अस्थिसंधि: प्रकृति की देन

वृक्ष, झाड़ियाँ और बेलें
03-04-2018 11:57 AM
अस्थिसंधि: प्रकृति की देन

अस्थिसंधि अथवा हाडजोड़ यह नाम बहुत ही कम लोगों ने सुना होगा। यह प्रकृति की मानव को दी हुई देन है। इसके नाम से ही इसका गुण समझ आता है, अस्थि (हड्डी) और संधि (जोड़ना)। हमारी अस्थि मतलब हड्डियों के दुःख निवारण का काम यह औषधी जड़ी बूटी करती है। आयुर्वेद जो भारत कि जग को दी हुई अनमोल भेंट है, उसमें भी इस लता-पेड़ का महत्व अधोरेखित किया गया है। यह पेड़ सिस्सुस (Cissus) प्रजाति से है जिसकी पूरे विश्वभर में 300 से भी अधिक जातियां उपलब्ध हैं तथा भारत और महाखंड में तक़रीबन 7 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। सिस्सुस आड़नाटा (Cissus Adnata) और सिस्सुस क्वोद्रांगुलारिस (Cissus Quadrangularis) ये भारत में बहुतायता से मिलने वाले प्रकार हैं।

यूनानी दवाइयां और हाड़-वैद्य भी इसका इस्तेमाल करते हैं। हड्डी के अलावा मज्जातंतु के दुःख पर, जख्म पर, विषबाधा, सर्पदंश, पीलिया, कुष्ठरोग आदि के उपचार के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसका पेड़ तक़रीबन 10 मी. की ऊंचाई तक बढ़ता है और बंबू आदि का इस्तेमाल कर इसकी लता को सहारा दिया जाता है। इस पेड़ के हर हिस्से का दवाई के लिए इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल करने वाले आयुर्वेदाचार्य और हकीम बाहर से इसे मंगाते हैं क्योंकि कृशिवल व्यावसायिक तौर पर इसकी उपज नहीं करते, ज्यादातर इसे उद्यान में लगाया जाता है।

1. https://marathivishwakosh.maharashtra.gov.in/khandas/
2. फ़्लोरा ऑफ़ द अप्पर गंगेटिक प्लेन अन्द्फ़ ऑफ़ द अद्जसेंट सिवालिक एंड सब-हिमालयन ट्रैक्स- दुथी एंड पार्कर आदि
3. http://www.theplantlist.org/about/#tropicos
4. http://www.pankajoudhia.com/set62.pdf