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‘जो महाभारत में है वह संसार में कहीं ना कहीं ज़रूर मिलेगा किंतु जो इसमें नहीं है वह संसार में कहीं नहीं मिलेगा’
प्राचीन भारत के लगभग 1,10,000 श्लोकों में संकलित विशाल महाकाव्य ‘महाभारत’ को हिन्दुओं के पांचवे वेद के रूप में भी जाना जाता है। इसकी विशालता का अनुमान तो आप उपरोक्त पंक्तियों से लगा ही सकते हैं। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित यह महाकाव्य यूनानी ग्रंथ ‘इलियड’ (Iliad) और ‘ओडिसी’ (Odyssey) को मिलाकर भी उनसे चार गुना विशाल है। महाभारत मुख्यतः कौरवों और पाण्डवों के जीवन पर आधारित है। जिसमें शिक्षा, न्याय, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, धर्मशास्त्र, खगोलविद्या तथा कामशास्त्र जैसे सभी विषयों का वर्णन किया गया है।
इस वृहद महाकाव्य को 18 पर्वों में विभाजित किया गया है। इन पर्वों के भी अलग-अलग उपपर्व हैं। इन सभी पर्वों में कौरवों और पाण्डवों के जीवन की घटनाओं को क्रमानुसार व्यवस्थित किया गया है।
1. आदि पर्व - इसमें महाभारत की प्रस्तावना सहित कौरवों और पाण्डवों के पूर्वजों का वर्णन, कौरवों और पाण्डवों का जन्म, इनका प्रारंभिक जीवन तथा शिक्षा आदि का वर्णन किया गया है। इसके भी कुछ उपपर्व हैं:
*अनुक्रमणिका पर्व
*संग्रह पर्व
*पौष्य पर्व
*पौलोम पर्व
*आस्तिक पर्व
*अंशावतार पर्व
*सम्भाव पर्व
*जतुगृह पर्व
*हिडिम्बवध पर्व
*बकवध पर्व
*चैत्ररथ पर्व
*स्वयंवर पर्व
*वैवाहिक पर्व
*विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
*अर्जुनवनवास पर्व
*सुभद्राहरण पर्व
*हरणाहरण पर्व
*खाण्डवदाह पर्व
*मयदर्शन पर्व
2. सभापर्व- इस पर्व में महाभारत युद्ध की नींव पड़ गयी थी। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के संकल्प से लेकर पाण्डवों के वनगमन तक का वर्णन किया गया है। इसके उपपर्व इस प्रकार हैं:
*सभाक्रिया पर्व
*लोकपालसभाख्यान पर्व
*राजसूयारम्भ पर्व
*जरासन्धवध पर्व
*दिग्विजय पर्व
*राजसूय पर्व
*अर्घाभिहरण पर्व
*शिशुपालवध पर्व
*द्यूत पर्व
*अनुद्यूत पर्व
4. विराट पर्व- महाराजा विराट के यहां पाण्डवों के एक वर्ष के अज्ञातवास का वर्णन। उपपर्व:
*पाण्डवप्रवेश पर्व
*समयपालन पर्व
*कीचक वध पर्व
*गोहरण पर्व
*वैवाहिक पर्व
5. उद्योग पर्व - महाभारत युद्ध की तैयारी। उपपर्व:
*सेनोद्योग पर्व
*संजययान पर्व
*प्रजागर पर्व
*सनत्सुजात पर्व
*यानसन्धि पर्व
*भगवद्-यान पर्व
*सैन्यनिर्याण पर्व
*उलूकदूतागमन पर्व
*रथातिरथसंख्या पर्व
*अम्बोपाख्यान पर्व
6. भीष्मपर्व- महाभारत युद्ध का पहला भाग तथा भीष्म द्वारा कौरवों के सेनापति के रूप में नेतृत्व। उपपर्व:
*जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व
*भूमि पर्व
*श्रीमद्भगवद्गीता पर्व
*भीष्मवध पर्व
