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हमारे मेरठ शहर में 1997 में स्थापित राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय का उद्देश्य ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संपदा का संग्रहण, संरक्षण, प्रलेखन और प्रदर्शनी करना है। इसे शैक्षिक गतिविधियों के लिए उपलब्ध कराना और हमारे गौरवशाली अतीत के बारे में जागरूकता भी उत्पन्न करना है। इस संग्रहालय में मेरठ के कुछ डाक टिकट और चित्र के साथ-साथ कुछ प्राचीन दुर्लभ सिक्कें भी उपलब्ध हैं। तो आइए आज हम इस संग्रहालय में संग्रहित कुछ दुर्लभ सिक्कों और इसके इतिहास के विषय में जानते हैं। इसके साथ ही हमारे पड़ोसी शहर बागपत में हाल ही में हुई सिक्कों की नवीनतम खोज के बारे में भी जानते हैं।
भारत के इतिहास में विशेष रूप से 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमारे मेरठ शहर ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई स्मारकों, किलों, ऐतिहासिक स्थानों के माध्यम से प्राचीन इतिहास की यादें आज भी इस शहर में जीवंत हैं। मेरठ में 'सरकारी स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय' एक ऐसा स्थान है जो स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। इस सरकारी संग्रहालय में टिकटें, कला और कलाकृतियाँ, चित्रकला, भित्ति चित्र, संग्रहणीय वस्तुएँ और यादगार वस्तुएँ सुरक्षित रूप से संरक्षित हैं। यह संग्रहालय मेरठ के छावनी क्षेत्र में शहीद स्तंभ या शहीद स्मारक के परिसर के भीतर दिल्ली रोड से 6 किलोमीटर दूर स्थित है। इस संग्रहालय की स्थापना युद्ध की यादों और युद्ध के समय की घटनाओं की चित्रावली को संरक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई घटनाओं और प्रसंगों के बारे में युवा छात्रों और आम जनता को शिक्षित करने के लिए संग्रहालय में कई शैक्षिक दौरे और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस संग्रहालय में तात्या टोपे और नाना साहेब जैसे राष्ट्रीय नेताओं की पेंटिंग संग्रहालय की दीवारों पर सुशोभित हैं।
संग्रहालय में कुल पाँच दीर्घाएँ हैं जिनमें से केवल तीन ही कार्य अवस्था में हैं। इस गैलरी में उन शुरुआती घटनाओं को दर्शाया गया है जिनके कारण युद्ध हुआ। भारतीय सैनिकों में युद्ध का बीजारोपण करने वाले मायावी फकीर को पेंटिंग में अपने शिष्यों को रोटियां बांटते हुए देखा जा सकता है। इसके अलावा यहाँ सैनिकों द्वारा चर्बी वाले कारतूसों का उपयोग करने से इनकार करने, 85 सैनिकों के विरुद्ध किए गए कोर्ट मार्शल, जैसी अन्य पेंटिंग भी प्रदर्शित हैं। गैलरी II में युद्ध के दौरान घटित अन्य घटनाओं जैसे कि बागपत पुल का टूटना, रानी लक्ष्मी बाई, लखनऊ बाग, सती चौरा घाट की पेंटिंग प्रदर्शित की गई हैं।
संग्रहालय में संग्रहणीय वस्तुएं और तलवारें, बंदूकों के कारतूस जैसी वस्तुएं प्रदर्शित हैं। गैलरी III में मेरठ के पास खुदाई स्थलों से मिले शिलालेख और सिक्के प्रदर्शित हैं, जो उस प्राचीन सभ्यता को दर्शाते हैं जिसका मेरठ हिस्सा था। स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित पुस्तकों से युक्त एक संदर्भ पुस्तकालय भी इस संग्रहालय का एक हिस्सा है। संग्रहालय प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है और सरकारी छुट्टियों के दिन बंद रहता है।
