रामायण की उर्मिला पर केंद्रित कविता साकेत

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
20-09-2018 04:54 PM
रामायण की उर्मिला पर केंद्रित कविता साकेत

भारतीय समाज के भूत, वर्तमान और भविष्‍य की छवि को अपनी कल्‍पना शक्ति के माध्‍यम से श्री मैथिलीशरण गुप्‍त ने समाज के मध्‍य प्रस्‍तुत किया। जिसने आम जनमानस के मध्‍य देशभक्ति की भावना को तीव्रता से जागृत किया अर्थात स्‍वतंत्रता के लिए उत्‍तेजित किया। इनकी प्रसिद्ध रचनाओं में से एक थी साकेत, जिसने रामायण के उस पात्र की ओर लोगों का ध्‍यान आकर्षित किया जिसे शायद आज तक अन्‍य लेखकों द्वारा गौण रखा जाता था।

1932 में लिखी गई साकेत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की वह अमर रचना है, जो उनकी व्यक्तिगत भक्ति के साथ-साथ पात्रों के भावनात्मक चरित्र को उनकी अंतर्दृष्टिपूर्ण समझ के साथ प्रभावित करती है।

यह कविता रामकथा पर आधारित है, यद्यपि 'साकेत' में राम, लक्ष्मण और सीता के वन गमन का मार्मिक चित्रण है, किन्तु इसका केन्द्र लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला है। लगभग सभी लेखकों द्वारा रामायण में, इनका सिर्फ सांकेतिक वर्णन ही किया गया है। लेकिन इस रचना में उर्मिला के विरह का जो चित्रण गुप्त जी ने प्रस्तुत किया है, वह अत्यधिक मार्मिक और गहरी मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से ओत-प्रोत है। राम के साथ सीता तो वन चली जाती हैं, परन्तु उर्मिला लक्ष्मण के साथ वन नहीं जा पाती है। तभी वह अपने मन-मंदिर में अपने पति की प्रतिमा स्थापित करके उर्मिला विरह की अग्नि में जलते हुए खुद आरती की ज्योति बन गईं। आँखों में प्रिय की मूर्ति बसाकर सभी मोह-माया को त्याग कर उनका जीवन एक योगी के जीवन से भी ज्यादा कठिन और कष्टदायक हो जाता है। दिन-रात स्वामी के ध्यान में डूबने के कारण वे स्वयं को भी भूल गईं। इस कारण उनके मन में विरह की जो पीड़ा निरंतर प्रवाहित होती है, उसका एक करुण चित्रण राष्ट्रकवि ने किया है, वैसा चित्रण अत्यंत दुर्लभ है।

“प्राण न पागल हो तुम यों, पृथ्वी पर वह प्रेम कहाँ..
मोहमयी छलना भर है, भटको न अहो अब और यहाँ..
ऊपर को निरखो अब तो बस मिलता है चिरमेल वहाँ..
स्वर्ग वहीं, अपवर्ग वहीं, सुखसर्ग वहीं, निजवर्ग जहाँ..”

इन करूण पंक्तियों को पढ़कर, पाठक की आंखें बरबस ही नम हो जाती हैं साथ ही कवि की अतुलनीय लेखन क्षमता के प्रति सम्‍मान की भावना जागृत हो उठती है। गुप्त जी को उर्मिला के प्रति सहानुभूति है, परन्तु यह सहानुभूति किसी नारीवादी आन्दोलन के कारण नहीं बल्कि एक वैष्णव कवि की सहज और स्वाभाविक अनुभूति का परिणाम है।

साकेत में भारतीय आज़ादी से 15 साल पूर्व ही इसकी आज़ादी की भविष्यवाणी दी गयी थी। उस समय तक देश महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन कर रहा था। एक कवि के रूप में गुप्त ने गांधी के विचारों को व्यक्त किया। गांधी जी ने एक स्वतंत्र भारत के लिए अपने सपने के रूप में लगातार ‘राम राज्य’ या राम के शासन की अवधारणा को व्‍यक्‍त किया था। इस राजनीतिक संदर्भ के प्रकाश में साकेत को समझना ज़रूरी है।

संदर्भ:
1.https://dukespace.lib.duke.edu/dspace/bitstream/handle/10161/16612/Shivam%20Dave_AMES%20Honors%20ThesisNumbered.pdf?sequence=1
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Maithili_Sharan_Gupt