7. द्रोणपर्व- भीष्मवध के बाद द्रोणाचार्य के सेनापति बनने का वर्णन। उपपर्व:
*द्रोणाभिषेक पर्व
*संशप्तकवध पर्व
*अभिमन्यु वध पर्व
*प्रतिज्ञा पर्व
*जयद्रथ वध पर्व
*घटोत्कच वध पर्व
*द्रोणवध पर्व
*नारायणास्त्रमोक्ष पर्व
8. कर्णपर्व- द्रोणवध के बाद कर्ण का सेनापति के रूप में नेतृत्व। उपपर्व:
*कर्णपर्व
9. शल्यपर्व- युद्ध का अंतिम चरण तथा शल्य का सेनापति के रूप में नेतृत्व। उपपर्व:
*शल्य-वध पर्व
*शल्य पर्व
*ह्रदप्रवेश पर्व
*गदा पर्व
10. सौप्तिकपर्व- अश्वथामा द्वारा छल से पाण्डवों की सेना का वध। उपपर्व:
*सौप्तिकपर्व
*ऐषीक पर्व
11. स्त्रीपर्व- गांधारी का युद्ध में मृत लोगों के लिए शोक। उपपर्व:
*जलप्रादानिक पर्व
*विलाप पर्व
*श्राद्ध पर्व
12. शांतिपर्व- युधिष्ठिर का राज्याभिषेक तथा भीष्म के पाण्डवों को दिये गये दिशा निर्देश। उपपर्व:
*राजधर्मानुशासन पर्व
*आपद्धर्म पर्व
*मोक्षधर्म पर्व
13. अनुशासनपर्व- भीष्म के अंतिम उपदेश। उपपर्व:
*दान-धर्म-पर्व
*भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
14. अश्वमेधिकापर्व- युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध यज्ञ संपन्न। उपपर्व:
*अश्वमेध पर्व
*अनुगीता पर
*वैष्णव पर्व
15. आश्रम्वासिकापर्व- धृतराष्ट्र, कुंती और गांधारी का वनाश्रम में प्रस्थान। उपपर्व:
*आश्रमवास पर्व
*पुत्रदर्शन पर्व
*नारदागमन पर्व
16. मौसुलपर्व- यादवों की परस्पर लड़ाई। उपपर्व:
*मौसुलपर्व
17. महाप्रस्थानिकपर्व- पाण्डवों का द्रौपदी सहित महाप्रस्थान। उपपर्व:
*महाप्रस्थानिकपर्व
18. स्वर्गारोहणपर्व- पाण्डवों की स्वर्ग के लिए यात्रा। उपपर्व:
*स्वर्गारोहणपर्व
हरिवंशपर्व- यह महाभारत के प्रमुख पर्वों में नहीं गिना जाता, इसमें मुख्यतः भगवान श्री कृष्ण के बारे में वर्णन किया गया है। उपपर्व:
*विष्णुपर्व
*भविष्यपर्व
यह तो है महाभारत का सांसारिक पक्ष। इसका एक और अभिन्न अंग है श्रीमद भगवद् गीता जो हमारे देश का राष्ट्रीय ग्रंन्थ भी है। इसमें जीवन के आध्यात्मिक पक्ष (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का वर्णन किया गया है। 700 श्लोकों के इस ग्रंथ में श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य भीष्मपर्व के दौरान हुयी वार्तालाप को वर्णित किया गया। गीता में भी 18 अध्याय दिये गये हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय कुछ इस प्रकार है:
1. अर्जुनविषादयोग: पहले अध्याय में मानव की दुर्बलता और पराजय को स्वीकारने वाली अवस्था का वर्णन किया गया है।
2. सांख्य योग: इसमें मानव शक्ति को इंगित करते हुए कहा गया है कि मानव इस संसार में एकमात्र ऐसा जीव है, जिसके लिए असंभव जैसा कुछ भी नहीं है। अतः उसे पश्चाताप करने की बजाय अपनी अपरिवर्तनशील शक्तियों को पहचानने की आवश्यकता है।
