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                                            प्रत्येक वर्ष नवंबर माह के तीसरे गुरूवार को विश्व दर्शन दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष भी नवंबर माह की तीसरे गुरूवार अर्थात 21 नवंबर के आज के दिन को आप विश्व दर्शन दिवस के रूप में मना रहे हैं। इस दिवस का उद्देश्य दार्शनिक सोच, विचारों या भावनाओं के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करना तथा इसे आगे बढाने के लिए प्रोत्साहित करना है। दर्शन का हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक हम जो कुछ भी देखते हैं उसी से कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्त करते हैं या फिर यूं कहें कि हमारा दृष्टिकोण जिस ओर अधिक गहरा होता है हमारा ज्ञान भी उसके प्रति उतना ही बढता जाता है। इसलिए दर्शन को सभी विषयों को जननी भी कहा गया है क्योंकि जिस भी विषय को हम सीख रहे हैं या पढ रहे हैं उसकी उत्पत्ति दार्शनिक दृष्टिकोण के कारण ही हुई है।
दर्शन ही हमें किसी वस्तु के वास्तविक अस्तित्व की सही जानकारी या ज्ञान देता है। दर्शन की वह उपशाखा जिसके अंतर्गत किसी वस्तु के अस्तित्व का अध्ययन किया जाता है ओंटोलॉजी (Ontology) कहलाती है। यह इस बात का भी अध्ययन करती है कि हम कैसे यह निर्धारित करें कि किसी वस्तु का अस्तित्व है या नहीं। पारंपरिक रूप से इसे दर्शन की प्रमुख शाखा मेटाफिजिक्स (metaphysics) के एक भाग के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। ऑन्टोलॉजी के प्रमुख प्रश्नों में ‘वस्तु क्या है?’ ‘किसे कहा जा सकता है कि उसका अस्तित्व है?’, यदि कोई चीज अस्तित्व में है तो उसे किस श्रेणी में विभाजित किया जा सकता है’ आदि प्रश्न शामिल होते हैं। दार्शनिकों द्वारा ऑन्टोलॉजी को चार प्रकारों में बांटा गया है। पहला उच्च ओंटोलॉजी (Upper ontology), दूसरा डोमेन ओंटोलॉजी (Domain ontology), तीसरा इंटरफ़ेस ओंटोलॉजी (Interface ontology) और चौथा प्रोसेस ओंटोलॉजी (Process ontology)। इस प्रकार ऑन्टोलॉजी विषय या विचारों के वास्तविक अस्तित्व की जानकारी पर भी केंद्रित है।
ओंटोलॉजी पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व से हिंदू दर्शन के सांख्य स्कूल की विशेषता रही है जिसमें गुणों की अवधारणाएं निहित हैं। गुणों की अवधारणा सभी वस्तुओं (जिनका अस्तित्व है) में अलग-अलग अनुपात में निहित तीन ग़ुणों (सत्व, रज और तमस) का उल्लेख करती है। यह इस विद्यालय की एक उल्लेखनीय अवधारणा है।
वास्तविकता उन सभी का योग या समुच्चय है जो वास्तविक रूप से अस्तित्व में है। या यूं कहें कि वह जो केवल काल्पनिक नहीं है। इस शब्द का उपयोग चीजों की ओंटोलॉजिकल स्थिति का उल्लेख करने के लिए किया जाता है, जो उनके अस्तित्व को दर्शाता है। भौतिक दृष्टि से, वास्तविकता ब्रह्मांड की ज्ञात और अज्ञात समग्रता है। वास्तविकता की वास्तविक प्रकृति यह है कि सब कुछ एक समान तथा एक ही है। समय और स्थान के माध्यम से एक ही चीज कई वस्तुओं के रूप में दिखाई देती है किंतु वापस वह फिर एक में ही मिल जाती है। हालांकि प्रसिद्ध वैज्ञानिक बोल्ट्ज़मैन द्वारा इस पर एक विरोधाभास या तर्क भी दिया गया है जिसे बोल्ट्ज़मैन मस्तिष्क या बुद्धि भी कहा जाता है। लुडविग बोल्ट्जमैन ऊष्मागतिकी क्षेत्र के संस्थापकों में से एक थे जिन्होंने ऊष्मागतिकी के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। उनके दूसरे सिद्धांत के अनुसार एक बंद प्रणाली की एंट्रोपी (Entropy - वह उर्जा जो किसी कार्य के होने पर भी परिवर्तित नहीं होती) हमेशा बढ़ती है। चूंकि ब्रह्मांड एक बंद प्रणाली है इसलिए हम यह उम्मीद करते हैं कि इसकी एंट्रोपी भी समय के साथ बढ रही होगी। इसका मतलब है कि किसी पर्याप्त समय में ब्रह्मांड की सबसे संभावित स्थिति एक है जहां सब कुछ ऊष्मागतिकीय संतुलन में है। लेकिन हम स्पष्ट रूप से इस प्रकार के ब्रह्मांड में मौजूद नहीं हैं, क्योंकि हमारे चारों ओर विभिन्न रूपों में सब व्यवस्थित क्रम में है।
यह विचार ऊष्मागतिकी में एक विरोधाभास को उजागर करता है। इसके अनुसार ब्रह्मांड संभवतः हमारी असंतुष्ट चेतना का सिर्फ एक प्रभाव है और वास्तव में मौजूद नहीं है। हमारी भावनाएं सिर्फ एक सांख्यिकीय उतार-चढ़ाव है। हमारा ब्रह्मांड बेहद विशाल और जटिल है तथा अनेक अकल्पनीय चीजों या विचारों से भरा हुआ है। यहां समय केवल एक ही दिशा में प्रवाहमान है। यह विभिन्न आकृतियों और आकारों के ग्रह निकायों से मिलकर बना हुआ है। इसमें हमारे जैसे मनुष्य (हमारे अनुसार प्रकृति की सर्वोच्च रचनाएँ) भी विद्यमान हैं। लेकिन इन आश्चर्यजनक विविध पदार्थों या चीजों को वहन करना बहुत कठिन है, जिसके लिए ऊर्जा की बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। किंतु बोल्ट्जमैन की अवधारणा के अनुसार यदि प्रणाली की एंट्रोपी निरंतर या हमेशा बढ रही है (अव्यवस्थित क्रम की ओर बढ़ रही है) तो कुछ सम्भावना हो सकती है कि अस्थिरता प्रणाली को अव्यवस्थित से व्यवस्थित क्रम की ओर ले जाए। इस प्रकार यह ब्रह्मांड की एंट्रोपी को कम करेगा और संतुलन से दूर ले जायेगा। इस प्रकार बोल्ट्जमैन मस्तिष्क हमारे ब्रह्मांड में एक मानव जीवन की स्मृतियों के साथ भरा हुआ पूर्ण रूप से निर्मित मस्तिष्क है जो ऊष्मागतिकीय संतुलन की स्थिति से बाहर अत्यंत दुर्लभ यादृच्छिक अस्थिरता के कारण विकसित या उत्पन्न होता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Ontology
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Reality
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Brahman
4. https://bigthink.com/surprising-science/boltzmann-brain-nothing-is-real
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Boltzmann_brain