21वीं सदी में राष्ट्र की जीवनधारा, संस्कृत का ज्ञान होना क्यों है आवश्यक?

ध्वनि II - भाषाएँ
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21वीं सदी में राष्ट्र की जीवनधारा, संस्कृत का ज्ञान होना क्यों है आवश्यक?

संस्कृत, एक प्राचीन भाषा है, जिससे विभिन्न प्रकार की कविताओं, नाटको और किंवदंतियों की रचना हुई है। भारत के प्राचीन साहित्य के लेखन में संस्कृत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वैदिक साहित्य और शास्त्रीय संस्कृत साहित्य दोनों में कई भिन्नताएं हैं। आज हम संस्कृत के ऐसे दिलचस्प पहलुओं पर गहरी नज़र डालते हुए, 21वीं सदी में इसकी प्रासंगिकता पर भी गौर करेंगे। संस्कृत भाषा का उपयोग हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में हज़ारों वर्षों से किया जा रहा है। संस्कृत साहित्यिक, वैज्ञानिक और दार्शनिक ज्ञान के विशाल भंडार तक सीधी पहुंच प्रदान करती है। यह शास्त्रीय भारतीय कला, संगीत, नृत्य, साहित्य और धर्म की प्राथमिक भाषा है। भाषाओं के इतिहास और तुलना का अध्ययन करने वालों के लिए, संस्कृत को अति महत्वपूर्ण माना जाता है। यह आधुनिक भारतीय भाषाओं को समझने में भी मदद करती है। संस्कृत ने रंगमंच, नृत्य, संगीत और मूर्तिकला को प्रभावित करते हुए, कला के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा योगदान दिया है।
इन योगदान को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से संक्षेप में समझने का प्रयास करेंगे।
1. रंगमंच: संस्कृत रंगमंच, अपने समृद्ध लिखित नाटकों और मंच कला के विज्ञान के लिए प्रसिद्ध है। भास और कालिदास जैसे प्रसिद्ध नाटककारों ने इसके साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उदाहरण के लिए, कालिदास रचित "अभिज्ञान शाकुंतलम् " को यूनेस्को की विश्व धरोहर कृति का दर्जा प्राप्त है। संस्कृत रंगमंच न केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि यह आज भी जीवंत और फल-फूल रहा है। आज भी कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में संस्कृत रंगमंच से प्रेरणा लेकर नाटकों का प्रदर्शन किया जाता है। कई वार्षिक नाटक प्रतियोगिताएं भी होती हैं, जिनमें संस्कृत थिएटर का प्रदर्शन किया जाता है। ऐसा ही एक उदाहरण कूडियाट्टम है, जो केरल का एक पारंपरिक संस्कृत थिएटर है, जिसे यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है। 2. नृत्य: संस्कृत परंपरा में नृत्य, विशिष्ट गतिविधियों के माध्यम से भावना (रस) पैदा करने से जुड़ा हुआ है।
इसके तीन मुख्य घटक होते हैं:
1. नाट्य (नाटक)
2. नृत्त (लय)
3. नृत्य (भावना और मनोदशा की अभिव्यक्ति)
इन तत्वों को अभिनय के माध्यम से व्यक्त किया जाता है, जिसमें इशारे, भाषण, भावनाओं का प्रतिनिधित्व और वेशभूषा शामिल होती है। नृत्य पर कई संस्कृत ग्रंथ समर्पित हैं, जिनमें भरत का नाट्यशास्त्र और नंदिकेश्वर का अभिनयदर्पण, भी शामिल हैं। ये सभी भारतीय शास्त्रीय नृत्यों के लिए निर्देश के आधिकारिक स्रोत के रूप में काम करते हैं। 3. संगीत: संस्कृत में संगीत को गण, गीति या संगीत के नाम से जाना जाता है। स्वर संगीत, वाद्य ध्वनि और नृत्य के मिश्रण को संगीत के रूप में संदर्भित किया जाता है। ये तीनों कलाएँ स्वतंत्र हैं, जिनमें स्वर संगीत (गीत) को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस संदर्भ में संगीत स्वरों की एक श्रृंखला है, जो सुखद भावनाएं पैदा करती है।
शुरुआत से ही भारतीय संगीत और संस्कृत का गहरा जुड़ाव रहा है। वैदिक युग के दौरान, सामगान नामक वैदिक छंदों का उच्चारण करने की एक विधि का उपयोग किया जाता था। शास्त्रीय काल में, गंधर्व नामक एक प्रकार का संगीत विकसित हुआ, जो माधुर्य, लय और शब्दों के साथ एक प्रकार का मंच गीत था। इसके बाद भरत ने नाट्यशास्त्र में संगीत के रूप और प्रणाली को व्यवस्थित किया, जिससे रागों का निर्माण हुआ।
