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                                            चीन में जहां कई लोग कोरोना वायरस के रोग से संक्रमित हैं, वहीं कई लोगों द्वारा इसके बारे में आधी-अधूरी या फर्जी जानकारियां सोशल मीडिया के जरिए काफी तेजी से फैलाई जा रही हैं। ऐसा मान लीजिए की कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर इंटरनेट पर फर्जी दावों की बाढ़-सी आ गई है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कोरोना वायरस को लेकर सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें, अधूरी जानकारी और गलत सलाह इस महामारी के प्रकोप को और अधिक बढ़ा सकती है। उदाहरणों के लिए, कई लोगों ने दावा किया है कि लहसुन खाने या विटामिन सी लेने से कोरोना वायरस ठीक हो जाएगा, आदि। 2 फरवरी को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नए उभरे कोरोना वायरस (coronavirus) को "एक विशाल 'इन्फोडेमिक'” करार कर दिया, यह उल्लेख करते हुए कि यह अतिरिक्त जानकारियों से भरा, जिनमें से कुछ सटीक और कुछ सटीक नहीं होंगी। जिससे लोगों को भरोसेमंद स्रोतों और विश्वसनीय मार्गदर्शन खोजने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। यह एक ऐसा विभेदन है जो कोरोना वायरस को पहले उभरे वायरल के प्रकोप से अलग करता है। हालांकि SARS, MERS, और Zika सभी वैश्विक दहशत का कारण बने थे, लेकिन कोरोना वायरस के डर को सोशल मीडिया द्वारा बढ़ाया जा रहा है।
जिसको देखते हुए, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गलत सूचनाओं पर काबू पाने के लिए ट्विटर, फेसबुक, टेनसेन्ट और टिकटॉक के साथ साझेदारी करके इस मुद्दे को हल करने का प्रयास किया है। इसके साथ ही उनके द्वारा गूगल एसओएस (Google SOS) चेतावनी को भी लॉन्च किया है, उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संबंधित कोई प्रश्न पूछता है तो उसकी खोज परिणामों के शीर्ष में विश्व स्वास्थ्य संगठन की सूचनाएं आएंगी। सोशल-मीडिया और स्वास्थ्य संगठनों ने भी अपने स्वयं के प्रयासों की मदद से गलत जानकारी पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है। टिकटॉक द्वारा भ्रामक वीडियो को हटाने की कोशिश के लिए एक बयान में कहा है कि यह "गलत सूचना को अनुमति नहीं देगा जो हमारे समुदाय या बड़े लोगों को नुकसान पहुंचा सकता है।" वहीं दूसरी ओर फेसबुक द्वारा संदिग्ध स्वास्थ्य सलाह से संबंधित पोस्ट को हटाया जा रहा है और वी-चैट में ऑनलाइन प्रसारित होने वाले कोरोना वायरस अफवाहों की जांच करने के लिए अपने तथ्य-जाँच मंच का उपयोग किया जा रहा है।
जहां सोशल मीडिया से कोरोना वायरस से संबंधित डर के फैलने की चिंता जताई जा रही है, वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया के मंच वीबो और वीचैट पर, निराशा और दयालुता की कहानियाँ उभर कर सामने आई है, कई लोग कोरोना वायरस से पीड़ितों को इस बीमारी से लड़ने का होसला प्रदान कर रहे हैं और उपचार प्राप्त करने में असमर्थ रोगियों की दान करके स्वेच्छा से और अनपेक्षित और उदार तरीके से एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। वहीं रोनाल्ड सेंट जॉन द्वारा ग्लोबल पब्लिक हेल्थ इंटेलिजेंस नेटवर्क (जीपिएचआईएन) को बनाया गया था। जीपिएचआईएन के बनने के दशक बाद वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया। ये उपकरण आधिकारिक तौर पर जांचे जाने से पहले कभी-कभी बीमारियों की निगरानी और उन्हें ट्रैक करने में काफी मदद करता है। जीपिएचआईएन नौ अलग-अलग भाषाओं में हजारों स्थानीय और राष्ट्रीय वेबसाइटों की निगरानी करता है, जो एक संक्रमक रोग का संकेत देने वाले सूचक शब्द के लिए अवलोकन करता है।

संदर्भ :-
1. https://www.bbc.com/news/technology-51510196
2. https://bit.ly/2uIwacZ
3. https://bit.ly/39GGPDw