प्राचीन भारत में प्रत्येक साम्राज्य एवं राज्य की अलग अलग मुद्रा होती थी, जिस पर उनका राज्य चिन्ह बना होता था। क्या आप जानते हैं भारत में मौद्रिक समरूपता मुगल काल के दौरान शुरू हुई। भारत में 1526 ईसवी से 1857 ईसवी तक लगभग 300 साल के मुगलकालीन शासन की सबसे बड़ी देन पूरे साम्राज्य में मौद्रिक समरूपता लाना था। इससे पूरे साम्राज्य में सिक्का प्रणाली की एकरूपता और समेकन शुरू हुआ। मुगल साम्राज्य प्रभावी रूप से समाप्त होने के बाद भी यह व्यवस्था लंबे समय तक चली। वहीं त्रि-धातु सिक्कों की प्रणाली जो मुगल सिक्के की विशेषता के रूप में सामने आई, वह काफ़ी हद तक मुगलों की नहीं बल्कि दिल्ली में कुछ समय के लिए शासन करने वाले अफगानी शासक शेर शाह सूरी की देन थी। शेरशाह ने चाँदी का एक सिक्का जारी किया जिसे रूपिया कहा जाता था।
इसका वजन 178 ग्रेन था जिसे आधुनिक रुपये का अग्रदूत माना जाता है। 20वीं सदी की शुरुआत तक यह सिक्का अपने मूल रूप में चलन में रहा। चांदी के रुपए के साथ 169 ग्रेन वजन के सोने के सिक्के, जिन्हें मोहर कहा जाता था, और तांबे के सिक्के, जिन्हें दाम कहा जाता था, जारी किए गए। इन सिक्कों की डिजाइन और ढलाई तकनीक सिक्का निर्माण में मुगलकालीन मौलिकता और नवोन्वेषी कौशल दर्शाती है। अकबर के शासनकाल के दौरान इन सिक्कों की डिजाइन और अधिक परिष्कृत की गई, जिसके तहत पृष्ठभूमि पर फूलों की छपाई जैसे नवाचार पेश किए गए। इस दौरान बनाए गए विशाल सिक्के दुनिया में जारी किए गए सबसे बड़े सिक्कों में से हैं।
इन सिक्कों पर राशि चिन्ह, चित्र और साहित्यिक छंद आदि के मुद्रण ने इन सिक्कों को एक विशिष्ट मौलिकता प्रदान की। शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान अनेक प्रकार के सिक्के सामने आए और इन्हें मानकीकृत किया गया। जबकि औरंगज़ेब ने अपनी रूढ़िवादिता के कारण सिक्कों से आस्था के इस्लामी लेख, कालिमा को हटवा दिया और सिक्कों के प्रारूप को शासक के नाम, टकसाल और जारी करने की तारीख को शामिल करने के लिए मानकीकृत किया गया।
वर्ष 2018 में हमारे मेरठ से लगे बागपत शहर के सिनौली गांव में ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ (Archaeological Survey of India (ASI) द्वारा 'ताम्र-कांस्य युग' (2000-1800 ईसा पूर्व) के रथ के अवशेषों की खोज के महीनों बाद, बागपत के ही बरनावा क्षेत्र के खपराना गांव में एक टीले पर एक स्थानीय व्यक्ति को कुषाण युग के तांबे के ३३ सिक्कों से भरा एक छोटा बर्तन मिला।
बागपत हड़प्पा युग की प्राचीन सभ्यता से संबंधित एक ही स्थान रहा है। बरनावा के निकट हिंडन नदी के तट पर कुछ टीले हैं। ये सिक्के कुषाण काल के समान हैं, विशेष रूप से वे सिक्के जो 200-220 ईसवी के राजा वासुदेव के शासनकाल के दौरान प्रचलन में थे, जिसका अर्थ है कि ये सिक्के 1,800 वर्ष पुराने हैं। वास्तव में यह स्थान हड़प्पा युग की प्राचीन सभ्यता के इतिहास से समृद्ध है। इससे पहले यहाँ खुदाई के दौरान कुछ रथो के अवशेष एवं आठ कब्रगाह और कई कलाकृतियाँ भी मिलीं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3jyv8j7f
https://tinyurl.com/3we9wthh
https://tinyurl.com/44x5tyy6
https://tinyurl.com/5n77zwfh
चित्र संदर्भ
1. एक संग्रहालय में रखे गए सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
2. राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के भीतर रखी गई एक कृति को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. बाहर से मेरठ के राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. मुग़ल कालीन सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. शाहजहाँ के सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
6. सिनौली गांव में खुदाई के दौरान मिली कब्र का चित्रण (Quora)