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                                            अपने दैनिक जीवन में हम प्रायः कैंची का प्रयोग अक्सर ही करते रहते हैं। यह हाथ से चलाया जाने वाला एक उपकरण है, जिसका प्रयोग वस्तुओं को काटने के लिए किया जाता है। बाल, कपड़ा, कागज़ इत्यादि काटने, तथा बागवानी और शल्यचिकित्सा जैसे विभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न आकृतियों की कैंचियाँ बनाई जाती हैं। यूं तो लियोनार्डो डा विंची (Leonardo da Vinci) को कैंची के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है, लेकिन वास्तव में इनका प्रयोग सदियों पहले से होता आ रहा है। कैंची का सबसे प्राचीन रूप 1500 ई.पू. का था जिसका इस्तेमाल प्राचीन मिस्रियों द्वारा किया गया था। वह दो ब्लेडों (Blades) के रूप में व्यवस्थित किया गया था और ये दोनों ब्लेड धातु की एक पट्टी द्वारा नियंत्रित किये जाते थे। पट्टी दोनों ब्लेड को एक-दूसरे से अलग रखती थी, जब तक कि उसे हाथ से दबाया नहीं जाता था। व्यापार और रोमांच के कारण, यह उपकरण अंततः मिस्र के अलावा दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैल गया।
लगभग 100 ईसवी में मिस्रियों के इस डिज़ाइन (Design) को रोमनों द्वारा क्रॉस-ब्लेड (Cross-blade) कैंची के रूप में अनुकूलित किया गया। उन्होंने अपनी कैंची को कांस्य का भी बनाया। आधुनिक कैंची के पिता इंग्लैंड (England) के शेफ़ील्ड (Sheffield) के रॉबर्ट हिंचलिफ़ (Robert Hinchliffe) को माना जाता है। 1761 में कैंची के निर्माण और बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए स्टील (Steel) का उपयोग करने वाले वो पहले व्यक्ति थे। 1893 में वाशिंगटन (Washington) के लुईस ऑस्टिन (Louise Austin) ने पिंकिंग (Pinking) कैंची का आविष्कार किया तथा इसे अपने नाम से पेटेंट (Patent) करवाया। 1930 में एक अन्य एग (Egg) कैंची का निर्माण फ्रांस (France) में अंडे को काटने के उद्देश्य से किया गया था।
भारत भर में मेरठ को "मेरठ कैंची" के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। मेरठ कैंची, मेरठ में माइक्रोलेवल (Microlevel) औद्योगिक इकाइयों द्वारा पुनर्नवीनीकृत धातु के टुकड़े से बनी कैंची है। इसका उपयोग विशेष रूप से परिधान बनाने और अन्य घरेलू उपयोग के लिए किया जाता है। कैंची के सभी भाग किसी न किसी अन्य रूप में पहले उपयोग किए जा चुके होते हैं। उदाहरण के लिए ब्लेड रिसाइकल कार्बन स्टील (Recycled carbon steel) से बनी होती है, हत्थे मिश्रित धातु या प्लास्टिक (Plastic) से बने होते हैं जिसे अन्य कचरे जैसे पुराने बर्तनों से तैयार किया जाता है। इस तरह की पहली कैंची असली अखुन ने 1653 के आसपास बनाई थी। अन्य कैंचियों के विपरीत, मेरठ कैंची की कई बार मरम्मत की जा सकती है तथा इसे पुन: उपयोग में लाया जा सकता है। यह एक वजह है कि भारत के ऐसे कई शहर हैं जहां मेरठ के नाइयों को आसानी से खोजा जा सकता है। यहां का 350 साल पुराना कैंची उद्योग स्थानीय रूप से 'कैंची बाज़ार' के रूप में प्रचलित है, जोकि 600 ईकाईयों के साथ लगभग 7,000 लोगों को रोज़गार देता है। एक समय में इस बाज़ार की कैंचियों को अपनी तीक्ष्णता, शक्ति और स्थायित्व के लिए जाना जाता था और शिल्पकार अपने नुकताचीन काम के लिए इसको श्रेय देते थे। यहां तक कि यहां स्थित एक गली को "मोहल्ला साबुन ग्रहण कैंची" भी कहा जाता है। हालांकि आज ब्रांडेड (Branded) साबुन प्रतिस्पर्धा के बीच यहां का साबुन उद्योग कहीं खो सा गया है, लेकिन कड़ी प्रतिस्पर्धा के तहत कैंची निर्माण अभी भी जारी है।
वर्तमान में चूंकि व्यवसायों द्वारा किया गया लाभ नगण्य है, इसलिए नई पीढ़ी को यह पेशा अपनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है। जनवरी 2013 में, इस उत्पाद को अपने स्वयं का भौगोलिक संकेतक दिया गया। भारत में ऐसे भौगोलिक संकेतक के लिए विशेष रूप से चिह्नित वस्तुओं की सूची में इसका 164वां स्थान था। पहले कैंचियों का निर्माण विभिन्न आकारों में किया जाता था तथा इनकी मूल्य सीमाएं भी अलग-अलग थीं। यह कैंची करीब 6 से 14 इंच की बनाई जाती है जिसका मूल्य 20 रुपये से लेकर 500 रुपये तक का होता है। हालांकि, जी.आई. टैग (GI Tag) मिलने के साथ कैंचियों के आकार और मूल्य स्तर को मानकीकृत करने के लिए निर्माताओं को प्रोत्साहित किया गया है। स्थानीय उत्पादकों का कहना है कि कम लागत वाली चीनी कैंची द्वारा दी जा रही तीव्र प्रतिस्पर्धा के बीच मेरठ की कैंची अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। घरेलू बाज़ार में कम लागत वाली चीनी कैंची की बिक्री से मेरठ कैंची बुरी तरह प्रभावित हुई, और इसमें सुधार का भी कोई संकेत नहीं मिल पा रहा है। भौगोलिक संकेतक के रूप में पंजीकृत उत्पाद होने के बावजूद भी कैंची को अभी भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता मिलने की आवश्यकता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि यहां शालीमार कैंची, फेमस (Famous) कैंची, अखनुनजी कैंची जैसे कई निजी ब्रांड (Brand) हैं, लेकिन ‘मेरठ कैंची’ नाम से एक भी ब्रांड नहीं है। आज, सरकार ने इस विरासत को जी.आई. टैग के साथ भले ही मान्यता दी है, लेकिन मेरठ नाम को वैश्विक प्रसिद्धि के एक ब्रांड से जोड़ने के लिए बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है। अतः विश्व के कैंची इतिहास में मेरठ कैंची का नाम भी अवश्य शामिल होना चाहिए।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Meerut_scissors
2.https://www.firstpost.com/living/kainchi-bazaar-meeruts-scissor-industry-faces-a-slow-death-amid-low-profit-margins-competition-6976271.html
3.https://www.hindustantimes.com/lucknow/meerut-scissors-struggle-to-cut-through-chinese-competition/story-2Ijypzx2utCSZGUk7okapN.html
4.https://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/meerut-scissors-make-the-cut-for-gi-tag/article4292580.ece
5.https://www.lucknowfirst.in/?p=6825
6.https://en.wikipedia.org/wiki/Scissors
7.https://www.vampiretools.com/blog/short-history-scissors/
8.https://www.thoughtco.com/who-invented-scissors-4070946
चित्र सन्दर्भ:
1.	https://www.flipkart.com/shalimar-shalimar-brass-handle-professional-tailoring-size-8-inches-scissors/p/itmecp77ztuvjhek
2.	https://www.youtube.com/watch?v=b5pjLAwQhC4