ज्योतिष शास्त्र में विषुव की भूमिका

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
23-09-2019 01:13 PM
ज्योतिष शास्त्र में विषुव की भूमिका

जैसा कि हम जानते ही हैं कि इस 23 सितम्बर को शरद विषुव है अर्थात वह समय-बिंदु जब सूर्य भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर होता है। इस समय सूर्य का केंद्र भूमध्य रेखा की ठीक सीध में होता है। यह प्रावस्था साल में दो बार आती है। एक 20 मार्च के आस-पास जिसे वसंत विषुव कहा जाता है और एक 23 सितम्बर के आस-पास जिसे शरद विषुव कहा जाता है। इस समय-बिंदु पर धरती में दिन और रात की अवधि समान हो जाती है। यह प्रावस्था जहां ऋतु परिवर्तन की ओर संकेत करती है, वहीं ज्योतिष शास्त्र में भी महत्वपूर्ण है। विषुव के माध्यम से ग्रहों की राशि चक्र में स्थिति का वर्णन किया जा सकता है। सूर्य वास्तव में प्रति वर्ष लगभग 50 सेकंड या 72 साल में 1 डिग्री की दर से राशि चक्र से पीछे की ओर बढ़ता है। इसे विषुव का अग्रगमन कहा जाता है और यह पृथ्वी की धुरी का अपने अक्ष पर घूमने के कारण होता है। ज्योतिष विज्ञान की भाषा में यदि बात करें तो वर्तमान में, वसंत विषुव पर सूर्य 6 डिग्री और 3 सेकंड में मीन राशि के नक्षत्र में प्रवेश करता है। लगभग 430 वर्षों में इसका उदय कुंभ राशि में होगा। 270 ई.पू से पहले यह मेष राशि में उदय हुआ था। भारत की वैदिक ज्योतिषी में प्राचीन काल से विषुव का उपयोग किया जा रहा है।

वसंत विषुव में सूर्य उष्णकटिबंधीय राशि चक्र के माध्यम से अपने पथ में संतुलन बिंदु तक पहुंचता है और इस चरण पर दिन की लंबाई रात की लंबाई के बराबर हो जाती है। यह विषुव नए ज्योतिष वर्ष की शुरुआत का प्रतीक होता है क्योंकि सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। हालाँकि वसंत विषुव औपचारिक रूप से 21 मार्च को मनाया जाता है किंतु 2011 में यह 20 मार्च को हुआ था। मेष राशि सूर्य के उच्चाटन का संकेत है अर्थात वसंत विषुव के बाद प्रकाश के दिन लम्बे होने लगते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। यह पुराने वर्ष की मृत्यु और नए वर्ष के पुनर्जन्म को भी चिह्नित करता है। विभिन्न देशों में यह दिन विभिन्न उत्सवों के रूप में मनाया जाता है। इसके विपरीत शरद् विषुव वह समय-बिंदु है जब सूर्य उष्णकटिबंधीय राशि चक्र के माध्यम से अपने पथ में विपरीत संतुलन बिंदु तक पहुंचता है। इस प्रावस्था में भी दिन और रात की लम्बाई समान हो जाती है। यह विषुव 23 सितम्बर के आस-पास होता है जोकि फसल उत्सव का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त यह विषुव गर्मियों के अंत का भी प्रतीक है। ज्योतिषीय रूप से इस विषुव में सूर्य तुला राशि, जोकि मेष राशि के विपरीत है, के पहले अंश में प्रवेश करता है। यह विषुव फसल पकने और कटाई की प्रक्रिया को इंगित करता है। पश्चिमी ज्योतिषी में राशि चक्र ऋतुओं पर आधारित होता है। पश्चिमी ज्योतिषी में मकर राशि का पहला दिन मकर की शीतकालीन संक्रांति है। इसका नक्षत्रों या सितारों से कोई संबंध नहीं होता है। वैदिक ज्योतिष नक्षत्र राशि चक्र का उपयोग करते हैं। क्योंकि वैदिक ज्योतिष ग्रहण के माध्यम से चलते हैं इसलिए ये ज्योतिष ग्रहों की स्थिति को मापते हैं।

पहले के समय में जहां भविष्य बताने के लिए ज्योतिषी भविष्य बताने वाले कार्डों (Cards) और तोते का उपयोग करते थे, वहीं आज वे फेसबुक (Facebook), ट्विटर (Twitter), यूट्यूब (Youtube) आदि के ज़रिए भविष्य बताने और ज्योतिष विद्या सिखाने में सक्षम हैं। यूट्यूब पर कई ऐसे वीडियो (Video) मौजूद हैं जो ग्राहकों को ज्योतिष विद्या बता सकते हैं। एक जीवंत और आधुनिक ज्योतिष उद्योग आज भी मेरठ में उपस्थित है।

संदर्भ:
1.
https://www.astrologycom.com/equinox.html
2. http://vedicartandscience.com/solstices-equinoxes-and-deeper-mysticism-in-vedic-astrology/
3. https://www.lightonvedicastrology.com/the-precession-of-the-equinox/
4. https://bit.ly/2mu3sIb