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बचपन में एक कैंडी के मिलने पर हम सभी को जितनी खुशी होती थी उतनी तो शायद आज कोई बेहद महंगा तोहफ़ा पाकर भी नहीं होती! वास्तव में एक बच्चे के लिए कैंडी का उपहार सोने के बराबर मूल्य का होता है। विभिन्न प्रकार के स्वादों वाली मीठी या खट्टी मीठी कैंडी को सभी बच्चे पाने के लिए लालायित रहते हैं। बच्चों के चेहरे पर इस असीम मुस्कुराहट को लाने में महाराष्ट्र के गांव ‘रावलगांव’ ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जहां के एक व्यक्ति ने चीनी कारखाने से एक ऐसे व्यवसाय की शुरुआत की, जिसने भारत के चीनी उद्योग, कृषि और FMCG उद्योगों पर एक अमिट छाप छोड़ी। आइए, महाराष्ट्र के इस गांव की फिर से यात्रा करते हैं, जिसने 80 के दशक के अंत और 90 के दशक की शुरुआत के हर बच्चे को मुस्कुराने का एक कारण दिया है। जबकि रावलगांव अपनी प्रतिष्ठित कैंडीज के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है, बिस्किट उद्योग में इसका प्रवेश भी उतना ही उल्लेखनीय है।
क्या आप जानते हैं कि कैंडी का यह व्यवसाय वास्तव में एक चीनी कारखाने के रूप में शुरू हुआ था। वर्ष 1933 में, रावलगांव में वालचंद हीराचंद दोशी ने एक चीनी कारखाने की शुरुआत की, जहां उन्होंने उनके सबसे प्रतिष्ठित 'पान पसंद' से लेकर 'ओजी मैंगो मूड' (OG Mango Mood) तक, हर बच्चे के मन को भाने वाली उन कैंडी और टॉफी का निर्माण किया , जिसने 90 के दशक के हर बच्चे के चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी। यह सब तब शुरू हुआ जब वालचंद ने महाराष्ट्र के नासिक जिले के एक छोटे से गांव में एक कारखाना स्थापित करने के लिए 1,500 एकड़ जमीन खरीदी। उस दौरान उन्होंने किसानों को गन्ना उगाने में सहायता करके भारत के आर्थिक भविष्य की कल्पना की। इंजीनियरों, रसायनज्ञों और कृषकों के साथ बहुत शोध और प्रयोगों के बाद, उन्होंने भारत की पहली चीनी मिलों में से एक ‘रावलगांव शुगर फार्म’ की स्थापना की।
मिल के ज़रिये उन्होंने न केवल लोगों के लिए वहां काम करने और ईमानदारी से जीवन यापन करने के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न किए, बल्कि आसपास के क्षेत्रों के किसानों को अपना गन्ना बेचने के लिए एक सीधा बाजार भी उपलब्ध कराया। ऐसा माना जाता है कि रावलगांव-मालेगांव क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक परिवार से कम से कम एक सदस्य को कंपनी के साथ विक्रेता या कर्मचारी के रूप में रोजगार प्राप्त हुआ। चीनी मिल स्थापित करने के बाद जिस स्वादिष्ट कैंडी को हम सभी बहुत पसंद करते हैं, उसे बनाने में उन्हें केवल सात वर्ष लगे। इन कैंडीज़ का उत्पादन बड़ी सोच समझ के साथ किया गया जैसे, लोगों को रंग देखने और अपना पसंदीदा रंग चुनने की अनुमति देने के लिए चेरी (Cherry) और लैको (Laco) कैंडी रैपर को पारदर्शी बनाना। इस मिल से टूटी फ्रूटी, असोर्टेड सेंटर, कॉफी ब्रेक, सुप्रीम टॉफी, चॉकोक्रीम और मिश्रित कैंडीज आदि सहित अन्य 10 तरह की कैंडीज़ एवं टॉफ़ी का उत्पादन किया जाता है जो 100 प्रतिशत शाकाहारी हैं और केवल प्राकृतिक सामग्री जैसे दूध, कॉफी पाउडर, आम का गूदा इत्यादि का उपयोग करके बनाए जाते हैं। इसके अलावा यह मिल पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा-कुशल भी है।
