देवालय: देवों का निवास स्थान

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
26-04-2018 09:45 AM
देवालय: देवों का निवास स्थान

देवालय: यह शब्द दो शब्दों के मिलन से बना है- देव+आलय।
आलय का मतलब होता है रहने का स्थान, निवास स्थान। जहाँ पर भगवान् का निवास हो उसे देवालय कहते हैं।

अगर आलय शब्द को देखें तो वो संकृत शब्द आलयम से आता है और उसे भी दो हिस्सों में बांटा जाता है: आ+लयम (आत्मा+लयम), जहाँ आत्मा लीन हो जाती है, शरण में चली जाती है, बिना किसी डर या रुकावट के। देवालय का इस तरीके से मतलब बनता है, जहाँ पर इंसान किसी भी डर या रुकावट के बिना ईश्वर के चरणों में शरण जा सकता है और आत्मिक समाधान प्राप्त कर सकता है। देवालय को आलय, प्रासाद, कोइल आदि नाम से भी जाना जाता है लेकिन स्थापत्यकला के प्राचीन ग्रंथों में जैसे शिल्पशास्त्र में आलय यह शब्द बहुतायता से इस्तेमाल किया है। ‘आ’ का एक मतलब अहम, अहंकार भी है, जिस वजह से जहाँ आप अपना अहंकार भूल इश्वर से एक हो जाते हैं उस स्थान को आलय कह सकते हैं।

भारत के हिन्दुधर्मियों के लिए मंदिरों का महत्त्व अचल है। मंदिर एक ऐसा स्थान है जहाँ लोग एक दूसरे से बिना भेद-भाव के मिलते हैं और इश्वर के चरणों में नतमस्तक होते हैं। प्राचीन भारत में मंदिरों के इर्द-गिर्द पूरे गाँव बसते थे, जिसे फिर मंदिर-नगरी कहा जाता था। ऐसे नगर हमें आज भी देखने को मिलते हैं, जैसे बनारस अथवा मदुरई आदि। प्राचीन मंदिरों के सभा मंडप, रंग मंडप आदि से हमें यह पता चलता है कि मंदिर लोगों को मिलने का और सामाजिक बोलचाल का एक स्थान था जहाँ पर भक्ति उन्हें एक साथ बांधे रखती थी। मंदिरों के रंग मंडप, सभा मंडप आदि भाग भगवान के पंचोपचार, षोडशोपचार आदि का हिस्सा थे, जहाँ पर भजन, नृत्य आदि के जरिए इश्वार की आराधना की जाती थी। आज भी मंदिर के मंडप पर गर्भगृह के सामने हम भजन-कीर्तन कर इश्वर की भक्ति करते हैं। इसके अलावा मंदिर शिक्षा केंद्र का भी काम करते हैं और समाचार प्रसारण केंद्र का भी।

हर मंदिर में वहाँ के लोगों की श्रद्धा अनुसार प्रमुख देवी देवता को गर्भगृह में प्रस्थापित किया जाता है तथा इस हिसाब से मूर्तिशास्त्र, स्थापत्यकला और सौंदर्यीकरण में भी बदलाव आता है। विष्णु के मंदिर में विष्णु के रूप और उससे जुड़े मूर्तिविज्ञान के अनुसार सौन्दर्यीकरण किया जाता है और शिव के मंदिर में शिव भगवान् के हिसाब से। बहुत से मंदिर पंचायतन तरीके के होते हैं जिसमें मुख्य देवता का मंदिर बीच में होता है और उसके चारों दिशाओं में दूसरे प्रमुख देवी-देवताओं का मंदिर।

मंदिर के गर्भगृह में प्रमुख देवी अथवा देवता की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठापना के बाद स्थापित होती है। प्राण प्रतिष्ठा मतलब बनाई हुयी मूर्ति में अब भगवान आ बसे हैं तथा उसे दिव्यत्व प्रदान कर रहे हैं। भारत में मूर्तिपूजा यह आराधना का बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। इस की वजह से हमारे यहाँ हर देवी-देवता तथा उनके रूप का एक स्पष्ट रेखांकन होता है जिसे हम मूर्तिशास्त्र कहते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं भगवान की जो मूर्ति मंदिर में प्रस्थापित है उस के तहत ही मंदिर का सुशोभीकरण होता है, भारतीय मूर्तिशास्त्र दुनिया में सबसे परिपक्व और विस्तृत शास्त्र है जो सदियों से अस्तित्व में है। स्कंदोपनिषद में कहा गया है :
देहो देवालयः प्रोक्तो जीवो देवः सनातनः।
- देह एक मंदिर है और उसके अन्दर बसी आत्मा यह परमात्मा है।
इसी तरह शिल्परत्न नामक शिल्पशास्त्र में से एक में बताया गया है:
प्रासादम् पुरुषं मत्वा पूजयेत मंत्रवित्तामः।
- प्रासाद मतलब आलय जो पुरुष का रूपक है उसकी पूरी श्रद्धा से भक्ति करनी चाहिए। यहाँ पुरुष मतलब परमात्मा यह अर्थ अभिप्रेत है।
एक शैव आगम के अनुसार:
विमानम स्थूललिंगमच सूक्ष्मलिंगम सदाशिवः।
- विमान मतलब मंदिर का शिखर जो सब देख सकते हैं वो स्थूललिंग, लिंग का भौतिक रूप है और मंदिर के गर्भगृह में बसा सूक्ष्मलिंग निराकार सदाशिव का प्रतीक है।
इसका मतलब होता है कि मंदिर सिर्फ भगवान का वस्तिस्थान नहीं है बल्कि वह पूर्णरूप से परमात्मा के प्रकट रूप की अभिव्यक्ति है। इसीलिए मंदिर में आते वक़्त और जाते वक़्त हर भक्त को गर्भगृह में बसे देवता के साथ-साथ मंदिर के शिखर एवं मुख्य प्रवेश द्वार को भी नमन करना अनिवार्य है।

1. आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोम ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी