कौमी एकता की मिसाल है बाले मियां की दरगाह

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
22-08-2019 02:20 PM
कौमी एकता की मिसाल है बाले मियां की दरगाह

आपने शायद ऐसी दरगाह का नाम पहले कभी नहीं सुना होगा जहां हिंदू धर्म के लोग भी पूजा-अर्चना करते हों। किंतु मेरठ स्थित बाले मियां की दरगाह एक ऐसी दरगाह है जहां मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोग भी ईश्वर की इबादत करते हैं। बाले मियां के नाम से विख्यात यह दरगाह मेरठ में चंडी देवी मंदिर के निकट स्थित है। दरगाह पर जहां मुस्लिम धर्म के निष्ठावान लोग दुआएं मांगते हैं तो वहीं हिन्‍दू धर्म के लोग भी पूजा-अर्चना करते हैं। असल में इस दरगाह का सबसे अधिक महत्त्व गोरखपुर में माना जाता है। यह दरगाह सैयद सालार मसूद गाज़ी की है जिस पर एक हज़ार साल से गोरखपुर में मेला लगता चला आ रहा है। यह मेला हर साल उनकी याद में लगाया जाता है जो पूरे एक माह तक जारी रहता है। बाले मियां के नाम से मशहूर यह मेला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्‍योंकि इसमें मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ हिन्‍दू धर्म के लोग एक साथ दुआ और पूजा-अर्चना करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि सैयद सालार मसूद गाज़ी उर्फ बाले मियां अल्‍लाह के दूत थे जो गोरखपुर के इस इलाके में आकर बस गये थे। उन्होंने मानव जाति के कल्याण के लिए काफी काम किया तथा हिन्‍दू-मुस्लिम दोनों धर्म के अनुयायियों के हक के लिए लड़ते हुए इसी स्थान पर शहादत प्राप्‍त की जिसके बाद 1035 ईस्वी में यहां पर उनकी दरगाह स्थापित की गयी। दोनों धर्म के मतावलम्बियों के हक की लड़ाई लड़ने वाले बाले मियां के अनुयायियों में मुस्लिमों के साथ हिन्‍दुओं की संख्‍या भी कम नहीं है। बाले मियां की दरगाह पर लगने वाले इस मेले में कौमी एकता की मिसाल दिखाई देती है।

ऐसी मान्यता है कि बाले मियां का विवाह ज़ोहरा नाम की एक महिला से होने वाला था लेकिन, उन्हें यह शादी मंज़ूर नहीं थी। विवाह के दिन इतनी तेज़ी से आंधी-तूफान हुआ कि उनका विवाह नहीं हो सका। इस प्रकार हर साल इस मेले के अंतिम दिन बाले मियां की बारात निकाली जाती है। किंतु हर साल जब भी इनकी शादी का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तो आंधी-तूफान ज़रूर आता है तथा बारात अपने गंतव्य पर नहीं पहुंच पाती है। लोग दूर-दूर से दरगाह पर आते हैं तथा अपनी अरदास बाबा के दरबार में लगाते हैं। दरगाह पर आकर लोग कनूरी नामक एक रस्म करते हैं जिसमें बाबा को मुर्गे का मांस चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि शरीर के जिस हिस्से में बीमारी हो उसका चांदी का प्रतिरूप यदि बाबा की दरगाह में चढ़ाया जाए तो वो लाइलाज बीमारी भी ठीक हो जाती है। मन्‍नत मांगने वाले श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होने पर यहां एक विशेष ध्वज चढ़ाया जाता है। दरगाह पर न कोई छोटा होता है न ही बड़ा।

मेला नौचंदी में बाले मियां की मज़ार पर आने वाले लोगों को लंगर खिलाने के लिए बाले मियां की मज़ार समिति की ओर से 14 फीट की विशाल हांडी लगाई गई है। इस हांडी में एक बार में 300 किलो चावल पकाया जा सकता है जिसे शामली में बनवाया गया था। इसमें लगे एल्युमिनियम (Aluminium) धातु का वज़न लगभग 1.274 क्विंटल है। हांडी के बाहर 210 किलोग्राम का लोहा लगाया गया है तथा हांडी की फिटिंग (Fitting) की लागत लगभग 1.633 लाख रुपए है। हर जुम्मे को दरगाह पर लंगर लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस हांडी में बने खाने में हमेशा बरकत रहती है। चाहे कितने ही लोग मेले में आकर लंगर खाएं, उनके लिए खाना कम नहीं पड़ता है। हांडी में चावल पका या नहीं, यह देखने के लिए हांडी के पास लोहे की एक सीढ़ी बनाई गई है, ताकि सीढ़ी पर चढ़कर इस विशाल हांडी में पक रहे खाने को देखा जा सके।

धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने वालों के लिए बाले मियां की मज़ार एक सबक है, जो सबको एक ही मालिक की सन्तान होने का संदेश देती है।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2L4GxMm
2. https://bit.ly/2zg2Vwo