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                                            वर्तमान समय में लोगों के जीवन का रहन-सहन इतना बदल गया है कि छोटे बच्चों से लेकर बूढ़े लोग अवसाद (डिप्रेशन/Depression) जैसी बीमारी का शिकार हो रहे हैं। इतना ही नहीं अवसाद का असर लोगों पर इतना अधिक पड़ रहा है कि वे आत्महत्या तक करने लगे हैं। 10 अक्टूबर को पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है तो यह समय है कि हम लोगों को मानसिक विकारों के बारे में जागरूक करें, ताकि वे अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात कर सकें। मानसिक विकारों से जुड़ी समस्याओं के साथ-साथ भारतीय समाज इन्हें स्वीकार करने की बड़ी चुनौती से भी जूझ रहा है जिसका चिंतन करने का समय आ चुका है।
हाल ही में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 15 करोड़ लोगों को अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का भार प्रति 1,00,000 जनसंख्या में 2,443 लोगों का है, और प्रति 1,00,000 जनसंख्या में आयु-समायोजित आत्महत्या दर 21.1 है।
जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (जिसे राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत वर्ष 1996 में शुरू किया गया था) का उद्देश्य सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं के साथ मनोचिकित्सा सेवाओं को अपने प्रमुख लक्ष्यों में से एक के रूप में एकीकृत करना था। हालांकि, यह काफी हद तक एक "मनोचिकित्सक" उन्मुख कार्यक्रम बना हुआ है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सकों की संख्या काफी कम है, जो प्रति लाख आबादी में मध्य प्रदेश में 0.05 से लेकर केरल में 1.2 तक भिन्न है।
भारत में अधिकांश मानसिक अस्पताल एक दोहरा कार्य करते हैं, जिसमें उनका प्राथमिक कार्य उपचार और इलाज है। यदि उपचार विफल हो जाता है, तो अस्पताल में उस रोगी को स्थायी रूप से भर्ती कर लिया जाता है। इसके बाद अस्पताल में नए रोगियों का इलाज करने पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया जाता है, जबकि पुराने रोगी पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इस प्रणाली पर अब विचार किया जा रहा है।
2011 में, एक विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन ने बताया कि लगभग 36% भारतीय अवसाद से पीड़ित हैं। इस शोध से यह भी पता चला कि सभी मामलों में अधिकतर महिलाएं अवसाद की चपेट में आती हैं तथा महिलाओं के मामले पुरुषों से 50% तक अधिक होते हैं। भारत में अधिकांश महिलाओं को अवसाद का इलाज नहीं मिल पाता है, जिस कारणवश यह समस्या और अधिक जटिल हो जाती है। महिलाओं के अवसाद से ग्रस्त होने का खतरा उनके बच्चे के जन्म के वर्षों में सबसे अधिक होता है। यदि कभी कोई सीने में दर्द को अनुभव करता है, तो उसे जल्द से जल्द अस्पताल ले जाया जाता है, लेकिन जब कोई मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित होता है, तो उसे अस्पताल ले जाने से क्यों हिचकिचाया जाता है? उच्च बीपी, उच्च कोलेस्ट्रॉल (Cholestrol) और मधुमेह जैसी शारीरिक बीमारियों के लिए तो हम तुरंत पानी के साथ गोलियां गटकने को तैयार रहते हैं, परन्तु भावनात्मक तनाव और अन्य मानसिक विकारों का इलाज लेने में हम आज भी विश्वास नहीं रखते। वहीं जहां हम वार्षिक शारीरिक स्वास्थ्य जांच के लिए नियमित रूप से जाते हैं, तो हमें मानसिक जांच के लिए भी जाना चाहिए। क्योंकि किसी भी रोग का इलाज जीतने आराम से जल्द पता चलने में हो जाता है, उतनी ही जटलता उसे बाद में ठीक करने में होती है।
भारत जैसे विकासशील देशों में अनुसंधान निष्कर्षों ने वित्तीय कठिनाई, शारीरिक बीमारी (गुणवत्ता स्वास्थ्य देखभाल की कमी), शिक्षा/कौशल की कमी, बुनियादी संसाधनों की कमी, स्वयं के लिए और परिवार के लिए प्रदान करने में असमर्थता जैसी समस्याओं को लोगों में मानसिक विकार और आत्महत्या का प्रमुख कारक बताया है तो मानसिक विकारों को दूर करने के लिए निम्न कुछ पंक्तियाँ हैं जिन्हें हमें आज से करना शुरू कर देना चाहिए :-
मानसिक विकार को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए: 
•	पीड़ितों को इलाज कराने से हतोत्साहित करना बंद करें। 
•	पीड़ितों को दृढ़ता और स्वयं की मदद से इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए कहना बंद करें। 
•	पीड़ित की आलोचना ना करें।  
•	पीड़ित मानसिक विकार के इलाज से भागना बंद करें। 
•	ऑनलाइन शोध की मदद से स्वयं और दूसरों का इलाज करना बंद करें। 
•	मानसिक विकार को कमजोर व्यक्तित्व की निशानी के रूप में देखना बंद करें। 
मानसिक विकार के प्रति क्या बदलाव लाने की जरूरत है :
•	मानसिक विकार को गंभीरता से लेना शुरू करें। 
•	मदद माँगने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना शुरू करें। 
•	मानसिक विकार को एक चिकित्सा स्थिति के रूप में देखना शुरू करें जिसमें उपचार की आवश्यकता होती है और ऐसी कोई भी स्थिति नहीं है जिससे कोई भी व्यक्ति बाहर नहीं आ सकता है। 
•	मानसिक विकार के लिए चिकित्सक से संपर्क करें और संपूर्ण रूप से बिना हिचकिचाए जांच करवाएं। 
•	नए कौशल और मानसिक रूप से फिट रहने के तरीके सीखने के लिए चिकित्सक से संपर्क करें। 
मेरठ में बड़ी संख्या में चिकित्सा संस्थान हैं जो हर रोज हजारों लोगों का इलाज करते हैं। लेकिन फिलहाल हमारे देश में मानसिक चिकित्सा संबंधित चिकित्सकों और संस्थानों को बढ़ाने की जरूरत है। मानसिक बीमारी के निदान और मनोचिकित्सा व्यवधान के साथ अधिक संरचित और मानकीकृत बनने और मनोचिकित्सकों को लोगों तक आसानी से उपचार उपलब्ध करने की भी आवश्यकता है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य ढांचे के लगभग सभी पहलुओं में प्रगति करने की आवश्यकता है।
संदर्भ :-
1. http://www.searo.who.int/india/topics/mental_health/about_mentalhealth/en/
2. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6278227/
3. https://www.epw.in/engage/article/mental-health-india-problematic-discourse-can-only
4. https://yourstory.com/2018/10/india-needs-focus-mental-health-wellbeing
5. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2690271/