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                                            महाभारत हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध महाकाव्य है, तथा आज भी यह लोगों में उतनी ही प्रसिद्ध है जितनी की कई वर्षों पूर्व थी। यही कारण है कि इसके विभिन्न प्रसंगों को विभिन्न कलाकारों ने अपने कृत्यों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित एक पेंटिंग (painting) में महाभारत के एक पात्र शांतनु को मछुआरी लड़की सत्यवती (मत्स्यगंधा) को लुभाते हुए दिखाया गया है। वहीं एक अन्य पेंटिंग में शांतनु को सत्यवती के सामने शादी का प्रस्ताव रखते भी दिखाया गया है। राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित एक अन्य चित्र में शांतनु, गंगा को अपने आठवें पुत्र को नदी में डुबाने से रोक रहे हैं, यही पुत्र बाद में भीष्म पितामहा के रूप में जाने गए। इसी प्रकार 1913 में वारविक गोब्ले ने भी महाभारत के एक प्रसंग को चित्रित किया है जिसमें शांतनु की मुलाक़ात देवी गंगा से होती है।
महाकाव्य महाभारत में, शांतनु हस्तिनापुर के एक कुरु (कुरु उत्तरी लौह युग भारत में एक वैदिक इंडो-आर्यन प्रजाति का नाम था) राजा थे। वे चंद्र वंश के भरत जाति के वंशज थे, और पांडवों और कौरवों के परदादा थे। वह हस्तिनापुर के तत्कालीन राजा प्रतीप के सबसे छोटे पुत्र थे और उनका जन्म उत्तरार्द्ध काल में हुआ था। सबसे बड़े पुत्र देवापी को कुष्ठ रोग होने की वजह से उसने अपना उत्तराधिकार छोड़ दिया, जबकि मध्य पुत्र बहलिका (या वाहालिका) ने अपने पैतृक राज्य को त्याग कर अपने मामा का राज्य विरासत के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार शांतनु हस्तिनापुर साम्राज्य का राजा बन गया। उन्हें भीष्म पितामह के पिता के रूप में भी जाना जाता है, जो अब तक के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक हैं। माना जाता है कि एक बार शांतनु ने नदी के तट पर एक सुंदर स्त्री (देवी गंगा) को देखा और उससे विवाह करने के लिए कहा। वह मान गई लेकिन उसने यह शर्त रखी कि शांतनु उसके कार्यों के बारे में कोई भी सवाल नहीं पूछेगा यदि उसने ऐसा किया तो वह उसे छोड़ कर चली जाएगी। उन्होंने शादी की और बाद में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन गंगा ने उस बेटे को नदी में डूबा दिया। चूंकि शांतनु ने उसे वचन दिया था इसलिए उसने गंगा से ऐसा करने का कोई कारण नहीं पूछा। एक के बाद एक, सात पुत्रों को जन्म देने के बाद उसने सभी के साथ ऐसा ही किया। जब गंगा आठवें पुत्र को डूबाने वाली थीं, तब शांतनु खुद को रोक नहीं पाए और गंगा से इसका कारण पूछने लगे। अंत में, गंगा ने राजा शांतनु को ब्रह्मा द्वारा दिए गए उस श्राप के बारे में समझाया जोकि शांतनु के पूर्व रूप महाभिषा को और गंगा को मिला था। उसने उससे कहा कि उनके आठ बच्चों को पृथ्वी पर नश्वर मनुष्य के रूप में जन्म लेने का श्राप दिया गया था। वह आगे कहने लगी कि ये सभी मनुष्य रूप में इस श्राप से अपनी मृत्यु के एक वर्ष के भीतर मुक्त हो जाएंगे। इसलिए उसने उन सभी को इस जीवन से मुक्त कर दिया।
चूंकि आठवें पुत्र को वह नहीं डूबा पायी इसलिए वह कभी भी पत्नी या बच्चों का सुख प्राप्त नहीं कर पायेगा और उसे एक लंबा नीरस जीवन जीना पडेगा। हालांकि उसे यह वरदान भी प्राप्त है कि वह सभी धर्मग्रंथों का ज्ञाता होने के साथ-साथ गुणी, पराक्रमी और पिता का आज्ञाकारी पुत्र होगा। इसलिए वह उसे राज सिंहासन के योग्य बनाने हेतु प्रशिक्षित करने के लिए स्वर्ग में ले जा रही है। इन शब्दों के साथ, वह बच्चे के साथ गायब हो गई। इसके उपरांत शांतनु कई वर्षों तक गंगा के वियोग में विलाप करते हुए अपना राज-पाठ संभालने लगा और बहुत ही कुशल सम्राट बना। एक बार जब शांतनु गंगा नदी के किनारे टहल रहे थे तो उन्होंने पाया कि एक सुंदर युवा लड़का उनके सामने खड़ा है। शांतनु उसे पहचान नहीं पाए किन्तु वह युवा लड़का उसे पहचानता था क्योंकि वह उसका वही आठवां बेटा