क्या थी गांधी जी के विचारों में हिन्दू मुस्लिम एकता?

अवधारणा II - नागरिक की पहचान
29-02-2020 11:40 AM
क्या थी गांधी जी के विचारों में हिन्दू मुस्लिम एकता?

भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है जो समूचे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। अलग-अलग संस्कृति और भाषाएं होते हुए भी हम सभी एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। ऐसे ही गांधीजी का मत था कि धर्म और राजनीति को कभी अलग नहीं किया जा सकता है। लेकिन इस मामले में धर्म से उनका तात्पर्य इसके आज के साधारण अर्थ से नहीं बल्कि नैतिकता से था, क्योंकि धर्म उनके लिए नैतिकता का प्रमुख केंद्र था। परन्तु जब उन्होंने देखा कि कुछ लोग धर्म के नाम पर देशवासियों के बीच आग भड़का रहे हैं तो उन्होंने अपनी बात बदलकर कहा कि, “धर्म एक निजी मामला है जिसका राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिए”।

गांधी जी के महान योगदानों में से एक हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उनके द्वारा किए गए अनूठे प्रयास थे। उनका यह कहना था कि “भले ही मुझे मार दिया जाए, मैं राम और रहीम के नामों को दोहराना नहीं छोड़ूंगा, क्योंकि मेरे लिए ये एक ही भगवान हैं। मेरे होंठों पर इन नामों के साथ, मैं खुशी से मर जाऊंगा।" गांधी जी के जीवन का पहला संघर्ष जातीय भेदभाव के खिलाफ था और उन्होंने खुद को पूरी मानव जाति के "सेवक" के रूप में देखा था। साथ ही उनके विचारों में देश की सामाजिक प्रगति में स्वदेशी को बढ़ावा देने एवं अस्पृश्यता को हटाने के अलावा हिंदू और मुसलमानों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करना एक प्रमुख कारक था। उनके द्वारा इस मुद्दे को 1920 में शुरू किए गए रचनात्मक कार्यक्रम का एक अनिवार्य घटक भी बना दिया गया था। दक्षिण अफ्रीका में मुसलमानों और हिंदुओं दोनों के साथ गांधी जी के लंबे और तीव्र संबंध ने उन्हें इस तथ्य से अवगत कराया था कि दोनों में बहुत समानता थी और उनकी पारंपरिक एकता को भारत में फिर से स्थापित किया जा सकता था।

उनका यह भी मानना था कि हिन्दू-मुस्लिम एकता का मूल्य तब तक कुछ नहीं है जब तक साहसी पुरुषों और महिलाओं के बीच साझेदारी नहीं होगी। हिंदू मुस्लिम एकता का मतलब केवल हिंदुओं और मुसलामानों के बीच एकता नहीं है बल्कि उन सभी लोगों के बीच एकता है जो भारत को अपना घर मानते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। बल्कि हिंदुओं और मुसलामानों को वास्तव में एकजुट होने से पहले अकेले और पूरी दुनिया के खिलाफ खड़े होने का साहस उत्पन्न करने की आवश्यकता है। यह एकता कमज़ोर लोगों के बीच नहीं बल्कि उन लोगों के बीच है जो अपनी ताकत के प्रति सचेत हैं। साथ ही एकता से उनका मतलब यह भी था कि हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें, जैसे यदि कोई चीज़ हिंदुओं के लिए ज़रूरी नहीं है, वह मुस्लिमों के लिए ज़रूरी हो सकती है, इसलिए लड़ने के बजाए एक दूसरे का सम्मान करना आवश्यक है। अगर हम एक दूसरे के प्रति प्रेम और धर्मार्थ स्वभाव को विकसित करते हैं तो हमारी एकता लंबे समय तक रहेगी। गांधी जी हमेशा से हिन्दू और मुस्लिमों को शांतिपूर्ण रूप से एकता बनाकर एक दूसरे के साथ जीवन बिताते हुए देखना चाहते थे, परंतु ये पूर्ण रूप से आज तक मुमकिन नहीं हो पाया है। क्यों न उनके इस सपने को पूरा करने का जिम्मा हम अपने हाथों में लें और उनके निर्देशों का पालन कर सभी भारतवासियों के बीच एकता स्थापित करने के प्रयास में लग जाएँ।

संदर्भ:
1.
http://magazines.odisha.gov.in/Orissareview/2008/jan-2008/engpdf/8-9.pdf
2. https://www.mkgandhi.org/g_communal/chap02.htm
3. https://bit.ly/39aOiLs