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कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है जिसे केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत में भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न रूपों की विभिन्न मूर्तियां देखी जाती हैं। यूं तो हम जानते ही हैं कि प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म का प्रभाव अन्य संस्कृतियों पर रहा है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण जापान में भी देखा जा सकता है। किंतु क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण की एक मूर्ति जापान के एक मंदिर में भी स्थित है। यह मंदिर जापान के नारा में है जिसे टोडायजी (TodaiJi) नाम से जाना जाता है।
टोडायजी जापान में बौद्ध धर्म का एक मंदिर है जिसे कभी जापान के शक्तिशाली सात महान मंदिरों में से एक माना जाता था। यूं तो मंदिर को मूल रूप से 738 ईस्वी में स्थापित किया गया था लेकिन इसे 752 इस्वी तक भी नहीं खोला गया था। यहां बनाये गये ग्रेट बुद्ध हॉल (Great Buddha Hall) में दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा (पीतल से बनी) स्थापित की गयी है जो बुद्ध वैरोकाना (Vairocana) की है जिसे जापानी में डायबुत्सू (Daibutsu) के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर बौद्ध धर्म की शिक्षा देने वाले केगॉन स्कूल (Kegon school) का जापानी मुख्यालय भी है। मंदिर को विश्व धरोहर स्थल के रूप में यूनेस्को (UNESCO) की सूची में सूचीबद्ध किया गया है जो प्राचीन नारा के ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। यहां भगवान श्री कृष्ण की एक मूर्ति को भी उकेरा गया है जिसमें भगवान श्री कृष्ण बांसुरी बजाते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह मूर्ति 8वीं शताब्दी की है। बेनॉय बहल द्वारा खींची गयी इस मूर्ति का चित्र तथा अन्य सभी हिंदू देवी देवताओं की फोटो को आप निम्न लिंक पर जाकर देख सकते हैं।
https://bit.ly/33W4Zb2
जापान में अन्य बौद्ध मंदिर भी हैं जहां हिंदू धर्म के देवी देवताओं की मूर्तियां देखने को मिल जाती हैं जिससे यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत की दार्शनिक कल्पना को जापानियों ने काफी हद तक अपना लिया है। हालांकि जापान में हिंदू धर्म एक अल्पसंख्यक धर्म है फिर भी इसने जापानी संस्कृति के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जापानी संस्कृति के निर्माण में हिंदू धर्म अप्रत्यक्ष रूप से महत्वपूर्ण रहा है। यह इसलिए भी है क्योंकि ज्यादातर बौद्ध विश्वासों और परम्पराओं का मूल कुछ हद तक हिंदू धर्म के समान ही है। 6ठी शताब्दी में हिंदू धर्म कोरियाई प्रायद्वीप के माध्यम से चीन से जापान तक फैल गया था। इसका एक संकेत जापान में भाग्य के सात देवता (Seven Gods of Fortune) हैं, जिनमें से चार देवता हिंदू देवताओं के रूप में उत्पन्न हुए हैं। जैसे बेन्ज़ायटेंसामा (सरस्वती), बिशामोन (वैश्रवण या कुबेर), दायकोकुटेन (महाकाल या शिव), और किचिजोटेन (लक्ष्मी)। हिंदू देवी महाकाली को जापान में ‘दायकोकुटेन्यो’ के रूप में जाना जाता है। मृत्यु के हिंदू देवता यम को जापान में ‘एन्मा’ के रूप में जाना जाता है। जापान पर हिंदू प्रभाव का एक अन्य उदाहरण योग और पगोड़ा का उपयोग भी है। ये सभी साक्ष्य ये प्रमाणित करते हैं कि हिंदू धर्म आज भी जापान पर अपना प्रभाव बनाए हुए है।
सन्दर्भ:
1.https://bit.ly/2zg0mut
2.https://bit.ly/1QPK1PE
3.https://bit.ly/2Sn6LeY
4.https://bit.ly/2Mw8qQB