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                                            भारत आज ऐसे अनेकों लोगों का घर है जो कभी ना कभी किसी और देश से यहाँ आये थे और आज वर्तमान में इसी देश के होकर रह गए। भारत में अप्रवासी लोगों के आने का इतिहास सिन्धु सभ्यता के समय से था जिसका मूल कारण था व्यापार। सिकंदर के समय में भारत में यवन से भी बड़ी संख्या में लोग आये जो यहीं के होकर के रह गए। उन्ही में से एक था हेलोड़ोरस जिसने विदिशा के उदयगिरी के समीप ही विष्णु स्तम्भ की भी स्थापना करी थी। समय के साथ साथ कई और लोग इस देश में आये और यहीं बस गए जिनमे अरबी और पठान भी प्रमुख हैं। पठानों को पश्तून भी कहा जाता है, आज के वर्तमान उत्तर प्रदेश में पठानों का एक अत्यंत ही बड़ा समुदाय निवास करता है। उत्तर प्रदेश में पठान समुदाय सबसे बड़े मुस्लिम समुदायों में से एक माना जाता है।
हमारे मेरठ शहर में पठानों या पश्तूनों की सबसे पुरानी बस्तियों में से एक बस्ती निवास करती है। भारत में पठानों के आगमन का समय 1000-1200 ईस्वी माना जाता है। पठान जनजातियों को ककर, बंगश, तारेन और अफरीदी आदि उपनामों से जाना जाता है इसके अलावां इन्हें खान के नाम से भी जाना जाता है हांलाकि यह एक उपनाम है जिसका ज्यादातर पठान प्रयोग नहीं करते हैं या यूँ कहें कि इस उपनाम का प्रयोग करने वाले पठान नहीं हैं। इसी कड़ी में यदि उदाहरण के रूप में देखा जाए तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में खानजादा समुदाय निवास करता है जिसे की आम तौर पर खान उपनाम से संबोधित किया जाता है ये मुस्लिम राजपूत समुदाय से सम्बंधित हैं। अवध का उदाहरण लिया जाए तो यहाँ पर पठानों और खानजादों में एक बहुत ही बारीक अंतर दिखाई देता है। पठान खानजादा का प्रयोग मुस्लिम राजपूतों के लिए किया जाता है जो कि गोरखपुर में पाए जाते हैं जिसे की पठान समुदाय में शामिल किया गया है, इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि पठान और खानजादा में अवध और आस पास के क्षेत्रों में हमें बहुत ही बारीक अंतर दिखाई देता है।
अब हम रोहिलखण्ड की बात करें तो यहाँ पर पश्तूनों का समुदाय निवास करता है जिसे रोहिल्ला के नाम से भी जाना जाता है। पठान शब्द पश्तून शब्द का हिंदुस्तानी उच्चारण है, इनका विवरण दिल्ली सल्तनत की सेनाओं में किया जाता है, लोदियों के साथ ही इनका बड़े पैमाने पर अप्रवास होना शुरू हुआ था और बाद में मुगलों के दौरान भी पश्तूनों को सेना में बड़े पैमाने पर रखा गया था। मुग़ल साम्राज्य के पतन के साथ ही रोहिल्लाओं ने व बंगशों ने अपने को आज़ाद करार कर दिया और उन्होंने रोहिल्खंड और फरुक्खाबाद में अपने राज्य की स्थापना की। अवध में भी नानपारा के काकर समुदाय ने भी स्वतंत्र रियासत की स्थापना की। अंग्रेजों के उदय के बाद उन्होंने इनके ऊपर अधिकार कर लिया तथा रामपुर में ही इन्हें नियंत्रित करके रोक दिया गया था तथा रामपुर को एक ब्रिटिश (British) संरक्षित राज्य का दर्जा प्राप्त हो गया था। अलीगढ जिले में भी पश्तूनों का प्रभाव जारी रहा था।
पश्तून मूल रूप से दक्षिण और मध्य एशिया (Asia) से सम्बंधित हैं जो कि एक समान प्रकार के संस्कृति और इतिहास को साझा करते हैं। मेरठ शहर के पास ही बसे इन्चोली गावं की स्थापना पश्तूनों द्वारा ही की गयी थी जिसकी प्रेरणा अफगानिस्तान में स्थित शहर इन्चोली से ली गयी थी। आज भी इस गाव में हमें पश्तून लोगों का समुदाय देखने को मिलता है, भारत के संस्कृति, रहन सहन और खान पान में इनके प्रभाव को देखा जा सकता है। आज पश्तून भारत की संस्कृति में अच्छी तरह से मिल के रहते हैं तथा भारत की प्रगति में एक महत्वपूर्ण योगदान देने का कार्य कर रहे हैं।
चित्र (सन्दर्भ):
1. अमीर शेर अली ख़ान अपने पुत्र राजकुमार अब्दुल्लाह जान और सरदारों के साथ (सन् १८६९ ई में खींची गई) (Wikipedia)
2. पश्तून ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी (Wikipedia)
3. शेर शाह सूरी (Wikipedia)
4. भारतीय अदाकारा ज़रीन खान जोकि एक पश्तून हैं। (Pexels)
सन्दर्भ :
1.	https://en.wikipedia.org/wiki/Pathans_of_Uttar_Pradesh
2.	https://en.wikipedia.org/wiki/Incholi
3.	https://en.wikipedia.org/wiki/Pashtuns