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                                            रोजगार की उपलब्धता मानव जीवन में एक अमूल्य अंग के रूप में देखि जाती है। रोजगार व्यक्ति के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण बिंदु होता है इससे मनुष्य अपनी जीवन के सभी जरूरतों को पूर्ण करता है। भारत में रोजगार की बात की जाए तो वर्तमान समय में यहाँ पर रोजगार की स्थिति अत्यंत दैनीय हुयी है जो की गत 45 साल में सबसे कम है। नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन के रोजगार/बेरोजगारी के आंकड़ों की बात की जाए तो 2004 से लेकर 2017 तक रोजगार में आधे की कमी आई है।
 
अभी वर्तमान में आई दो साल की प्रायोगिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण के डेटा से यह पता चलता है की 2017 से 2018 के मध्य भारत में बेरोजगारी की दर 6 प्रतिशत थी जिसमे 7.8 प्रतिशत शहर और 5.3 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में थी। इसी डेटा के सहारे ही 45 साल का सबसे अधिक बेरोजगारी दर की संज्ञा का प्रतिपादन हुआ था। वर्तमान का प्रायोगिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण का डेटा तिमाही परिवर्तनों के आधार पर है पहले यह इ यू एस के आधार पर था जो की 5 साल की नौकरी के सर्वेक्षण के आधार पर होता था। तिमाही तंत्र 2011-12 के बाद से कार्यान्वित हुआ।
 
नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन का सर्वेक्षण पूरी आबादी को तीन हिस्सों में या श्रेणियों में विभाजित कर के मापता है। श्रेणी 1 में वे लोग शामिल हैं जो की आर्थिक गतिविधियों या नौकरियों में शामिल थें, इस श्रेणी को स्वनियोजित, वेतनभोगी, और आकस्मिक मजदूरों में विभाजित किया जा सकता है। श्रेणी 2 में वे लोग आते हैं जो की काम की तलाश में थें या पूर्ण रूप से बेरोजगार थे। तीसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो की सेवानिवृत्त, घरेलु कार्य करने वाले और विकलांग आदि आते हैं। यह श्रेणी और श्रेणियों से बड़ी है। अब जैसा की रोजगार की वास्तव में बड़ी किल्लत है तो इससे बचने के उपाय क्या हों सकते हैं उनपर चर्चा करते हैं।
 
भारत एक विकासशील देश है और यहाँ पर युआ कार्यबल की संख्या और अन्य देशों से बहुत ही ज्यादा है। अब युवाओं के अधिक होने का मतलब यह है की यहाँ पर रोजगार के अवसर सृजन करना एक बड़ी चुनौती है। भारत में रोजगार के लिए जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। इस संरचना में शिक्षण संस्थाओं को ठीक करना पहले दर्जे पर है। भारत में करीब 80 प्रतिशत स्नातक बेरोजगार पाए गएँ है अतः यह भी एक बिंदु है की शिक्षण संस्थाओं की संरचना में परिवर्तन या सुधार की बड़ी आवश्यकता है।
 
भारत में सकल घरेलु उत्पाद के अनुपात में आर एंड डी पर कम राशि व्यय की जाती है जो की एक मुख्य कारक है रोजगार के ना आने की। विकसित देश आर एंड डी पर करीब 3 प्रतिशत करते हैं तो भारत 0.86 प्रतिशत मात्र। आर एंड डी पर खर्च को बढाने से बड़ी कम्पनियाँ भारत में खुलने के आसार बढ़ा देंगी। एक बेहतर व्यवसायिक मोडल बनाने की मांग करती है। भारत जैसा की एक विशाल देश है तो यहाँ पर नौकरियों को बढाने के लिए यहाँ के घरेलु अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

सन्दर्भ:
 
1. https://bit.ly/2JCKyaL
2. https://bit.ly/2NsR84Q
3. https://www.newsclick.in/unemployment-india-modi-oxfam-report
4. https://bit.ly/2r1wSjd
5. https://bit.ly/2NqBPto
6. https://bit.ly/320elRc