मेरठवासियो, क्या आपने कभी महसूस किया है कि मिट्टी में भी एक भाषा होती है? अगर आप खुर्जा की गलियों से होकर गुज़रें, तो आपको लगेगा कि वहाँ की हर थाली, हर प्याला और हर मिट्टी का बर्तन कुछ कहना चाहता है। मेरठ से कुछ ही दूरी पर स्थित खुर्जा की धरती केवल खेती के लिए ही नहीं जानी जाती, बल्कि यह कला और सृजन की जननी भी है। यहाँ की मिट्टी में एक अनोखी जादूगरी है, जो साधारण को असाधारण बना देती है। जब कारीगर अपने कुशल हाथों से इस मिट्टी को आकार देते हैं, तो वह सिर्फ़ बर्तन नहीं रह जाते - वे मेहनत, परंपरा और सौंदर्य का जीवंत रूप बन जाते हैं। सदियों से खुर्जा की पॉटरी भारत की सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा रही है। इसके नीले और हरे रंगों की चमक, बारीक डिज़ाइनों की सुंदरता और पारंपरिक कारीगरी ने इसे विश्वभर में प्रसिद्ध किया है। आज जब आधुनिकता और परंपरा एक साथ कदम मिला रही हैं, तो यही मिट्टी फिर से अपनी चमक और गरिमा के साथ नए युग में प्रवेश कर रही है।
इस लेख में हम खुर्जा की इस अनमोल कला यात्रा को विस्तार से समझेंगे। सबसे पहले, जानेंगे कि खुर्जा की मिट्टी की पॉटरी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है और यह कला यहाँ कैसे विकसित हुई। फिर समझेंगे कि बर्तनों के निर्माण की प्रक्रिया कितनी बारीकी, विज्ञान और धैर्य से गुजरती है। उसके बाद देखेंगे कि यह उद्योग स्थानीय लोगों के रोजगार और आर्थिक स्थितिको कैसे प्रभावित करता है। हम यह भी जानेंगे कि इस पारंपरिक उद्योग को किन आर्थिक झटकों ने कमजोर किया और फिर कैसे डिजिटल नवाचार और 3डी डिज़ाइन स्टूडियो (3D Design Studio) ने इसे एक नई दिशा दी। अंत में, हम बात करेंगे कि खुर्जा की पॉटरी का भविष्य और इसकी वैश्विक पहचान किस तरह भारत की मिट्टी को विश्व मंच पर गौरवान्वित कर रही है।

खुर्जा की मिट्टी की पॉटरी: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
खुर्जा, जो कभी गंगा-यमुना के दोआब की मिट्टी में बसने वाले कारीगरों का छोटा सा कस्बा था, आज भारत की ‘सिरेमिक (ceramic) नगरी’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी पॉटरी कला की जड़ें 14वीं शताब्दी तक जाती हैं, जब दिल्ली सल्तनत के दौर में कुछ अफगानी कारीगर यहाँ आकर बसे और उन्होंने मिट्टी के बर्तनों में नई कलात्मक तकनीकें विकसित कीं। उस दौर में ये बर्तन केवल रसोई का हिस्सा नहीं थे, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा और सौंदर्य का प्रतीक माने जाते थे। समय के साथ, खुर्जा के कारीगरों ने अपनी पारंपरिक शैली में भारतीय तत्वों का समावेश किया - फूल-पत्तों के आकृतियों से लेकर लोककथाओं से प्रेरित डिज़ाइनों तक। आज भी जब कोई खुर्जा की नीली-हरी या भूरी चमकदार प्लेट हाथ में लेता है, तो वह केवल मिट्टी का टुकड़ा नहीं, बल्कि सदियों से चले आ रहे परिश्रम, परंपरा और संस्कृति का सजीव रूप होता है। यह कला पीढ़ियों से हस्तांतरित होती आई है - दादा से पिता, और पिता से बेटे तक। यही कारण है कि खुर्जा की पॉटरी को जिओग्राफ़िकल इंडिकेशन टैग (GI Tag) प्राप्त है, जो इस क्षेत्र की मौलिक पहचान को सुरक्षित रखता है। इस टैग के पीछे केवल एक कानूनी मान्यता नहीं, बल्कि कारीगरों की आत्मा, उनके पसीने की चमक और उनके इतिहास की गरिमा छिपी हुई है।
