के बारे में जानते हैं:
शाम के समय कश्मीरी पंडितों के घरों में पूजा स्थल सजाए जाते हैं। कश्मीरी पंडित बटुकनाथ (भगवान शिव-पार्वती) के नाम पर घट स्थापना करते हैं। इसके अलावा कलश और चार कटोरे भी स्थापित किए जाते हैं। यह शिव बारात का प्रतीक होते है। इसके अलावा ऐसे दो बर्तनों जिन्हें दुलजी कहा जाता है, शिव बारात में भैरों के रूप में विराजित होते हैं। तीन से चार घंटे तक शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। पूजा संपन्न होने के बाद अगली सुबह कश्मीरी पंडित अपने घर के युवाओं को कुछ न कुछ देते हैं। इसे चूल्हा खर्च कहा जाता है।
पूजा के बाद सभी को प्रसाद के रूप में अखरोट दिया जाता है। कश्मीरी पंडित घर की लड़कियों को प्रसाद के रूप में अखरोट के अलावा चावल की रोटी भी देते हैं। यह प्रसाद शिव-पार्वती की बारातों के सामने भी चढ़ाया जाता है। शिवरात्रि अनुष्ठान तीन से चार दिनों तक चलता है। 15वें दिन दुन्या मावस मनाया जाता है। इस दिन को नदी के किनारे पूजा करके मनाया जाता है, जहां खाली बर्तन विसर्जन के लिए लाए जाते हैं। भीगे हुए अखरोट को घर वापस ले जाया जाता है और परिवार में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है, जिसमें अखरोट और तुमुल चपाती (चावल की चपाती) होती है। प्रसाद वितरण का सिलसिला एक सप्ताह तक जारी रहता है। यह उत्सव फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को समाप्त होता है। एक प्रथा के अनुसार, घर की महिलाएं अपने माता-पिता के घर जाती हैं और पैसे लेकर अपने ससुराल लौटती हैं।
जिस प्रकार कश्मीर और पूरे भारत में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि में थोड़े बहुत अंतर हैं, ठीक उसी प्रकार शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में भी बड़ा अंतर होता है, जिसके बारे में हम सभी को पता होना चाहिए। वास्तव में शिवरात्रि और महाशिवरात्रि दो अलग-अलग किंतु महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार हैं, और दोनों ही भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित हैं। हालाँकि, इनके समय और महत्व में भिन्नताएं हैं।
दरअसल शिवरात्रि, जिसे मासिक शिवरात्रि भी कहा जाता है, एक मासिक यानी हर महीने होने वाली घटना है, जो कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है। इस दिन सभी शिव भक्त इस विश्वास के साथ उपवास करते हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती से प्रार्थना करते हैं कि उनकी सभी इच्छाएँ पूरी होंगी। यह दिन जीवन साथी चाहने वाले अविवाहित भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।
दूसरी ओर, महाशिवरात्रि एक वार्षिक त्योहार है, जिसे पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह तिथि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है। इस साल 2024 में, इसे 8 मार्च को मनाया जाएगा। यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती की शादी की सालगिरह का प्रतीक है और इसे आध्यात्मिक जागृति और मुक्ति के लिए एक आदर्श दिन माना जाता है। इस अवसर पर भक्त पूरी रात जागते हैं, विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और शिव मंत्रों का जाप करते हैं।
हालांकि दोनों अवसरों पर भगवान शिव के मंदिरों में जाना और जलाभिषेकम जैसे अनुष्ठान करना और शिव लिंगम को पंचामृत चढ़ाना आम है। लेकिन समानताओं के बावजूद, कई लोग शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के बीच अंतर नहीं समझ पाते हैं। दोनों त्यौहार अलग-अलग महीनों में मनाए जाते हैं और अलग-अलग अर्थ रखते हैं।
हमारे मेरठ शहर और आदियोगी शिव के बीच का संबंध भी बेहद गहरा माना जाता है। मेरठ कैंट स्थित औघड़नाथ मंदिर केवल देशभर में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय है। महाशिवरात्रि के अवसर पर हजारों कांवड़िये और शिव भक्त औघड़नाथ मंदिर में शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते हैं। वर्ष 2019 में कम से कम 5 लाख कांवड़ियों ने मेरठ कैंट स्थित औघड़नाथ में शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाया था। कांवड़िये इस गंगा जल को हजारों किलोमीटर की कांवड़ यात्रा तय करके लाते हैं। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड़ यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर इस मंदिर की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता होती है, और सुरक्षाकर्मी उसी के लिए परिसर में मौजूद रहते हैं। शहर के अधिकांश मंदिरों में शिव मंदिरों पर भक्तों का तांता लगा रहता है। दिलचस्प बात यह भी है की बाबा औघड़नाथ मंदिर में मंगल आरती का वीडियो ऑनलाइन भी अपलोड किया जाता है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/54v8f5dv
http://tinyurl.com/3b82mpaw
http://tinyurl.com/6twtb29u
http://tinyurl.com/pkks6r6t
चित्र संदर्भ
1. कश्मीरी पंडितों और उनकी महाशिवरात्रि को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube, wikimedia)
2. पशुपतिनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. धार्मिक ग्रंथ लिख रहे कश्मीरी पंडितों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. महाशिवरात्रि के अवसर पर भिगो कर रखे गए अखरोटों को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
5. मंदिर में पूजा करते कश्मीरी पंडित को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
6. मेरठ के औघड़नाथ मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)