राष्ट्रीय वृक्ष के रूप में सुशोभित बरगद का पेड़

वृक्ष, झाड़ियाँ और बेलें
11-10-2019 10:56 AM
राष्ट्रीय वृक्ष के रूप में सुशोभित बरगद का पेड़

हिंदू धर्म में पेड़ों का बहुत महत्व है और यही महत्व बरगद के पेड़ में भी देखने को मिलता है जिसे बट या वट वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। भारत के राष्ट्रीय वृक्ष के रूप में सुशोभित इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम फ़ाइकस बैंगालेंसिस (Ficus bengalensis) है जिसे धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पेड़ की आयु बहुत लम्बी होती है तथा यह एक द्विबीजपत्री वृक्ष है। इसकी जड़ें शाखाओं से निकलकर हवा में लटकती हैं जोकि बढ़ते हुए धरती के भीतर घुस जाती हैं। इनके बीज दूसरे वृक्ष की दरारों में फंस जाते हैं जहां इनका अंकुरण होता है और फिर उसी में से नये वृक्ष की उत्पत्ति होती है। पत्तियां प्रायः चौड़ी एंव लगभग अण्डाकार होती हैं तथा शाखाओं एंव कलिकाओं को तोड़ने से दूध जैसा रस निकलता है जिसे लेटेक्स (Latex) अम्ल कहा जाता है। मेरठ में आपको बरगद का पेड़ कई स्थानों पर दिखाई दे जायेगा जिनमें से मेरठ कॉलेज भी एक है। मंगल पांडे हॉल के पीछे पार्क में स्थित यह पेड़ आज भी महात्मा गांधी की याद दिलाता है। मेरठ से गांधी जी को बहुत लगाव था तथा वे कई बार यहां आकर देश की आज़ादी के प्रयासों हेतु युवाओं को सम्बोधित करते थे। गांधी जी ने मेरठ कॉलेज में स्थित इसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर छात्र-छात्राओं को संबोधित किया था जिसे देखने के लिए आज भी कई लोग अन्य क्षेत्रों और विदेश तक से यहाँ आते हैं।

हिंदू धर्म में इस पेड़ के संदर्भ में कई किवदंतियां छिपी हुई हैं। हिंदू धर्म के अनुसार यह पेड़ बहुत पवित्र है, जिसका सम्बंध देवी-देवताओं से है। इसमें सदियों तक बढ़ने और जीवित रहने की क्षमता होती है इसलिए भक्तों द्वारा इसकी तुलना सीधे भगवान से की जाती है तथा भगवान ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। पत्तियों का इस्तेमाल आमतौर पर पूजा और अनुष्ठान में किया जाता है। बरगद के पेड़ को अमरता का प्रतीक माना जाता है तथा इसे मृत्यु के देवता यम से भी जोड़ा गया है। यही कारण है कि इसे गांवों के बाहर शमशान के पास लगाया जाता है। यह पेड़ अपने नीचे घास का एक तिनका भी उगने नहीं देता जिस कारण इसका उपयोग किसी भी समारोह जैसे कि बच्चे के जन्म और विवाह में नहीं किया जाता क्योंकि यह नवीकरण या पुनर्जन्म की अनुमति नहीं देता। दूसरे शब्दों में यह किसी दूसरे जीव की उत्पत्ति और विकास में सहायक नहीं है।

हिंदू धर्म में दो प्रकार की धार्मिकता को बताया गया है, एक अस्थायी भौतिक वास्तविकता और दूसरी स्थायी भौतिक वास्तविकता। नारियल और केले जैसे पेड़ अस्थायी भौतिक वास्तविकता को परिलक्षित करते हैं क्योंकि ये मरते हैं और फिर खुद ही जन्म ले लेते हैं। जबकि बरगद को स्थायी भौतिक वास्तविकता की श्रेणी में रखा गया है अर्थात यह आत्मा की तरह है जो न तो मरती है और न ही जन्म लेती है। ऐसा मानना है कि यह पेड़ अमर है। यदि कोई प्रलय भी आ जाये तो भी यह बचा रहेगा।

इसे सन्यासी की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह आध्यात्मिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है तथा भौतिकवाद से मुक्त है। बरगद के पेड़ के नीचे आमतौर पर ऐसे लोग देखे जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन के भौतिक पहलुओं को छोड़ दिया है और वे परमात्मा की तलाश में भटक रहे हैं। बौद्ध धर्म में भी इस पेड़ को बहुत महत्ता दी जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने सात दिनों तक इस पेड़ के नीचे बैठकर आत्मज्ञान प्राप्त किया था। यह पेड़ औषधीय गणों से भी भरपूर है जिसका उपयोग आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर किया जाता है। पेड़ की छाल और पत्तों का उपयोग घावों से होने वाले अत्यधिक रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जा सकता है। इसके लेटेक्स का उपयोग बवासीर, गठिया, दर्द आदि बीमारियों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Banyan
2. https://bit.ly/2pgKgyP
3. https://rgyan.com/blogs/the-banyan-tree-its-mythological-significance/