बर्तनों का निर्माण और प्रक्रिया
खुर्जा की पॉटरी की प्रक्रिया उतनी ही सुंदर है जितना इसका अंतिम रूप। यह केवल मिट्टी को आकार देने का काम नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य की एक कला है। यहाँ की मिट्टी विशेष प्रकार की “गोल्डन क्ले” (Golden Clay) कहलाती है - यह चिकनी, टिकाऊ और उच्च तापमान सहने वाली होती है। इस मिट्टी को सबसे पहले महीनों तक खुली हवा में सुखाया जाता है, फिर उसमें क्वार्ट्ज (Quartz) और स्फतीय (Feldspar) जैसे खनिज मिलाए जाते हैं, जो इसे मजबूती और चमक प्रदान करते हैं। कारीगर सुबह-सुबह अपने चाक पर मिट्टी रखता है और उंगलियों की हल्की हरकतों से उसे जीवन देता है। यह प्रक्रिया ध्यान जैसी होती है - एकाग्रता, लय और धैर्य का अद्भुत संगम। आकार बनने के बाद बर्तन को धूप में सुखाया जाता है, फिर हाथ से उस पर रंग और पैटर्न बनाए जाते हैं। खुर्जा के कारीगरों की पहचान उनके हाथों के बनाए डिज़ाइनों से होती है - नीले और हरे रंगों के मेल से उभरते फूल-पत्तों के पैटर्न, जिनमें मिट्टी का हर कण सौंदर्य बोलता है। जब बर्तन तैयार हो जाते हैं, उन्हें 1200°C तापमान पर पकाया जाता है। यह प्रक्रिया उन्हें चमकदार, टिकाऊ और सुंदर बनाती है। यही कारण है कि खुर्जा की पॉटरी दशकों तक अपनी सुंदरता बनाए रखती है - चाहे वह घर की सजावट हो या किसी होटल की डाइनिंग टेबल (dining table), खुर्जा के बर्तनों की गरिमा हमेशा बनी रहती है।

उद्योग में रोजगार और आर्थिक स्थिति
खुर्जा का पॉटरी उद्योग केवल कला का माध्यम नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की जीविका का आधार भी है। वर्तमान में लगभग 25,000 लोग सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से इस उद्योग से जुड़े हैं - इनमें कारीगर, चित्रकार, मजदूर, व्यापारी और परिवहनकर्ता शामिल हैं। यहाँ के लगभग 500 कारखाने हर रोज़ सैकड़ों बर्तन बनाते हैं, जिनमें से कई विदेशों में निर्यात किए जाते हैं। एक कुशल कारीगर अपने हुनर से महीने में ₹35,000 से ₹40,000 तक कमा लेता है, जबकि नए मजदूरों की आय ₹15,000 से ₹18,000 तक रहती है। यह रकम भले ही बहुत बड़ी न लगे, लेकिन इन परिवारों के लिए यह जीवन की डोर है। कई महिलाएँ भी अब घरों में छोटे पैमाने पर रंगाई और पैकिंग का काम करती हैं, जिससे उन्हें आत्मनिर्भरता मिली है। फिर भी, इस उद्योग को प्लास्टिक और मशीनमेड (machine-made) उत्पादों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। सस्ते दामों वाले आधुनिक बर्तनों ने हस्तनिर्मित वस्तुओं की मांग घटा दी है। लेकिन खुर्जा के कारीगर अब भी अपने हुनर पर गर्व करते हैं - क्योंकि उनके लिए यह सिर्फ़ काम नहीं, एक परंपरा है, जिसे वे जिंदा रखना चाहते हैं।
खुर्जा पॉटरी उद्योग को प्रभावित करने वाले आर्थिक झटके
