उत्तर भारत का सबसे पुराना चर्च है, मेरठ में स्थित संत जॉन चर्च

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
20-06-2020 01:15 PM
उत्तर भारत का सबसे पुराना चर्च है, मेरठ में स्थित संत जॉन चर्च

मेरठ एक ऐसा शहर है जो कई कारणों से भारत सहित अन्य देशों में भी प्रसिद्ध है। यहां कई ऐतिहासिक इमारतें स्थित हैं जिनमें से संत जॉन चर्च (St.John's Church) भी एक है जोकि उत्तर भारत का सबसे पुराना चर्च है। यह चर्च एक पैरिश चर्च है (Parish-क्रिश्चियन चर्च में एक छोटा प्रशासनिक क्षेत्र जिसका आमतौर पर अपना चर्च और एक पादरी होता है) जिसे 1819 से 1821 के बीच बनवाया गया था। पैरिश की स्थापना स्थानीय स्तर पर तैनात सैन्य चौकी की सेवा के लिए 1819 में हुई थी। इसके संस्थापक ब्रिटिश सेना के पादरी आदरणीय हेनरी फिशर (Rev. Henry Fischer, इंग्लैंड के चर्च के पादरी) थे, जिन्हें भारत के मेरठ शहर में भेजा गया था। इस चर्च की इमारत, गोथिक (Gothic) पुनरुद्धार से पहले लोकप्रिय अंग्रेजी पैरिश चर्च वास्तुकला की एक शैली के अनुरूप है, जिसे यूरोपीय स्थापत्य शैली (वेनिस के वास्तुकार एंड्रिया पैल्लेडियो (Andrea Palladio) के डिजाइनों से प्रेरित और उत्पन्न) में तैयार किया गया है। इसके अंतर्गत स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल प्रार्थना के लिए एक बडा खुला आंतरिक स्थान बनाया गया था जिसमें उच्च तापमान में भी हवा स्वतंत्र रूप से प्रसारित हो सकती थी। इसके अलावा ऊपर बैठने के लिए एक बालकनी (Balcony) का भी निर्माण किया गया था, जो अब उपयोग में नहीं है। यह 1800 के दशक के एंग्लिकन (Anglican) पैरिश चर्च का एक अच्छा उदाहरण है।

चर्च के पास ही मेरठ का दूसरा सबसे पुराना क़ब्रिस्तान संत जॉन क़ब्रिस्तान भी है, जहां का मैदान पेड़ और हरियाली से सुशोभित है। इस कब्रिस्तान को मुख्य रूप से यूरोपीय नागरिक, ब्रिटिश (British) सैनिक एवं उनके परिवारों के लिए बनाया गया था। यहाँ स्थित दो कब्रें, सबसे पुरानी कब्रें हैं जोकि सन 1810 की हैं। क़ब्रिस्तान में अन्दर प्रवेश करते समय दिवार में चुनवाया गया एक संगमरमर का फलक दिखायी देता है जिस पर लिखा गया है कि इसके उपयोग की शुरुआत 1807 से हुई, इसे 5 प्रमुख हिस्सों में बांटा गया है एवं इस क़ब्रिस्तान के पूर्व और पश्चिम में दो द्वार हैं। यहाँ पर 9 यूरोपीय लोगों की कब्र है जिनकी 10 मई 1857 के गदर में मृत्यु हुई थी। महत्वपूर्ण लोगों की कब्रों की संरचना प्रभावशाली यूनानी-रोमन भवनों जैसी बनायी गयी हैं। कुछ कब्रों पर लगाये गए समाधि स्तंभ और फरिश्तों की मूर्तियाँ यूरोपीय-रोमन कला के उत्तम नमूने हैं।

हर साल 24 जून को संत जॉन द बैपटिस्ट (The baptist) को श्रद्धांजलि देने के लिए साओ जोआओ (São João) का पर्व मनाया जाता है। साओ जोआओ गोवा में असामान्य तरीके से मनाया जाने वाला एक कैथोलिक (Catholic) पर्व है, जिसमें लोग संत जॉन को श्रद्धांजलि देने के लिए कुओं, नदियों और तालाबों में छलांग लगाते हैं। वास्तव में 24 जून संत जॉन का जन्मदिन उत्सव है। संत जॉन, यीशु की माँ, मैरी की रिश्तेदार संत एलिजाबेथ के बेटे थे। इस तिथि का महत्व यह है कि यह तिथि प्रभु के जन्म के संदेश का पर्व (Feast of the Annunciation- 25 March) के तीन महीने बाद आती है। प्रभु के जन्म के संदेश में स्वर्गदूत गेब्रियल ने मैरी से कहा कि उसका एक बेटा (यीशु) होगा। उस समय एलिजाबेथ पहले से ही छह महीने की गर्भवती थी। मैरी, एलिजाबेथ के पास गयी और उसे सारा वृत्तांत सुनाया। इसी दौरान एलिजाबेथ के गर्भ में पल रहे संत जॉन ने उछाल मारी।

प्रभु के जन्म के संदेश का पर्व क्रिसमस से नौ महीने पहले होता है। जब जॉन बडे हुए तो उनका वर्णन जंगल में रहने वाले, ऊँट के बालों के कपड़े पहनने वाले, टिड्डियाँ और जंगली शहद खाने वाले के रूप में किया गया। जॉन ने मसीहा, यीशु के आने की भविष्यवाणी की। जब यीशु तीस वर्ष के थे, तब उन्हें जॉर्डन (Jordan) नदी में संत जॉन द्वारा बपतिस्मा दिया गया था। गोवा में साओ जोआओ का पर्व उस वर्ष के समय के साथ जुडा है जब मानसून शुरू होता है, तथा आसपास के वातावरण में ताजा हरियाली और फूल होते हैं और कुएं एवं अन्य जल निकाय भरे होते हैं। कुओं और तालाबों में कूदना गर्भ में पल रहे बच्चे की उछाल और जॉर्डन नदी में बपतिस्मा का प्रतीक है। साओ जोआओ का पर्व जहां एक ही दिन कैथोलिक दुनिया में मनाया जाता है, वहीं गोवा दुनिया का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां कुओं में छलांग लगाकर इसे चिह्नित किया जाता है। इस दिन, लोगों के समूह पारंपरिक गीतों को गाते तथा घुमोट (Ghumot), महाडेलम (Mhadalem), और कंसाल्म (Kansallem) को बजाते हुए घुमते हैं।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में मेरठ का संत जॉन चर्च चित्रित है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में संत जॉन सेमेट्री का प्रवेश द्वार दिख रहा है। (Prarang)
3. तीसरे चित्रे में संत जॉन चर्च का प्राचीन चित्र और संत जॉन सेमेट्री के मुख्य प्रवेश शिला का चित्र है । (Prarang)
4. चौथे चित्र में संत जॉन सेमेट्री में लगी हुई गोथिक शैली की मूर्ति दिखाई गयी है। (Wikimedia)
5. पांचवे चित्र में गोवा में साओ जोआओ त्यौहार के दौरान भोज का चित्र है। (Flickr)

संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sao_Joao_Festival_in_Goa
2. https://en.wikipedia.org/wiki/St._John%27s_Church,_Meerut
3. https://prarang.in/meerut/posts/850/postname