समय - सीमा 277
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1034
मानव और उनके आविष्कार 813
भूगोल 249
जीव-जंतु 303
                                            पारिस्थितिकी तंत्र के बिना जीवन की कल्पना भी करना बेमानी है। यह तंत्र जीवन की धारणा को प्रेरित करता है और इसके द्वारा ही जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार होना संभव है। वर्तमान काल में पूरी पृथ्वी पर जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र के अन्दर कई ऐसे पहलु आ गए हैं जोकि इसको अत्यंत ही बुरे तरीके से क्षतिग्रस्त करने की ओर अग्रसर हैं। मानव द्वारा जितने भी प्रयास इसको बचाने के लिए किये जा रहे हैं वो सब इस विशाल समस्या के आगे बौने प्रतीत हो रहे हैं ऐसे में प्रभावी तरीकों के बारे में सोच और शख्त कदम उठाने की जरूरत है। भारत वर्तमान काल में अपनी जलवायु की राजनीति में वैश्विक स्तर पर एक दोहरी स्थिति में है। भारत एक विकासशील देश है और यहाँ पर गरीबी उन्मूलन एक अहम् समस्या है जिसको लेकर ये आगे बढ़ रहा है।
भारत को वैश्विक जलवायु चुनौती के लिए वैश्विक स्तर पर सक्रिय रूप से भाग लेने की आवश्यकता है, वर्तमान में जलवायु राजनीति एक बड़ा आकार ले चुकी है। ऐसे में इस पर एक बहस और जलवायु के अनुकूलन के लिए व्यापक स्तर पर कार्य करने के लिए आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इस बदलाव के लिए व्यापक स्तर पर भारत के मिडिया, राज्यों के नौकरशाहों, पर्यवारणविदों को आगे आने की जरूरत है। बढती मानव आबादी वैश्विक वातावरण के लिए एक खतरे की घंटी है, क्यूंकि मानव प्राकृतिक संसाधनों पर ही जीवन जीते हैं। पर्यावरणीय संकट और उसके संरक्षण विज्ञान के लिए केन्द्रीय विकास प्रतिमान के उत्पन्न संस्करणों को संबोधित करने की आवश्यकता है और साथ ही उन मूल्यों पर भी बदलाव की आवश्यकता है जोकि विकास केन्द्रित समाज से एक जैव और भौतिक सीमाओं को ध्यान में रख कर मानव कल्याण पर केन्द्रित हो। इस दिए गए कथन को जैव विविधितता संरक्षण का नाम दिया जा सकता है।
वर्तमान काल के इस समाज में जैव संरक्षण और अर्थशाश्त्र के मध्य सामंजस्य का होना एक अहम् बिंदु है। भारत में जलवायु निति और विकास निति दोनों अलग-थलग हैं और ये दो राजनीतियों भू-राजनीति और जलवायु राजनीति के मध्य घनचक्कर हो चुके हैं। वैश्विक स्तर पर ऐसी योजनाये हो रही हैं जो की भारत को वैश्विक जलवायु के मसले पर सक्रियता के लिए प्रेरित करती हैं इनमे इक्विटी फ्रेम एक बड़ा औपचारिक छत्र बन चुका है जोकि इन दिए गए स्थितियों के सन्दर्भ में हैं। हांलाकि पर्यावरण को लेकर घरेलु बहस अत्यंत जरूरी है कुलीन वर्गों में इसका असर देखा जा सकता है लेकिन इसमें व्यापकता अभी नहीं है। जलवायु परिवर्तन ने अधिक समृद्ध और जटिल चर्चा का जन्म दिया है विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा संयोजन और उसमे जलवायु परिवर्तन का दृष्टिकोण। इक्विटी फ्रेम भारत की अंतर्राष्ट्रीय वार्ता के रुख का मार्गदर्शन करता है। भारत में अब यह आवाजे उठने लगी हैं जो की ऊर्जा, जलवायु, पारिस्थितिकी आदि की ओर इशारा करती हैं और ये एक प्रकार की नयी राजनीति का भी परिचय देता है जिसे जलवायु राजनीति भी कह सकते हैं। अब यह समय है जब भारत की जलवायु निति को संघीय प्रणाली या शासन तंत्र के रूप में बदल देना चाहिए।
सन्दर्भ:-
1.	https://www.pnas.org/content/113/22/6105
2.	https://portals.iucn.org/library/sites/library/files/documents/Man-Econ-131.pdf
3.	https://www.context.org/iclib/ic36/goodland/ 
4.	https://bit.ly/2R6GJPA