15वीं और 16वीं शताब्दी में लोचन और रामामात्य जैसे संगीतज्ञों ने संगीत में नई प्रवृत्तियाँ प्रस्तुत कीं। भारतीय संगीत के क्षेत्र में संस्कृत संगीतज्ञों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत दोनों को उनकी वर्तमान स्थिति में आकार दिया गया है। 4. मूर्तिकला: मूर्तिकला, या तक्षणशिल्प, वास्तुकला और अन्य समान कलाओं से निकटता से संबंधित है। "तक्ष" शब्द का अर्थ तराशना या खोदना होता है। इस कला के पौराणिक प्रवर्तक स्वर्गीय वास्तुकार "त्वष्टा" को माना जाता है। मूर्तिकला के क्षेत्र में संस्कृत साहित्य के योगदान को देव छवियों, मंदिर की सजावट, सिंहासन, शाही छतरियां, रथ, सोफे (पर्यंका), लताओं से सजे कल्पवृक्ष, आभूषण और मालाओं के रूप देखा जाता है। भले ही संस्कृत मानव इतिहास की सबसे प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, लेकिन कई विद्वानों के अनुसार आधुनिक समय में भी संस्कृत हमारे लिए उतनी ही आवश्यक है, जितनी जीवन के लिए जल और सांस आवश्यक है। संस्कृत हमारे भीतर पहचान की एक मज़बूत भावना प्रदान करती है। साथ ही यह योग और आयुर्वेद के अभ्यास की तरह, अनगिनत तरीकों से हमारे जीवन को समृद्ध बनाती है।
स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि संस्कृत शब्दों की गहराई, मिठास और महत्व अन्य भाषाओं से बेजोड़ है। भारत में बौद्ध धर्म के पतन का कारण भी उनके द्वारा संस्कृत से दूर हटने को बताया जाता है। महर्षि अरविंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, लोकमान्य तिलक और अन्य जैसे कई प्रतिष्ठित हस्तियों और संतों ने संस्कृत के अध्ययन के महत्व पर ज़ोर दिया है। मैक्स मुलर और गोएथे (Max Muller and Goethe) जैसे पश्चिमी विद्वानों ने भी इसके महत्व पर ज़ोर दिया है। हमारे धर्मग्रंथों और आयुर्वेद के अध्ययन के लिए संस्कृत बेहद ज़रूरी है। यह ज्योतिष का अध्ययन करने के लिए भी ज़रूरी है। कई जानकार मानते हैं कि संस्कृत सीखने से व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा मिल सकता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस युग में कई धर्मग्रंथ लेखक, प्रौद्योगिकीविद् और भाषाविद् संस्कृत के अध्ययन के लाभों का समर्थन करते हैं।
संस्कृत, जो संस्कृति, साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और कई अन्य क्षेत्रों में व्याप्त है, आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता, देशभक्ति, सहिष्णुता और समृद्धि को बढ़ाती है। संस्कृत राष्ट्र की जीवनधारा है और इसका अध्ययन राष्ट्र की पहचान को संरक्षित और विस्तारित करने के लिए आवश्यक है।
पारंपरिक संस्कृत विद्यालयों, वैदिक विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षण निर्धारित करने जैसे हाल के परिवर्तनों ने संस्कृत सीखना पहले से कहीं अधिक आसान बना दिया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2hw24bxm
https://tinyurl.com/mrvatmva
https://tinyurl.com/226sf252

चित्र संदर्भ
1. एक संस्कृत की कक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. संस्कृत के गणितीय सूत्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक नाटक मंचन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भरतनाट्यम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. भारतीय संगीतज्ञों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक भारतीय मूर्तिकार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. एक संस्कृत की कक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. संस्कृत पर चर्चा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)