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                                            क्या आपने कभी एक छोटे से बरगद या आम या संतरे के पेड़ को गमले में लगा देखा है? आमतौर पर ऐसे छोटे पेड़ आपको महलों या आलीशान होटलों के अंदर या एक महंगे व्यवसाय केंद्र में देखने को जरूर मिलेंगे। इन पेडों को बोनसाई पेड़ या वृक्षों के रूप में जाना जाता है। बोनसाई वास्तव में एक प्रकार की कला या तकनीक है, जिसका उपयोग कष्ठीय पेडों को लघु आकार देने तथा आकर्षक रूप प्रदान करने के लिए किया जाता है। बोनसाई मुख्य रूप से जापानी परंपरा और सिद्धांतों का पालन करने वाले ऐसे लघु पेडों को संदर्भित करता है, जिन्हें कंटेनर (Container) या गमले में उगाया जाता है। लगभग किसी भी सदाबहार लकड़ी के तने वाले पेड़ या झाड़ीदार प्रजातियों से बोनसाई बनाया जा सकता है। गमले की परिधि तथा पेड की निरंतर कटाई और छंटाई के माध्यम से पेड को छोटा रखा जाता है। इसके निर्माण की प्रक्रिया में बहुत अधिक समय लगता है। बोनसाई पौधों को गमले में इस प्रकार उगाया जाता है कि उनका प्राकृतिक रूप जहां बना रहे वहीं वे आकर में बौने ही रहें। यह एक पूर्व एशियाई कला का रूप है, जिसमें ऐसी तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिसके द्वारा छोटे गमलों में विशाल पेड़ों की प्रजातियों को लघु रूप दिया जा सके। वे दिखें तो वास्तविक पेड़ की तरह लेकिन आकार में बहुत छोटे हों। इसी तरह की अन्य प्रथाएं अन्य संस्कृतियों में भी मौजूद हैं, जिनमें चीन की पेन्जाई (Penzai) परंपरा या पेनजिंग (Penjing) भी शामिल है। हालांकि बोनसाई की कला जापान के साथ लंबे समय से जुड़ी हुई है, लेकिन यह वास्तव में पहले चीन में उत्पन्न हुई, और फिर पूर्व में कोरिया और जापान में फैल गई।
बोनसाई की कला को बौद्ध भिक्षुओं द्वारा फैलाया गया था ताकि वे अपने मंदिरों के अंदर के हिस्सों को बाहरी वातावरण या प्रकृति का रूप दे सकें। प्राचीन चित्रों और पांडुलिपियों से पता चलता है कि, पेड़ों को कलात्मक कंटेनरों में उगाने या लगाने का अभ्यास चीन के लोगों द्वारा 600 ईसवीं के आसपास किया गया था लेकिन कई विद्वानों का मानना है कि बोनसाई या गमलों पर उगाये जाने वाले पेड़ों का अभ्यास चीन में 500 या 1,000 ईसा पूर्व से किया जा रहा था। जापान में बोनसाई पहली बार 12 वीं शताब्दी में दिखाई दिए। ऐसा कोई संयोग नहीं है कि कलात्मक पौधे को उगाने के अभ्यास की शुरूआत चीन में हुई। चीन के लोग हमेशा फूलों और पौधों से प्यार करते रहे हैं, और यह देश स्वाभाविक रूप से वनस्पतियों की समृद्ध विविधता से संपन्न है। उन्हें बगीचों का भी शौक था। वास्तव में, इनमें से कई उद्यान लघु स्तर के थे जिनमें कई लघु पेड़ों और झाड़ियों को शामिल किया गया जिन्हें उनके परिदृश्य के पैमाने और संतुलन को सुदृढ़ करने के लिए लगाया गया था। अपने आप में एक विज्ञान के रूप में चीनी भी इस लघुकरण में मुग्ध थे। उनका मानना था कि लघु वस्तुओं ने उनके भीतर कुछ रहस्यमय और जादुई शक्तियों को केंद्रित किया था।
चीनी और कोरियाई सिरामिक (Ceramic) बर्तनों के विकास ने बोनसाई के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुंदर चीनी कंटेनरों के विकास के बिना, शायद बोनसाई वृक्षों की उतनी प्रशंसा नहीं होती जितनी अब की जाती है। बोनसाई का शाब्दिक अर्थ है -"ट्रे (Tray) में उगा पेड़"। बोनसाई चीन और जापान में विभिन्न पद्धतियों के साथ उत्पन्न हुआ और विकसित हुआ है। चीनी बोनसाई अभी भी प्राचीन परंपरा में बहुत अधिक है, और अक्सर अपरिष्कृत दिखायी देते हैं। दूसरी ओर, जापानी शैली अधिक मनभावन और प्रकृतिवादी हैं। जापानी बोनसाई सबसे अधिक परिष्कृत और अपेक्षाकृत बेहतर तैयार किए गए हैं। दोनों प्रकार के बोनसाई अपने व्यक्तिगत आकर्षण के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध और प्रशंसनीय हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के समय में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में देखे जाने वाले अधिकांश बोनसाई जापानी मूल के हैं। यह चीनी शब्द पेन्जाई का एक जापानी उच्चारण है। बोनसाई का उद्देश्य मुख्य रूप से चिंतन (देखने वाले के लिए) और प्रयास व सरलता (उगाने वाले के लिए) का सुखद अभ्यास है।