था। लड़के की पहचान की पुष्टि करने के लिए गंगा प्रकट हुई और शांतनु को उसके पुत्र से परिचित करवाया। इस लड़के का नाम देवव्रत था और उसे परशुराम और ऋषि वशिष्ठ द्वारा युद्ध कलाओं द्वारा पवित्र शास्त्रों का ज्ञान दिया गया था। देवव्रत के बारे में सच्चाई का खुलासा करने के बाद गंगा ने शांतनु को हस्तिनापुर ले जाने के लिए कहा। राजधानी पहुंचने पर शांतनु ने सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में देवव्रत को ताज पहनाया। यद्यपि शांतनु को गंगा से अलग होने से पीड़ा हुई, लेकिन उन्हें इस तरह के एक निपुण पुत्र प्राप्त होने पर बहुत खुशी हुई। उन्होंने देवव्रत की सहायता से यमुना के तट पर सात अश्वमेध यज्ञ किए। इसके चार साल बाद, शांतनु जब यमुना नदी पर यात्रा कर रहे थे तब उसने एक अज्ञात दिशा से आने वाली एक सुगंध को सूंघा। गंध का कारण खोजते हुए, वह सत्यवती के पास जा पहुंचा। सत्यवती ब्रह्मा के श्राप से मछली बनी अद्रिका नामक अप्सरा और चेदी राजा उपरिचर वसु की कन्या थी।
मछली का पेट फाड़कर मछुआरों ने एक बालक और एक कन्या को निकाला और राजा को सूचना दी। बालक को तो राजा ने पुत्र रूप से स्वीकार कर लिया किंतु बालिका के शरीर से मछली की गंध आने के कारण उसे मछुआरों को दे दिया और उसे मतस्यगंधा कहा जाने लगा। अपने पिता की सेवा के लिये वह यमुना में नाव चलाया करती थी। एक बार मतस्यगंधा ने पराशर मुनि की अत्यंत सेवा कर उन्हें जीवन दान दिया। महर्षि ने प्रसन्न होकर उसके शरीर से अति सुगन्धित गंध निकलने का वरदान दिया। उसी दौरान उसने महर्षि वेदव्यास को भी जन्म दिया, बाद में उसका नाम सत्यवती पड़ा। सत्यवती को देखते ही शांतनु उस पर मोहित हो गए और उसके समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। उसके पिता शादी के लिए राजी हो गए और एक शर्त रखी कि सत्यवती का बेटा ही हस्तिनापुर के सिंहासन पर विराजित होगा। चूंकि राजा शांतनु पहले ही अपने बड़े बेटे देवव्रत को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में चुन चुके थे इसलिए वह यह बात नहीं बता पाये। हालाँकि, देवव्रत को जब इस बात का पता चला तो अपने पिता की खुशी की खातिर, उन्होंने मछवारा प्रमुख को अपना वचन दिया कि सत्यवती के बच्चे ही सिंहासन पर राज करेंगे। संशयवादी प्रमुख को आश्वस्त करने के लिए, उन्होंने आगे भी आजीवन ब्रह्मचर्य अपनाने की शपथ ली ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सत्यवती की आने वाली पीढ़ियों को भी देवव्रत की संतानों से चुनौती न मिले। इसे सुनकर वह तुरंत सत्यवती और शांतनु के विवाह के लिए तैयार हो गया। देवव्रत की यह प्रतिज्ञा भीषण थी इसलिए उनका नाम भीष्म पड़ गया। इस बारे में सुनकर शांतनु बहुत प्रभावित हुए और उन्हें वरदान दिया कि अगर वे ऐसा करेंगे तो उनकी मृत्यु उन्हीं की इच्छा से होगी। शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र हुए, चित्रांगद और विचित्रवीर्य। शांतनु की मृत्यु के बाद, विचित्रवीर्य हस्तिनापुर का राजा बना क्योंकि चित्रांगद गंधर्वों के साथ हुए एक युद्ध में मारा गया था।
चित्र(सन्दर्भ):
1.	मुख्य चित्र में शांतनु को मतस्यगंधा को देखते ही सम्मोहित होने वाले प्रसंग के चित्रण को दिखाया है।, Fineart India
2.	द्वितीय चित्र में महाराजा शांतनु को सत्यवती (मतस्यगंधा) के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखते हुए चित्रित किया गया है।, Wikimedia
3.	तीसरे चित्र में देवी गंगा और महाराजा शांतनु  भेंट को प्रदर्शित किया है, इस चित्र को गोब्ले द्वारा बनाया गया है।, Wikimedia
4.	अंतिम चित्र राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित शांतनु द्वारा देवी गंगा को अपने बच्चे को डूबाने से रोकने वाला प्रसंग है।, Wikimedia 
 
संदर्भः 
1.	https://en.wikipedia.org/wiki/Shantanu
2.	https://en.wikipedia.org/wiki/Satyavati
3.	https://bit.ly/2KjT8LG
4.	https://bit.ly/2VGJDLN
5.	https://bit.ly/2XOEm7t
6.	https://bit.ly/2VoNm1E