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मूर्तियों को कला का सबसे प्रारंभिक रूप माना जाता है। भारत में मूर्तियों का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू होता है। यह सभ्यता लगभग 3300-1300 ईसा पूर्व से अस्तित्व में थी। आज भी भारतीय मूर्तिकला को कलात्मक अभिव्यक्ति का सबसे उल्लेखनीय माध्यम माना जाता है। वहीं आज 27 अप्रैल के दिन को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय मूर्तिकला दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। तो चलिए अंतर्राष्ट्रीय मूर्तिकला दिवस के अवसर पर विभिन्न प्रकार की मूर्तियों को निहारते हुए, भारतीय मूर्तिकला के सार को समझने का प्रयास करें। इसके अतिरिक्त, आज हम कुछ प्रसिद्ध मूर्तियों पर भी नज़र डालेंगेजिन्होंने पीढ़ियों तक अमिट छाप छोड़ी है।
मूर्तिकला दुनिया भर में कलात्मक अभिव्यक्ति का व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला रूप है। विभिन्न संस्कृतियों ने महत्वपूर्ण अर्थों के प्रतीक और अपने ईश्वर, नेताओं या अन्य प्रमुख सामाजिक हस्तियों का सम्मान करने के लिए विभिन्न प्रकार की मूर्तियां बनाई हैं।
इन मूर्तियों का आकार बहुत भिन्न होता है। ये आपके हाथ में समा सकने वाली छोटी मूर्तियों से लेकर पहाड़ों में उकेरी गई विशाल पत्थर की आकृतियों तक बहुत बड़ी भी हो सकती हैं।
चलिए अब मूर्तिकला के सबसे सामान्य प्रकारों पर प्रकाश डालते हुए उनकी अनूठी विशेषताओं को समझने की कोशिश करते हैं।
उभरी हुई मूर्तिकला (Relief Sculpture): यह मूर्तिकला के सबसे शुरुआती रूपों में से एक है, जिसका इतिहास 25,000 साल पुराना माना जाता है। इसके तहत पत्थर या लकड़ी जैसी सपाट सतह पर नक्काशी की जाती है। नक़्क़ाशी की गहराई मामूली से लेकर बहुत विस्तृत तक भिन्न-भिन्न होती है, जिससे त्रि-आयामी प्रभाव (three-dimensional effect) पैदा होता है।
गोल मूर्तिकला (Sculpture in the Round): यह उन मूर्तियों को संदर्भित करता है, जो त्रि-आयामी होती हैं और जिन्हें सभी कोणों से देखी जा सकती हैं। कुछ को पृष्ठभूमि में देखने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, जबकि अन्य स्वतंत्र होती हैं, यानी उन्हें 360-डिग्री परिप्रेक्ष्य से निहारा जा सकता है।
नक्काशीदार मूर्तियां (Carved Sculptures): ये मूर्तियां कला के प्राचीन रूप मानी जाती हैं जहां कलाकार लकड़ी या हाथी दांत जैसी सामग्रियों से आकृतियाँ बनाते हैं। कलाकार वांछित आकृति बनाने के लिए उसके कुछ हिस्सों को हटा देता है।
ढली हुई मूर्तियां (Cast sculptures): इस विधि में एक सांचा बनाना और फिर उसे ढलाई सामग्री से ढकना शामिल है। यह आधुनिक मूर्तिकला में एक लोकप्रिय विधि है, लेकिन इसकी जड़ें प्राचीन हैं।
योगात्मक मूर्तिकला (Additive Sculpture): यह एक आधुनिक पद्धति है, जहां कलाकार मूर्तिकला बनाने के लिए सामग्री को हटाने के बजाय सामग्रियों को आपस में जोड़ता है। इसके तहत उपयोग की जाने वाली सामग्रियां अक्सर लचीली होती हैं, जिससे कलाकार द्वारा इच्छानुसार आकार दिया जा सकता है।
घटाव मूर्तिकला (Subtraction Sculpture): मूर्तियाँ बनाने की यह विधि भी नक्काशी के समान है। इसके तहत कलाकार सामग्री के एक टुकड़े से शुरुआत करता है और वांछित परिणाम प्राप्त होने तक मूर्तिकला बनाता है।
एकत्रित मूर्तियां (Assembled Sculptures): ये विभिन्न सामग्रियों को एक साथ जोड़कर बनाई गई आधुनिक मूर्तियां हैं। इनका उपयोग अक्सर अमूर्त कृतियाँ बनाने के लिए किया जाता है।
स्थापना मूर्तियां (Installation Sculptures): इन मूर्तियों में अंतिम प्रतिमा बनाने के लिए पूर्व-निर्मित टुकड़ों को एक साथ व्यवस्थित किया जाता है।
काइनेटिक मूर्तियां (Kinetic Sculptures): इन मूर्तियों में वास्तविक या कथित गति पैदा करने के लिए आकृतियों, रेखाओं और प्रकाश प्रभावों का उपयोग किया जाता हैं। ऐसी मूर्तियाँ आधुनिक 21वीं सदी में आम हो गई है।
मिट्टी से बनी मूर्तियां: ये मूर्तियां जमीन में या चट्टानों या लकड़ी जैसी प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करके बनाई जाती हैं। इनका इतिहास भी हजारों साल पुराना माना जाता है। आधुनिक कलाकार इस तकनीक का उपयोग बड़ी संरचनाएँ बनाने के लिए करते।
भारत गर्म जलवायु और 440 मिलियन लोगों की आबादी वाला एशिया का एक बड़ा देश है। हमारे देश की कला हमारे भूगोल, धर्म और इतिहास से प्रभावित हुई है। भारत के परिदृश्य में जंगल, मैदान और हिमालय जैसे पहाड़ शामिल हैं। इन प्राकृतिक विशेषताओं ने भारत में मूर्तिकला को भी कला का एक लोकप्रिय रूप बना दिया है। मूर्तियाँ बनाने के लिए भारतीय कलाकार अक्सर मिट्टी, पत्थर और प्लास्टर जैसी सामग्रियों का उपयोग करते हैं।