बोनसाई को उगाने और देखभाल करने के लिए तकनीकों और उपकरणों की आवश्यकता होती है, जो छोटे गमलों या कंटेनरों में पेड़ों के विकास और दीर्घकालिक रखरखाव के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं। इसके लिए स्रोत सामग्री के एक नमूने की आवश्यकता होती है। बोनसाई अभ्यास पौधों को उगाने का एक असामान्य रूप है, जिसमें स्रोत सामग्री प्राप्त करने हेतु पौधों या पेड को उगाने के लिए बीज का प्रयोग शायद ही कभी किया जाता है। जब बोनसाई निर्माता कार्य शुरू करता है, तो उचित समय के भीतर एक विशिष्ट गुणों वाले बोनसाई की उपस्थिति प्रदर्शित करने के लिए, वह परिपक्व (कम से कम आंशिक रूप से) स्रोत पौधे का उपयोग करता है।
निम्नलिखित स्रोतों को बोनसाई के लिए सामग्री के में स्रोत सामग्री के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है:  
  
•	कटिंग (Cutting) या लेयरिंग (Layering) के द्वारा स्रोत पेड़ से वंश वृद्धि या प्रोपागेशन (Propagation)
•	सीधे एक नर्सरी या एक बगीचे के केंद्र से नर्सरी स्टॉक (Nursery stock)
•	वाणिज्यिक बोनसाई उत्पादकों से, जो सामान्य तौर पर, ऐसे परिपक्व नमूनों को बेचते हैं, जिनमें बोनसाई के सौंदर्य गुण पहले से ही मौजूद् होते हैं।
•	उपयुक्त बोनसाई सामग्री को उसकी मूल जंगली स्थिति से एकत्रित करना, इसे सफलतापूर्वक स्थानांतरित करना और फिर वृद्धि के लिए इसे कंटेनर में लगाना।   
इन्हें उगाने के लिए विभिन्न तकनीकें उपयोग में लायी जाती हैं, जिनमें पत्तियों की ट्रिमिंग (Leaf trimming) अर्थात बोनसाई के तने और शाखाओं से पत्तियों का चयनात्मक निष्कासन, उम्मीदवार पेड़ के तने, शाखाओं और जड़ों की छंटाई और उनकी वायरिंग (Wiring-तार लगाना), तने और शाखाओं को आकार देने हेतु दाब लगाने के लिए यांत्रिक उपकरणों का उपयोग, तैयार क्षेत्र में मौजूद तने पर नई बढ़ती सामग्री (आमतौर पर एक कली, शाखा, या जड़) की कलम बांधना। निष्पत्रण (Defoliation)-जो कुछ पर्णपाती प्रजातियों के लिए पर्णसमूह को अल्पकालिक बौनापन प्रदान कर सकता है, आदि शामिल हैं। अच्छी वृद्धि के लिए बोनसाई को नियमित रूप से पानी देना, प्रजातियों के लिए आवश्यक उपयुक्त प्रकार की मिट्टी का प्रयोग, विशेष आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त उपकरणों का उपयोग, अलग-अलग प्रकाश स्थितियों की आवश्यकता आदि पर ध्यान देना आवश्यक है। हालांकि बोनसाई पूरी तरह से संकुचित वातावरण में उगते हैं और सजावट के लिए भी अच्छे हैं, लेकिन यह फल देने में सक्षम नहीं हैं। अन्य पेडों और पौधों के विपरीत बोनसाई को भोजन के उत्पादन, दवा या उद्यान का परिदृश्य बनाने के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है।
मेरठ के एक समूह जिसे वैन्युली स्टडी ग्रुप (Vanulee Study Group) के नाम से जाना जाता है, के लिए बोनसाई केवल एक बढ़ता हुआ लघु पौधा ही नहीं बल्कि उससे भी बहुत अधिक है। समूह का नेतृत्व करने वाले डॉ. शांति स्वरूप ने इसे शुरूआत में केवल मन बहलाने के लिए इसे उगाया था किंतु अब यह पूरे समूह के लिए एक तरह के ध्यान के रूप में विकसित हुआ है, जोकि जीवन के धैर्य और निरंतरता का मूल्य सिखाता है। इस समूह में डॉक्टर, शिक्षक और गृहिणी शामिल हैं, जिनके लिए बोनसाई धैर्यपूर्वक और समर्पित रूप से बढ़ता हुआ लघु पेड है। इनके द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पेडों में फ़िकस (Ficus), जामुन, कैंडल ट्री (Candle tree) आदि शामिल हैं। बोनसाई को तैयार करना अब उनके जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा बन गया है। डॉ शांति स्वरूप, के अनुसार बोनसाई एक जीवित कला है जिसमें आजीवन प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। उन्होंने लगभग 20 छात्रों के अपने समूह को बोनसाई तैयार करने का ज्ञान मुफ्त में दिया। उनका मानना है कि, इस कार्य को करने वाले कलाकार किसी निरंतर प्रार्थना करने वाले साधुओं से कम नहीं है तथा इसे तैयार करने के लिए जो सबसे पहली बात आवश्यक है वह है, धैर्य। उनके घर पर करीब 200 बोनसाई पौधे हैं और इसकी देखभाल के लिए रोजाना 2-3 घंटे का समय दिया जाता है। हालांकि यह परंपरा चीन से शुरू हुई है किन्तु भारत भी अब प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए बोनसाई निर्माण की ओर बढ़ रहा है।
चित्र (सन्दर्भ): 
1. मुख्य चित्र में सुन्दर बोन्साई का पौधा दिख रहा है। (Pngtree) 
2. दूसरे चित्र में कल्प बोन्साई दिख रहा है।  (Freepik)
3. अन्य सभी चित्र में भी बोन्साई पौधों को दिखाया गया है। (Youtube, Flickr, Publicdomainpictures)   
संदर्भ: 
1. https://bit.ly/2ToafRp
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Bonsai
3. https://www.bonsaiboy.com/catalog/historyofbonsai.html
4. http://ictpost.com/is-india-heading-towards-creating-bonsai-manufacturing/