3. कर्म योग: इस अध्याय में निश्चिन्त होकर बैठने की बजाय कर्म करने की प्रेरणा दी गयी है।
4. ज्ञान योग: इस अध्याय में बताया गया है कि मनुष्य एक चेतन प्राणी है, उसे मशीनों की भांति कार्य करने की बजाय कार्य के साथ-साथ ज्ञानार्जन भी करना चाहिए।
5. कर्म वैराग्य योग: पांचवां अध्याय भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में बताता है। इसमें बताया गया है कि अकेला प्राणी न तो सारे कार्य संपन्न कर सकता है न ही यह सोच सकता है कि सभी कार्य स्वयं हो रहे हैं, मेरी कोई आवश्यकता नहीं। सभी को अपने-अपने कार्य अपने-अपने स्तर से संपन्न करने हैं।
6. आत्मसंयम योग: इसमें मन की दुविधाओं को समाप्त करने के लिये किये जाने वाले ध्यान का वर्णन किया गया है।
7. ज्ञान विज्ञान योग: ध्यान के माध्यम से स्वयं को जानने का प्रयास करें।
8. अक्षरब्रह्मयोग-योग: इसमें स्वर्ग और नरक के विषय में बताया गया है।
9. राजविद्याराजगुह्य योग: आंतरिक ऊर्जा की शक्ति के बारे में बताया गया है।
10. विभूति योग: संसार में होने वाले नित नये चमत्कारों को अनुभव करने का प्रयास करें। भौतिक कारणों और प्रभावों के विषय में सोचे बिना चमत्कारों को देखें।
11. विश्वरूप दर्शन योग: उसके बाद सार्वभौमिक आत्मा को जानें और समझें कि सब मुझमें है और मैं ही सब में हूँ।
12. भक्ति योग: इस अध्याय में भक्त और परमेश्वर के मध्य प्रेम के बंधन को भक्ति के माध्यम से मज़बूत करने का मार्गदर्शन दिया गया है।
13. क्षेत्रक्षत्रज्ञविभाग योग: दैव्य और राक्षसी गुण के मध्य भेद बताये गये हैं। साथ ही मानव के भीतर सभी दैव्य गुण स्थित हैं।
14. गुणत्रयविभाग योग: मन, अहंकार और भोजन इन सब में तीन गुण हैं- सात्त्विक, राजसिक और तामसिक। सत्त्विक अहंकार है, ‘सब मैं, मैं सब कुछ हूं’। तामसिक अहंकार है कि आप यह जानते हैं कि आप केवल एक शरीर हैं, और राजसिक अहंकार सीमित मानसिकता, लालसा और विकृति में पड़ना है।
15. पुरुषोत्तम योग: ज्ञानी व्यक्ति ही परमेश्वर में विश्वास करता है।
16. दैवासुरसंपद्विभाग योग: दैविक और असुरी व्यक्ति के मध्य भेद।
17. श्रद्धात्रयविभाग योग: इसमें पूर्ण ज्ञान के अभाव में भी किये गये श्रद्धा पूर्वक कार्यों के परिणामों के विषय में वर्णन किया गया है।
18. मोक्ष-संन्यास योग: अंतिम अध्याय यह है कि आप अपने पापों को धो नहीं सकते। उन्हें छोड़ दो और समझो कि क्या कहा जा रहा है, "मैं यहाँ आपके पापों का ध्यान रखने के लिए हूँ। महसूस करो कि तुम मेरे हो, मुझसे जुड़े रहो और मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगा।"
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Mahabharata
2.https://www.quora.com/How-many-slokas-does-the-Bhagavad-Gita-contain
3.https://bit.ly/2N1oR8g
4.https://bit.ly/2ITVqzS
5.https://bit.ly/2IXbS2m
6.https://bit.ly/2x3A3GT