विलुप्त हो रही है, कठपुतलियों की कला

दृष्टि II - अभिनय कला
08-12-2019 12:23 PM
विलुप्त हो रही है, कठपुतलियों की कला

इस रविवार प्रारंग आपके लिए लेकर आया है, एक मनोरंजक प्रस्तुति जिसमें कठपुतली के खेल के द्वारा समाज को एड्स जैसे संवेदनशील मुद्दे पर एक सशक्त संदेश दिया गया है। वर्तमान में मानव अपने मनोरंजन के लिए कई प्रकार की वस्तुओं जैसे टेलीविज़न (Television), कंप्यूटर (Computer), मोबाईल (Mobile) आदि का प्रयोग करता है। किंतु एक समय ऐसा भी था जब वह अपने मनोरंजन के लिए कठपुतलियों के प्रदर्शन या नाटक पर निर्भर रहता था। उस समय कठपुतलियों को मनोरंजन के उद्देश्य से बहुत ही अधिक पसंद किया जाता था।

वास्तव में कठपुतली रंगमंच पर किए जाने वाले मनोरंजक कार्यक्रमों में से एक है जिसे विभिन्न प्रकार के गुड्डे-गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप में बनाया जाता है। पहले के समय में इसे लकड़ी (काष्ठ) से बनाया जाता था जिस कारण इसका नाम ‘कठपुतली’ पड़ा। इसमें निर्जीव वस्तुओं का उपयोग किया जाता है जो अक्सर किसी प्रकार के मानव या पशु आकृति से मिलती-जुलती हैं। कठपुतलियों के शरीर के अंगों जैसे हाथ, पैर, सिर, आंखें आदि को हिलाने के लिए किसी छड़ या तार का उपयोग किया जाता है जिसे मानव द्वारा संचालित किया जाता है।

सन्दर्भ:-
1.
https://rampur।prarang।in/posts/3318/Puppets-are-an-ancient-means-of-entertainment