भारतीय कला में कांस्य का भी उपयोग किया जाता था। इसका एक उल्लेखनीय अपवाद सिंधु घाटी सभ्यता का एक छोटा कांस्य भैंसा है, जिसे ताकत और जीवन शक्ति के प्रभावशाली चित्रण के लिए जाना जाता है। जीवंत गतिशीलता का यह गुण भारतीय मूर्तिकला की पहचान है।
भारत की सबसे प्रारंभिक कलात्मक कलाकृतियाँ, सिंधु घाटी सभ्यता से खोजी गई हैं। इनमें बड़े के बजाय छोटी मूर्तियाँ, जिनमें जानवरों और गाड़ियों के छोटे मॉडल शामिल हैं, जिनका उपयोग संभवतः खिलौने या धार्मिक प्रथा के रूप में किया जाता था। यहाँ पर खोजी गई स्टीटाइट से बनी छोटी वर्गाकार मुहरें ऐतिहासिक रूप से दिलचस्प हैं। ऐसा माना जाता है कि भारत में मूर्ति कला का विकास साधारण मिट्टी की मूर्तियों से शुरू हुआ, और धीरे-धीरे सुचारु रूप से तैयार की गई आकृतियों का भी निर्माण होने लगा। कलाकारों ने पत्थर की मूर्तियाँ बनाने से पहले लकड़ी की नक्काशी का प्रशिक्षण लिया होगा।
अपने दर्शन और धर्म की तरह ही भारतीय कला भी वास्तविकता या व्यक्तियों को चित्रित करने की तुलना में आध्यात्मिक और पौराणिक अवधारणाओं को व्यक्त करने का प्रयास करती है। उस समय के कलाकार भौतिक विवरणों को सटीक रूप से चित्रित करने के लिए बाध्य नहीं थे।
लेख में आगे कुछ उल्लेखनीय मूर्तियों को प्रदर्शित किया गया है, जो हमारी समृद्ध संस्कृति और इतिहास को दर्शाती हैं।
1. द डांसिंग गर्ल, मोहनजोदड़ो, स. 2500 ईसा पूर्व (The Dancing Girl, Mohenjodaro, C. 2500 BC): 10.5 सेंटीमीटर (4.1 इंच) ऊंची कांस्य की यह मूर्ति हड़प्पा युग की मानी जाती है। इसमें एक युवा महिला को आत्मविश्वासपूर्ण और प्राकृतिक मुद्रा में दर्शाया गया है। डांसिंग गर्ल को सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त एक उत्कृष्ट कृति और महत्वपूर्ण कलाकृति माना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम सभ्यता और बस्तियों की उत्पत्ति के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
2. अशोक स्तंभ, सारनाथ, तीसरी शताब्दी ई.पू: "अशोक स्तंभ" को सम्राट अशोक द्वारा लगभग 250 ईसा पूर्व में बनवाया गया था। इसमें चार शेर एक के पीछे एक खड़े हैं। यह स्तंभ आज भी अपने मूल स्थान पर बना हुआ है, जबकि इसका सिंह शिखर, सारनाथ संग्रहालय में रखा गया है। सारनाथ से अशोक स्तंभ के शेर का शीर्ष, भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है, और इसके आधार से "अशोक चक्र" को भारतीय ध्वज के केंद्र में दर्शाया गया है।
3. बुद्ध प्रतिमा, सारनाथ: इस प्रतिमा में गौतम बुद्ध को सारनाथ के हिरण पार्क में अपना पहला उपदेश देते हुए दर्शाया गया है, जहां उन्होंने चार आर्य सत्य, मध्य मार्ग और अष्टांगिक मार्ग के बारे में उपदेश दिया था। प्रतिमा में, बुद्ध पद्मासन में बैठे हैं, उनका दाहिना हाथ धर्मचक्र घुमा रहा है, त्रिरत्न प्रतीक पर आराम कर रहा है, और दोनों तरफ एक हिरण है।
4. नटराज, चोल कांस्य मूर्तिकला: चोल काल की प्रसिद्ध शिव नृत्य-नटराज कांस्य मूर्ति, सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक मूर्तियों में से एक मानी जाती है, जो आज भी पूजनीय है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yeynpfef
https://tinyurl.com/69aznxet
https://tinyurl.com/bdeeuxt6
चित्र संदर्भ
1. भगवान विष्णु के वहरा अवतार को संदर्भित करती 8वीं-9वीं शताब्दी की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भगवान शिव के नटराज स्वरूप की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. उभरी हुई मूर्तिकला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गोल मूर्तिकला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. नक्काशीदार मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ढली हुई मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
7. योगात्मक मूर्तिकला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. एकत्रित मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
9. काइनेटिक मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
10. मिट्टी की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
11. द डांसिंग गर्ल, मोहनजोदड़ो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
12. अशोक स्तंभ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
13. बुद्ध प्रतिमा, सारनाथ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
14. नटराज, चोल कांस्य मूर्तिकला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)