हालांकि इसी वर्ष 'रावलगांव शुगर फार्म' को 'रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड' (Reliance Consumer Products Ltd) द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया है। रावलगांव शुगर फार्म ने अपने ट्रेडमार्क, उत्पादन विधि और सभी बौद्धिक संपदा अधिकार RCPL को बेच दिए हैं। रावलगांव शुगर फार्म के अनुसार, उन्होंने RCPL के साथ 27 करोड़ रुपये में यह सौदा तय किया है। क्योंकि हाल के वर्षों में उनके लिए इस व्यवसाय को बनाए रखना अत्यंत कठिन हो गया था।
क्या आप जानते हैं कि वैश्विक स्तर पर पहली सबसे बड़ी बिस्किट निर्माता कंपनी 'हंटले एंड पामर्स' (Huntley & Palmers) है, जो एक ब्रिटिश कंपनी है और मूल रूप से रीडिंग, बर्कशायर (Reading, Berkshire) में स्थित है। इस कंपनी की स्थापना 1822 में जोसेफ हंटले (Joseph Huntley) द्वारा ‘जे. हंटले एंड सन’ (J. Huntley & Sons) के रूप में की गई थी। यह कंपनी वर्ष 1841 में मुख्य रूप से जॉर्ज पामर (George Palmer) के नेतृत्व में दुनिया के पहले वैश्विक बिस्कुट निर्माता ब्रांडों में से एक बन गई।
इस कंपनी के बिस्कुट विशेष रूप से सजाए गए टिन के डिब्बे में बेचे जाते थे। क्या आप जानते हैं कि इन बिस्कुटों को टिन के डिब्बे में पैक करने के पीछे एक विशेष उद्देश्य था? प्रारंभ में, यह व्यवसाय 119 लंदन स्ट्रीट (London Street), रीडिंग, बर्कशायर में एक छोटे बिस्कुट बेकर और कन्फेक्शनर की दुकान के रूप में स्थित था। इस समय, लंदन स्ट्रीट 'लंदन से ब्रिस्टल, बाथ और वेस्ट कंट्री' शहरों (London to Bristol, Bath and the West Country) तक मुख्य स्टेज कोच (stage coach) मार्ग था। यहां स्टेज कोचों के यात्री मुख्य रूप से 'क्राउन इन' (Crown Inn) में रुकते थे, जो जोसेफ हंटले की दुकान के सामने था। हंटले ने कोचों में यात्रियों को अपने बिस्कुट बेचना शुरू कर दिया। चूँकि कोच की यात्रा के दौरान बिस्कुट टूटने का खतरा था, इसलिए उन्हें टिन के डिब्बे में रखना शुरू कर दिया गया। वर्ष 1900 तक, कंपनी के उत्पाद 172 देशों में बेचे जाने लगे।
इन्हीं वर्षों के दौरान, कंपनी का नाम 'जे. हंटले एंड संस' से बदलकर 'हंटले एंड पामर्स' हो गया। 1985 से, न्यूजीलैंड (New Zealand) की फर्म ‘ग्रिफिन्स फूड्स’ (Griffin's Foods) द्वारा लाइसेंस के तहत हंटले एन्ड पामर्स के बिस्कुट बनाए जा रहे हैं। 2006 में, हंटले एंड पामर्स कंपनी को सडबरी, सफ़ोल्क (Sudbury, Suffolk) में फिर से स्थापित किया गया था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/y4cnj8ku
https://tinyurl.com/4x9z8cnx
https://tinyurl.com/34j3v5hu
चित्र संदर्भ
1. 'पान पसंद' और 'ओजी मैंगो मूड कैंडी को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
2. विविध प्रकार की कैंडी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. डाक टिकट पर वालचंद हीराचंद दोशी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ओजी मैंगो मूड कैंडी के पैकेट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. 'हंटले एंड पामर्स के विज्ञापन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. हंटले एंड पामर्स कंपनी के बिस्कुट विशेष रूप से सजाए गए टिन के डिब्बे में बेचे जाते थे। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)