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                                            सौंदर्य दुनिया की एक ऐसी धारणा है जिसके आगे सभी नतमस्तक हैं। ‘सुन्दर’ शब्द को परिभाषित करना ही एक टेढ़ी खीर के सामान है। सुन्दरता स्थान और व्यक्ति के अनुसार भिन्न हो सकती है। यह कई हद तक मानव के सोच पर निर्भर करती है और यही कारण है कि सुन्दरता का पैमाना अलग-अलग स्थान पर भिन्न है। एक प्रसिद्ध कहावत के अनुसार सुन्दरता देखने वाले के आँखों में निहित होती है, अतः इसका सार यह हुआ कि सुन्दरता विभिन्न स्थान पर भिन्न होती है और यह व्यक्ति विशेष पर आधारित होती है।
यदि भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो सुन्दरता के दो आयाम हैं, पहला पश्चिमी दर्शन के अनुसार सुन्दरता और दूसरा भारतीय दर्शन के आधार पर सुन्दरता। सौंदर्य की प्रकृति पश्चिमी दर्शन में विवादास्पद विषयों में से एक है। यह मूल्यों के आधार पर है जिसमें सच्चाई, अच्छाई और न्याय निहित हैं। सौंदर्य प्राचीन यूनानी, हेलेनिस्टिक (Hellenistic) और मध्ययुगीन दार्शनिकों के बीच एक प्राथमिक विषय है। पाश्चात्य जगत में सौंदर्य से सम्बंधित विचार 580 ईसा पूर्व के करीब से आरम्भ हो गए थे। पाश्चात्य शैली में सौंदर्य को ऑब्जेक्ट (Object) और सब्जेक्ट (Subject) के आधार पर विभाजित किया गया है।
ह्यूम के अनुसार सुन्दरता मन में मौजूद है तथा जहाँ एक व्यक्ति को सुन्दरता विकृत लग सकती है तो वहीं दूसरे को सही। पाश्चात्य दर्शन में सौंदर्य के विभिन्न प्रमाण हैं तो वहीं अगर भारतीय दर्शन की बात करते हैं तो इसमें वैदिक काल से लेकर आज तक सौंदर्य का विभिन्न रूप से विवेचन होते आ रहा है। इसमें विभिन्न बिन्दुओं पर सवाल उठाये गए जैसे कि “क्या यह शरीर से सम्बंधित है?”, “क्या यह चेतना से सम्बंधित है?”, “सौंदर्य आत्मनिष्ठ है या वस्तुनिष्ठ?” आदि। शंकराचार्य के कथन के अनुसार ब्रह्म ही सत्य है और जगत मिथ्या। इसको यदि सौंदर्य के रूप में उद्घृत किया जाए तो ‘सौंदर्य ही ब्रह्म है’ का सार आता है। भारतीय दर्शन में कहा जाता है कि सौंदर्य ही एक मात्र सत्य है और यह रचनात्मकता का प्रतीक है।
भारतीय दर्शन धर्मशास्त्र के साथ सौंदर्यवाद के संयोजन में सौंदर्य को दर्शाता है और यह सभी रूपों दिव्या या अल्पकालिक, जीवित या मृत और यहाँ तक कि उन लोगों को भी ध्यान में रखता है जो कि सामान्य दिमाग को बदसूरत लगते हैं। भारतीय दर्शन में जैन और बौद्ध धर्म भी सुन्दरता को ज्ञान के प्रकाश से जगमगाने के आधार पर देखते हैं। भारतीय आधार पर कला को सौंदर्य का एक बड़ा प्रतिमान माना जा सकता है जिसमें कामसूत्र, मूर्तिकला, चित्रकारी आदि में प्रदर्शित पैमानों को आधार मानकर देखा जाता है। सौंदर्य का नैतिकता के साथ सम्बन्ध है अतः यह नैतिक मूल्यों पर भी कई हद तक आधारित है। भारतीय दर्शन में सौंदर्य को अनूठे प्रकार से प्रदर्शित किया गया है जो अन्य दर्शनों से काफी हद तक अलग प्रतीत होता है।

संदर्भ:
1. https://fordham.bepress.com/dissertations/AAI10182793/
2. https://bit.ly/2pwpE6n
3. https://www.exoticindiaart.com/article/indian_beauty/
4. https://plato.stanford.edu/entries/beauty/
5. https://www.sciencenewsforstudents.org/article/what-makes-pretty-face