खुर्जा की मिट्टी के ये रंगीन सपने कई बार आर्थिक आंधियों से हिल चुके हैं। 2016 की नोटबंदी ने सबसे पहले इस नकदी आधारित उद्योग को झटका दिया - छोटे व्यापारी और कारीगरों के पास नकद प्रवाह बंद हो गया। फिर 2017 में जीएसटी (GST) की नई व्यवस्था आई, जिससे छोटे निर्माताओं के लिए कर प्रक्रिया जटिल हो गई। कई पुराने कारीगरों को यह समझना कठिन लगा कि टैक्स (Tax) और इनवॉइसिंग (Invoicing) की इस नई दुनिया में कैसे आगे बढ़ा जाए। हालाँकि उद्योग धीरे-धीरे संभलने लगा था, लेकिन 2020 में कोविड-19 (Covid-19) महामारी ने सब कुछ रोक दिया। महीनों तक कारख़ाने बंद रहे, कारीगर अपने गाँव लौट गए, और तैयार माल गोदामों में धूल खाने लगा। इसके बाद जब पुनः काम शुरू हुआ, तो ईंधन की कीमतों ने नई मुश्किल खड़ी कर दी। पहले जहाँ सीएनजी (CNG) ₹30 प्रति लीटर थी, अब वह ₹90 तक पहुँच गई है - यानी उत्पादन लागत लगभग तीन गुना बढ़ गई। इन सब झटकों ने खुर्जा की पॉटरी को कमजोर जरूर किया, लेकिन खत्म नहीं किया। क्योंकि हर बार जब कोई चाक पर मिट्टी रखता है, तो उसके हाथों में वही उम्मीद होती है - “इस बार शायद वक्त हमारा साथ दे।”

डिजिटल नवाचार और 3डी डिज़ाइन स्टूडियो का योगदान
तकनीक ने खुर्जा की पारंपरिक कला में नई जान डाल दी है। भारत सरकार और इंडिया एक्ज़िम बैंक ने ‘ग्रासरूट इनिशिएटिव्स फॉर डेवलपमेंट’ (Grassroots Initiatives for Development) के तहत खुर्जा में एक अत्याधुनिक 3डी डिज़ाइन स्टूडियो स्थापित किया है। यह सिर्फ़ एक लैब नहीं, बल्कि स्थानीय कारीगरों के लिए एक नई दुनिया का द्वार है। यहाँ कारीगर अब डिजिटल उपकरणों की मदद से डिज़ाइन तैयार कर सकते हैं, उन्हें स्कैन कर सुरक्षित रख सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को ऑनलाइन (online) भेज सकते हैं। इससे उत्पादन की लागत घटी है और डिज़ाइनों की विविधता बढ़ी है। लगभग 250 से अधिक इकाइयाँ इस सुविधा का सीधा लाभ उठा रही हैं। अब खुर्जा के युवा कारीगर न केवल पारंपरिक डिज़ाइनों को डिजिटल रूप में संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि आधुनिक बाजार की मांग के अनुसार नए पैटर्न भी बना रहे हैं। यह मेल पुरातनता और आधुनिकता का ऐसा संगम है जिसने खुर्जा की पॉटरी को फिर से चर्चा में ला दिया है।
खुर्जा पॉटरी का भविष्य और वैश्विक पहचान
आज खुर्जा की पॉटरी भारत की सीमाओं से निकलकर यूरोप, अमेरिका और मध्य पूर्व के बाजारों तक पहुँच रही है। इसकी कलात्मक सुंदरता और हाथों से बनी मौलिकता विदेशी उपभोक्ताओं को विशेष रूप से आकर्षित करती है। अब यहाँ के उत्पाद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स (Online Platforms) जैसे एट्सी (Etsy) और अमेज़न (Amazon) पर भी बिक रहे हैं, जिससे छोटे कारीगर सीधे वैश्विक ग्राहकों तक पहुँच पा रहे हैं। सरकारी योजनाओं, डिज़ाइन स्टूडियो और एक्सपोर्ट एक्सपो (Export Expo) जैसे आयोजनों ने खुर्जा के कलाकारों को एक नई पहचान दी है। काला घोड़ा कला महोत्सव, दिल्ली हाट और इंडिया हैंडीक्राफ्ट (India Handicraft) मेले में खुर्जा की पॉटरी हमेशा आकर्षण का केंद्र रही है। भविष्य में यदि इसी तरह नवाचार और परंपरा साथ चलते रहे, तो खुर्जा की मिट्टी केवल बर्तन नहीं बनाएगी - यह भारत की आत्मा को विश्व पटल पर चमकाने का काम करेगी। आने वाले वर्षों में यह कहा जाएगा - “जहाँ मिट्टी बोले, वहाँ खुर्जा की आत्मा बसती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/2bocoeep
https://tinyurl.com/2d3ev43o
https://tinyurl.com/29q9p869
https://tinyurl.com/2a6fpux6
https://tinyurl.com/4bwpde4f
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